सबसे देर से आए थे भाजपा में, सबसे पहले गए यशपाल

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यशपाल आर्य

वरिष्ठ दलित नेता यशपाल आर्य ने सोमवार को राज्य के प्रभावशाली मंत्री रहते हुए ठीक विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ भाजपा दल को छोड़कर विपक्षी दल का दामन थाम कर अपने ही इतिहास को दोहराया है।

वर्ष 2017 में भाजपा के उम्मीदवार की सूची जारी होने के दिन वह तत्कालीन कांग्रेस सरकार के प्रभावशाली मंत्री रहते हुए बिल्कुल इसी तरह भाजपा में शामिल हुए थे और उन्हें भाजपा में शामिल होने के चार घंटे के भीतर ही पुत्र संजीव आर्य के साथ दो टिकट हासिल हो गए थे।

इधर जबकि उनसे पूर्व 19 मार्च 2016 को बजट सत्र के दौरान भाजपा में शामिल होने वाले 9 कांग्रेस नेताओं में से एक काबीना मंत्री सहित कुछ अन्य की कांग्रेस में घर वापसी की अटकलें लग रही थीं, और तीन कांग्रेस से जुड़े विधायक भाजपा का दामन थाम चुके थे। ऐसे में गत 25 सितंबर के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के चाय पर घर आने के बाद शुरू हुई एकमात्र चर्चा को पुरजोर तरीके से नकारने वाले यशपाल आर्य बिना किसी को भनक भी लगे सत्तारूढ़ दल में 5 वर्ष से कम वर्ष का समय बिताकर पुत्र सहित घर वापसी कर गए हैं। इस पर तरह-तरह के कयास लग रहे हैं।

उनके भाजपा में शामिल होने पर हरीश रावत ने तब कहा था कि यदि यशपाल आर्य 2017 के चुनाव में उनके साथ होते तो कांग्रेस 11 की जगह 22 अधिक यानी 33 सीटें जीतते। यानी यशपाल के कांग्रेस में जाने से दलित वोट के कांग्रेस से छिटकने का हरीश रावत को हमेशा मलाल रहा। इस बीच किच्छा में एक श्रद्धांजलि के कार्यक्रम में यशपाल एवं हरीश के एक कार्यक्रम में साथ मौजूद रहने की चर्चाएं भी सुर्खियों में रहीं।

इधर पंजाब में दलित के मुख्यमंत्री बनने के बाद हरीश रावत ने उत्तराखंड में दलित के बेटे को मुख्यमंत्री देखने का बयान दिया तो इसके निहितार्थ लगाए गए कि वह यशपाल के लिए ऐसा कह रहे हैं। हालांकि उनके करीबियों ने इसे पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा से जोड़ा। जबकि यह भी कहा गया कि स्वयंभू तरीके से खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा बताने वाले हरीश रावत खुद के सिवाय किसी को मुख्यमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते। उनका यह बयान देने का मकसद केवल दलित वोट को कांग्रेस की ओर आकर्षित करने का था। इसी उद्देश्य से कांग्रेस यशपाल की घर वापसी के लिए अधिक प्रयासशील रही और यशपाल बाजपुर में किसान आंदोलन के कारण सीट खतरे में पड़ने की आशंका से कांग्रेस में चले गए और आज्ञाकारी पुत्र की तरह संजीव भी उनके पीछे हो लिए।

हालांकि भाजपा नेताओं का मानना है कि राज्य का दलित वोट भले एक समय में कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक था, लेकिन अब राज्य में भाजपा के सत्तासीन रहने तथा इस दौरान यशपाल के साथ ही रेखा आर्य के रूप में दो दलित नेताओं में मंत्रिमंडल में स्थान देने के साथ अन्य दलित नेताओं को भी महत्व देने के साथ दलित वोट बैंक अब भाजपा के साथ भी है। इसलिए यशपाल व संजीव के कांग्रेस में जाने से दलित वोट उस तरह प्रभावित नहीं होगा।

टिकट कटा तो हम भी सोचने को मजबूर होंगे: सरिता

यशपाल आर्य और संजीव आर्य के भाजपा छोड़कर कांग्रेस पार्टी में शामिल होने पर भाजपा-कांग्रेस दोनों जगह मिश्रित प्रतिक्रिया है। भाजपा के कैडर में जहां यशपाल-संजीव के जाने से नाराजगी देखी जा रही है, वहीं कांग्रेस का कैडर इसे घर वापसी बताकर खुश है। भाजपा कार्यकर्ता संजीव के कार्यकाल में मिली उपेक्षा, उनके द्वारा अपनी टीम बनाने की बात और उनके जाने से कोई नुकसान नहीं होने की बात कह रहे हैं। जबकि भाजपा के संभावित उम्मीदवार दिनेश आर्य ने जहां संजीव के जाने पर निरपेक्ष भाव से कहा न वह उनके आने से खुश थे न जाने से खुश हैं।

अंबा आर्य ने रुक कर, सोच समझकर प्रतिक्रिया देने की बात कही। दूसरी ओर कांग्रेस के कार्यकर्ता मजबूत प्रत्याशी मिलने से खुश हैं। कांग्रेस पार्टी के दावेदारों में से एक हेम चंद्र आर्य ने इस पर कहा कि वह उनके कांग्रेस से जाने पर भी खुश थे और और आने पर भी। पांच वर्ष से क्षेत्र में हैं, इसलिए उन्हें भरोसा है कि टिकट उन्हें ही मिलेगा। पूर्व विधायक और महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष सरिता आर्य ने कहा, पांच वर्ष से हमने कांग्रेस पार्टी के झंडे-डंडे उठाए हैं। अब किसी और को टिकट मिलेगा तो वह भी सोचने को मजबूर होंगी।