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कपिल देव के लिए लंदन पंहुचे रणबीर

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एक तरफ रणबीर सिंह संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के खूंखार रोल में परदे पर आने की तैयारियां कर रहे हैं, तो दूसरी ओर, रणबीर सिंह अपनी अगली फिल्म के लिए कपिलदेव बनने की तैयारियां शुरु कर रहे हैं।

‘बजरंगी भाईजान’ और ‘ट्यूबलाइट’ के बाद निर्देशक कबीर खान 1983 में क्रिकेट का विश्वकप जीतकर इतिहास रचने वाली भारतीय टीम पर फिल्म बनाने जा रहे हैं, तो रणबीर सिंह इस फिल्म में 1983 की विश्व विजेता टीम के कप्तान कपिल का रोल करने जा रहे हैं और इस रोल की तैयारियों के लिए वे लंदन पंहुच चुके हैं।

मिली जानकारी के अनुसार, लंदन में 15 दिनों तक रणबीर एक कैंप में शामिल होंगे, जहां उनको कपिल और कबीर खान के साथ रहने का मौका मिलेगा। लंदन में ही फिल्म का पहला शेड्यूल होगा, जिससे पहले रणबीर सिंह कपिल की गेंदबाजी के लिए ट्रेनिंग लेंगे। अभी तक ये तय नहीं है कि इस फिल्म की शूटिंग कब से शुरु होगी।

सूत्रों का कहना है कि पहला शेड्यूल दिसंबर के दूसरे सप्ताह में हो सकता है। कपिल के रोल में रणबीर के अलावा टीम के दूसरे खिलाड़ियों के रोल में अभी किसी और कलाकार के नाम की घोषणा नहीं हुई है। कबीर खान का कहना है कि अभी कास्टिंग नहीं की गई है।

छठ पर ठेकुआ की परंपरा सदियों से निभाई जा रही है

ऋषिकेश,  सूर्य की उपासना का पर्व छठ पूर्वांचल से होते हुए उत्तराखंड में भी अपनी गहरी जड़ें जमा चुका है। बड़ी संख्या में यहां रह रहे पूर्वांचली छठ पर अपनी परंपराओं को बखूबी से निभाते हैं, सदियों से हर घर में ठेकुआ बनाया जाता है जो छठ का मुख्य प्रसाद होता है। उत्तराखंड में भी छठ की धूम बनी हुई है, मिनी पूर्वांचल के नाम से जाने वाला ऋषिकेश छठ के रंग में रंग चुका है, 36 घंटे के इस निर्जल उपवास में परंपरा का पूरा निर्वाह किया जाता है।

महिलाएं घर पर शुद्धता के साथ सदियों से चली आ रही ठेकुआ बनाने की परंपरा को निभाती आ रही है जो इस पर्व का मुख्य पकवान होता है और प्रसाद के रूप में इस को बांटा जाता है। शुद्धता और साफ सफाई से पूजा के लिए पूर्वांचली घर में महिलाएं गुड़, घी और गेहूं के आटे से घर में ठेकुआ बनाती है जो देखने में और खाने में अत्यंत ही स्वादिष्ट होता है। व्रत के तीसरे दिन जब उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

उसके पश्चात महिलाएं प्रसाद के रूप में ठेकुआ ग्रहण करती है और इस को बांटा जाता है। खाने में कुरकुरा और खस्ता ठेकुआ हर किसी का मन मोह लेता है। छठ का उपवास सबसे कठिन उपवास माना जाता है जिसमें महिलाएं 36 घंटे उपवास पर रहकर अपनी आस्था को परंपरा के साथ निभाती है।

 

40 दिन बाद भी लापता महंत मोहनदास का कोई सुराग नहीं

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हरिद्वार। स्वामी दीप्तानंद अवधूत आश्रम में महामंडलेश्वर स्वामी कृष्णानंद महाराज की अध्यक्षता में बैठक हुई। बैठक में स्वामी कृष्णानंद महाराज ने कहा कि लापता कोठारी महंत मोहनदास का 40 दिन बाद भी पता न लगना आश्चर्यजनक घटना है। जबकि, लापता महंत मोहनदास को ढूंढने के लिए उत्तराखण्ड सरकार ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया, मगर फिर भी पुलिस प्रशासन इस मामले में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई।

