उत्तराखंड में ऐसी फसल जो बचाए मलेरिया से

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उत्तराखंड राज्य के उधमसिंह नगर में बहुत से किसान जो पहले कैश क्राप उगाते थे उन्होंने अपनी खेतों में मेडिसिनल प्लांट यानि की औषधिय फसलें उगानी शुरु कर दी है।जी हां, यहां के किसानों ने मलेरिया की दवाई में इस्तेमाल होने वाला आर्टेमिसिया की फसल को उगाने का काम शुरु कर दिया है।इस उत्पाद से जहां एक तरफ इनकी आमदनी बढ़ी हैं वहीं यह अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है कि कहीं पर किसानों द्वारा औषधिय फसल को उगाया जा रहा है।

यह फसल मध्य प्रदेश के एन्ट्रोप्रेन्योर्स को सप्लाई की जाती है जिससे यह कंपनी एंटी-मलेरियल दवाईयों बनाते हैं और उसे दुनिया के हर कोने में एक्सपोर्ट करते हैं।उधमसिंह नगर के दोहारा अंजनिया गांव के किसान विनोद सिंह कहते हैं कि मैं 1 एकड़ ज़मीन में आर्टेमिसिया का उत्पादन करता हूं और सिर्फ 3 महीने में लगभग 12 क्विंटल उपज मिलती है। एक क्विंटल से मुझे 3,400/- रुपये मिलते है जो मेरे पहले की फसल और सब्जियों से बहुत ज्यादा है, और बचे महीनों में मैं कैश क्राप का उत्पादन करता हूं।

वहीं एक और किसान जग्याराम कहते हैं कि किसानों को यह फसल बेचेने में कोई दिक्कत भी नहीं होती।जग्याराम बताते हैं कि सभी किसानों को फसल लगाने से पहले कंपनी से रेट की गारंटी और फसल के खराब होने का मुआवजा पहले से तय हो जाता है।यह फसल लेने वाले रत्लाम के एन्ट्रोप्रन्योर अपनी फसल खुद ही खेतों से ट्रांसपोर्ट करवा लेते हैं, तो यह चिंता भी किसानों की नहीं होती।इसके साथ ही आर्टेमिसिया की फसल को ज्यादा पानी और केयर की जरुरत नहीं होती और यह फसल जानवर भी नहीं खाते। एंटी-मलेरियल ड्रग्स के बहुत बड़े एक्सपोर्टर धर्म चंद जैन कहते हैं कि इस समय भारत 70 प्रतिशत एंटी-मलेरियल दवाईयां पैदा करने वाला देश है जो दुनियाभर में यह दवाएं सप्लाई करता है।2014 तक 99 प्रतिशत दवाएं भारत को चाईना सप्लाई करता था लेकिन गुजरात,उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश और उत्तराखंड के प्रयासों से यह प्रतिशत लगभग घट चुका है।

उत्तराखंड के किसानों और दि नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड के प्रयासों से यह औषधिय पेड़ों का उत्पादन देश के साथ-साथ किसानों के लिए भी फायदेमंद है।