अतीत की यात्रा: तिलक सोनी

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“पहाड़ों में एक बार रहने के बाद आप पहाड़ों से दूर नहीं जा सकते” मशहूर लेखक रसकिन बॉंड की ये लाइनें 43 साल के तिलक सोनी के लिये सही साबित हुई। राजस्थान के तिलक सालों पहले दिल्ली बस गये और दो दशकों से ज्यादा एक एक्सपोर्ट हाउस में काम किया। लेकिन शहर की भाग दौङ से तंग होकर तिलक ने उत्तराकाशी को अपना घर बना लिया, आइये अापको रूबरू कराते हैं कि तिलक सोनी से।

दरअसल तिलक उत्तराखंड के पौराणिक, भुल व खो चुके पगडंडियों और रास्तों को दोबारा जीवंत करने का शौक रखते है। तिलक की यह मुहिम व हिमालय के लिये उनका प्यार उन्हें यहां खींच लाया अौर वह यही के हो गये। न्यूजपोस्ट से बात करते हुए सोनी कहते हैं कि, “मैं सालों से पहाड़ों पर घूम रहा हूं और समय के साथ खो चुके रास्तों और जगहों को चिह्नित करने में लगा हुआ हूं। इसी सिलसिले में मैं तीन साल पहले फोटग्राफरों, पर्वतारोहियों के एक दल को लेकर उत्तराखंड, हिमाचल औऱ तिब्बत को जोड़ने वाली नेलौंग घाटी गया जोकि 1962 युद्ध के बाद से आम लोगों के लिये बंद थी।”

gartang valley

सोनी बताते हैं कि, “2013 में हमारे दल के वहां जाने के बाद मैने नेलौंग में कंट्रोल्ड पर्यटन शुरू करने पर एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार किया। फलस्वरूप इस साल करीब 1100 लोग वहां जा चुके हैं और उन्हें वो जगह लाहोल स्पीति,लेह,लद्दाक से भी ज्यादा पसंद आई है।”

27 सितंबर विशव पर्यटन दिवस है और इस मौके पर तिलक सोनी वक्त के हाथों भुला दिये गये गरतंग गली पुल के उद्धाटन करने जा रहे है। यह 105 मीटर लंबा पुल देवदार की लकड़ी से बना है, इस पुल का इस्तेमाल सालों पहले भूटिया समुदाय के लोग तिब्बत से व्यापार करने के लिये किया करते थे।

इस पुल के महत्व के बारे में बताते हुए तिलक कहते हैं कि, “ये लकड़ी का पुल अपने आप में अद्भुत है और सालों की ऐतिहासिक धरोहर को अपने आप में संजोय हुए है। 140 साल पुराना ये पुल पेशवरी पठानों ने बनाया था और ये अाज भी वैसे का वैसा ही है, इसकी मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पुल पर सामान से लदे याक लगातार रास्ता पार करते थे। जड़ गंगा के ठीक ऊपर बना ये पुल अपने आप में एक सांस्कृतिक धरोहर है। “

पर्यटन दिवस के मौके पर ये पुल दोबारा पर्यटकों के लिये खोला जायेगा, एक सांकेतिक वॉक इस दौरान किया जायेगे जिसमें देश के कोने कोने से आये लोग हिस्सा लेकर इस ऐतिहासिक धरोहर का दोबारा एहसास करेंगे।

पुन: आम लोगों तक ऐसी कई भुला दी गई धरोहरों को पहुंचाने का श्रेय तिलक सोनी व उनकी लगन को जाता है।