स्वामी कृष्णानंद ने कहा कि आज अचानक पुलिस प्रशासन की नींद टूटी तो पुलिस के आला अधिकारियों ने पंचायती बड़ा अखाड़ा उदासीन की तरफ रुख करके कुछ संत महंतों से पूछताछ की। ऐसा लगता है कि पुलिस प्रशासन इस मामले की गंभीरता को लेकर सजग हो चुकी है। वहीं हरिद्वार का संत समाज महंत मोहनदास को लेकर अभी भी चिन्तित दिखाई दे रहा है।
40 दिन बीत जाने के बाद भी जब पुलिस के हाथ खाली हैं तो फिर लापता महंत मोहनदास का पता कैसे चलेगा। लापता महंत मोहनदास के बारे में ना ही योगी सरकार कुछ कर पाई और ना ही भोपाल का पुलिस प्रशासन इस मामले में कुछ कर पाई। स्वामी कृष्णानंद महाराज ने कहा कि आखिर महंत मोहनदास को जमीन निगल गई या आसमान जिसका 40 दिन बाद भी अभी तक कोई सुराग न लगा। इस अवसर पर स्वामी प्रकाशानंद, स्वामी स्वरूप ब्रह्मचारी, महंत गोपालदास, म.म. महंत जसमेरदास महंत ब्रह्मानंद, महंत सुखदेवानंद, महंत साधनानंद सहित कई संत महंतों ने लापता महंत मोहनदास के अभी तक ना मिलने पर चिन्ता जताई।

डीएम ने दिए गोवंशीय पशुओं की टैगिंग करने के निर्देश

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मोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर में आयोजित जनपद स्तरीय पशुक्रूरता निवारण समिति की बैठक में जिलाधिकारी आशीष जोशी ने नगर पालिकाओं को निर्देश दिए कि गोवंशीय पशुओं की अनिवार्य रूप से टैगिंग करते हुए पंजीकरण किया जाए।

जिलाधिकारी ने जनपद में सभी नगर निकायों द्वारा अभी तक मात्र 856 पशुओं की टैगिंग किए जाने पर कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए सभी अधिशासी अधिकारियों को फटकार लगाते हुए गोवंशीय पशुओं का अनिवार्य रूप से पंजीकरण सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि पशुओं का टीकाकरण व इलाज करने से पूर्व गोवंशीय पशुओं का पंजीकरण करना सुनिश्चित किया जाए।

डीएम ने पशु चिकित्सा अधिकारियों व नगर पालिका के अधिकारियों को समन्वय बनाकर गोवंशीय पशुओं के पंजीकरण में तेजी लाने के निर्देश दिए तथा शहर क्षेत्र में आवारा घूमने वाले पशुओं के पशुपालकों से जुर्माना वसूलने को कहा। उन्होंने कहा कि पंजीकरण से पशुओं का बीमा होने से पशुपालकों को ही इसका लाभ मिलेगा तथा आवारा पशुओं की समस्या से निजात मिलेगी।

जिलाधिकारी ने नगर पालिकाओं के अधिशासी अधिकारियों को स्लाउटर हाउस के लिए भूमि का चयन कर आंगणन तैयार करने के भी निर्देश दिए। नगर निकायों में मीट की शाॅप को नियमानुसार संचालित कराने को कहा तथा बिना लाइसेंस के मीट बेचने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करने तथा मीट की दुकानों में साफ-सफाई पर भी विशेष ध्यान रखने को कहा। गोवंशीय पशुओं एवं बकरी, मुर्गियों को वाहनों में नियमानुसार लाने-ले जाने की व्यवस्था देखने के निर्देश भी दिए।

खेत-खलिहान से पहुंचने लगी धान की सोंधी खुशबू

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विकासनगर। मेहनत का अच्छा फल मिलने से मेहनतकश के चेहरे पर खुशी छा जाती है। इन दिनों पछवादून के काश्तकारों के चेहरे भी खुशी से खिले हुए हैं। विगत छह माह की मेहनत के बाद अब तक खेतों में छाई बासमती की सौंधी खुशबू काश्तकारों के घरों में आने लगी है। धान की अच्छी पैदावार से काश्तकार खुश हैं और जल्द से जल्द धान को खेत से खलिहान ले जाने में लगे हुए हैं।

