चार धाम यात्राः परंपरा पर पड़ी कोरोना की छाया

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चारधाम
गुजरते साल में कोरोना काल ने जनजीवन को तो अस्त-व्यस्त रखा ही, उन परंपराओं पर भी काली छाया डाल दी, जो हमेशा से मौजूद रहीं थीं। बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की पूर्व घोषित तिथि को श्रद्धालु भगवान के दर्शन नहीं कर पाए, क्योंकि कपाट खुलने की नई तिथि घोषित करनी पड़ी थी। 15 दिन बाद जाकर कपाट खुले। मई-जून के जो महीने तीर्थाटन के हिसाब से उत्तराखंड में स्वर्णिम माने जाते हैं, उस दौरान चारों धामों में सिर्फ सन्नाटा पसरा रहा। जुलाई से यात्रा का पहिया घूमा, लेकिन यात्रा सिर्फ कहने भर को चली। तीर्थाटन को इस पूरे साल करारी चपत लगी।
इस साल गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट 26 अप्रैल से खुले, जबकि केदारनाथ धाम में दर्शनों का सिलसिला 29 अप्रैल से शुरू हुआ। तीनों ही धामों में कपाट पूर्व घोषित तिथियों में खुले, लेकिन बद्रीनाथ धाम के साथ यह बात नहीं रही। धाम के कपाट खोलने की पूर्व तिथि 30 अप्रैल तय की गई थी। बसंत पंचमी के दिन ही यह तिथि परंपराओं के अनुसार तय कर ली गई थी, लेकिन कपाट खुलने की तारीख से कुछ दिन पूर्व जब दक्षिण भारत से रावल बद्रीनाथ पहुंचे, तो उन्हें कोविड-19 के प्रोटोेकाल के अनुपालन में क्वारंटीन होना पड़ा। बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की पूरी प्रक्रिया में रावल ही मुख्य भूमिका में होते हैं। इन स्थितियों में कपाट खुलने की नई तारीख 15 मई घोषित की गई और पहली बार बद्रीनाथ धाम के कपाट तय दूसरी तारीख में खुले।
कोरोना काल ने पूरे यात्रा सीजन में इस बार तीर्थाटन व्यवसाय को परवान नहीं चढ़ने दिया। जुलाई से सरकार ने उत्तराखंड के स्थानीय लोगों को चार धाम में दर्शन करने की अनुमति प्रदान की। बाद में दूसरे प्रदेशों के श्रद्धालुओं के लिए बंदिशें हटाई गईं। वर्ष 2019 में चार धाम यात्रा में आने वाले यात्रियों की संख्या जहां 30 लाख से ज्यादा रही थी, वो ही संख्या 2020 में चार लाख के आस-पास जाकर सिमट गई।
चार धाम यात्रा विकास परिषद के उपाध्यक्ष आचार्य शिव प्रसाद ममगांई भी मानते हैं कि कोविड-19 की वजह से इस बार यात्रा बेहद प्रभावित रही। उनका कहना है कि प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद सरकार ने यात्रा का संचालन किया। दूसरे चरण की यात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने उत्तराखंड का रूख किया।