पछवादून को धान की पैदावार के लिए जाना जाता है। कृषि प्रधान क्षेत्र होने के चलते यहां के ग्रामीण इलाकों में अधिकांश लोग खेती पर ही निर्भर हैं। काश्तकारों की सुविधा के लिए हालांकि सरकार ने भी पछवादून के को ऑपरेटिव सोसाइटी विकासनगर, हरबर्टपुर व सहसपुर में तीन धान विक्रय केंद्र खोले हैं जिनमें सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य 1550 रुपए प्रति कुंतल की दर से धान खरीदा जा रहा है लेकिन पर्याप्त प्रचार प्रसार के अभाव में काश्तकारों को इन केंद्रों की जानकारी नहीं मिल पा रही है।
गेहूं की फसल में नुकसान झेल चुके काश्तकार इस बार धान की अच्छी पैदावार होने से खुश नजर आ रहे हैं। हों भी क्यूं नहीं, काश्तकारों के घरों में खुशियां खेतों से गुजरकर ही आती हैं, खेतों में उगने वाली फसलों पर ही किसान की बेटी की शादी, बेटे के स्कूल की फीस सहित अन्य जिम्मेदारियां निर्भर होती हैं।
इन दिनों पछवादून के ग्रामीण अंचलों में धान की मंडाई में लगे किसान व उसके परिवार के सदस्यों के चेहरे पर सुनहरे भविष्य की खुशी साफ दिखाई दे रही है। मंडाई कर बासमती सहित अन्य किस्म की धान खेत से घर ले जाने के साथ ही किसान दूसरी फसल के लिए भी खेत तैयार करने में लग गए हैं, जिससे अगले फसल चक्र में भी परिवार में खुशी छाई रहे। बहरहाल इन दिनों खेतों में धान की मंडाई कर रहे किसानों के चेहरे खिले हुए हैं। 

चमोली तहसील में भूकंप को लेकर हुई माॅकड्रिल

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भूकंप से होने वाले जानमाल एवं परिसम्पत्तियों की क्षति को कम करने तथा रेस्क्यू आॅपरेशन को व्यवस्थित एवं प्रभावी ढंग से संचालित करने को लेकर चमोली तहसील प्रशासन द्वारा माॅक अभ्यास कराया गया।

सुबह जिले में तेज भूकंप के (काल्पनिक) झटके महसूस किए गए। तहसील चमोली को आपदा कंट्रोल रूम गोपेश्वर से सूचना प्राप्त हुई कि भूकंप से चमोली के पास नगर पालिका विश्राम गृह भवन क्षतिग्रस्त होने से कुछ व्यक्तियों के मलवे में दबे होने की आशंका व्यक्त की गई।

सूचना मिलते ही आपदा कंट्रोल रूम चमोली में तहसील स्तरीय आईआरएस सिस्टम के सभी नोडल अधिकारी एकत्रित हुए। भूकंप से नगर पालिका विश्राम गृह भवन चमोली एवं उसके आसपास के भवन क्षतिग्रस्त होने से 4 पुरूष गंभीर रूप से घायल तथा 10 पुरूष, 12 महिला तथा 6 बच्चों को सामान्य रूप से घायल दिखाया गया।

वहीं मलबे में दबने के कारण 2 पुरुष व 1 महिला को मृतक दिखाया गया।गंभीर रूप से घायल 4 व्यक्तियों को एम्बुलेंस से अपर बाजार चमोली स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया। माॅकड्रिल में डिप्टी रिसपोंसिबिल आॅफिसर/तहसीलदार चमोली सोहन सिंह रांगड, तहसील स्तरीय आईआरएस के सभी नोडल अधिकारी, पुलिस, पीआरडी, विकास विभाग, स्वास्थ्य, लोनिवि, वन, पेयजल आदि विभागीय अधिकारी व कर्मचारी शामिल थे।

हाईकोर्ट के आदेश से लोनिवि के 1200 वर्कचार्ज कर्मचारियों के चेहरों पर खुशी

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देहरादून। लोक निर्माण विभाग (लोनिवि) के करीब 1200 वर्कचार्ज कर्मचारियों के लिए राहतभरी खबर है। विभाग में वे कर्मचारी भी अब पेंशन के हकदार होंगे, जो एक अक्टूबर 2005 या इसके बाद नियमित हुए हैं। हाईकोर्ट के आदेश के क्रम में अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने इस बाबत प्रमुख अभियंता को निर्देश जारी कर दिए हैं।

लोनिवि में प्रदेशभर में करीब 1200 वर्कचार्ज कर्मचारी नई पेंशन नीति लागू होने की तिथि एक अक्तूबर 2005 या इसके बाद नियमित किए गए। जबकि, इनकी नियुक्ति इस तिथि से पहले ही विभाग में की जा चुकी थी। विभाग ने ऐसे कर्मचारियों को पेंशन का लाभ देने से इन्कार कर दिया था। अधिकारियों का तर्क था कि इन कर्मचारियों का नियमितीकरण नई पेंशन नीति लागू होने के बाद हुआ है, लिहाजा ये पेंशन के हकदार नहीं होंगे। इसको लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी और कोर्ट ने माना था कि ऐसे सभी कर्मचारियों को पेंशन का लाभ मिलेगा, जो एक अक्टूबर 2005 या इसके बाद नियमित हुए हैं। हालांकि इसके लिए किसी भी वर्कचार्ज कर्मचारी की नियुक्ति इस तिथि से पहले होनी चाहिए और उन्होंने विभाग में 10 साल भी सेवा संतोषजनक रूप से पूरी कर ली हो। हाईकोर्ट के इस आशय का आदेश जारी होने और उस पर अपर मुख्य सचिव के निर्देश मिलने के बाद लोनिवि ने इस दायरे में आने वाले कर्मचारियों की सूची तैयार करने की कार्रवाई शुरू कर दी है। मुख्य अभियंता स्तर-एक स्तर से सभी सर्किल कार्यालयों को इसका ब्योरा मांगा गया है।
वित्तीय भार का आकलन समझ से परे
लोनिवि दैनिक/नियमित कार्यप्रभारित कर्मचारी यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष बाबू खान का कहना है कि संगठन के अथक प्रयास के बाद कोर्ट से वर्कचार्ज कर्मचारियों को उनका अधिकार देने का रास्ता खुल पाया है। विभाग ने इसकी कसरत भी शुरू कर दी है, लेकिन कर्मचारियों का ब्योरा जुटाने के साथ ही अधिकारी इससे पड़ने वाले व्यय भार व वार्षिक व्यय भार की जानकारी भी मांग रहे हैं। यह बात समझ से परे है कि जिस कर्मचारी को भविष्य में रिटायर होने है, उसकी पेंशन के व्यय भार का आकलन आज कैसे किया जा सकता है। इस औपचारिकता से अनावश्यक रूप से प्रकरण की पेचीदगी बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।

आधार अपलोड नहीं किया तो रुकेगा वेतन

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आधार कार्ड

देहरादून। जिन शिक्षकों ने अब तक भारत सरकार के वेबसाइट या पोर्टल पर आधार नम्बर अपलोड नहीं किया है उनके पास 15 नवंबर तक का ही समय है। अगर 15 नवंबर तक जानकारी अपलोड नहीं की तो अगले माह यानि नवंबर से ऐसे शिक्षकों का वेतन रुक जाएगा। साथ ही स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की पूरी जानकारी भी अपलोड करने का आखिरी मौका दिया गया है।

सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को आधार नम्बर से लिंक करने के लिए आखिरी मौका दिया गया है। इस बाबत डीजी की ओर से पहले भी आदेश जारी किया जा चुका है। जिसमें स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि शिक्षकों के आधार नम्बर व छात्रों के आधार नम्बर संबधी शत प्रतिशत विवरण भी भारत सरकार के बेब साइट या पोर्टल पर अपलोड करना होगा। आदेश में यह भी कहा गया है कि 15 नवंबर तक सभी शिक्षकों के आधार कार्ड से संबधित विवरण भारत सरकार के पोर्टल पर अपलोड करना होगा। नहीं तो ऐसे शिक्षकों के वेतन रोकने की कार्यवाही की जाएगी।
मुख्य शिक्षा अधिकारी एसबी जोशी ने बताया कि ये भारत सरकार की आधार अनिवार्य करने की योजना है। जिसको शिक्षा विभाग भी फॉलो कर रहा है। उन्होंने बताया कि केन्द्र से ऐसा सिस्टम जनरेट किया गया है जिसमें आधार नम्बर न होने की स्थिति में सेलरी भी रूक जाऐगी। मामले में मुख्य शिक्षा अधिकारी एसबी जोशी ने बताया कि छात्रों का डाटा बेस एमआईएस से संबधित जिन 2411 स्कूलों ने अब तक डाटा फीड नहीं किया है। उनके पास आखिरी मौका है। शिक्षा विभाग ने ऐसे 2411 स्कूलों को उनके खंड शिक्षा अधिकारी व स्कूल के प्रिंसिपल को पत्र लिखकर निर्देश जारी किए गए हैं। ऐसे स्कूलों को 30 अक्टूबर 2017 तक डाटा फीड करने के निर्देश दिए गए हैं। ऐसे स्कूलों के पास सिर्फ 04 दिन शेष हैं।

भारत से सम्मान के लिए चुने गए तीन लोगों में एक छात्रा दून की

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देहरादून। पर्यावरण व हरित क्षेत्र में योगदान देने पर दून की छात्रा जयंती त्रिवेदी को जर्मनी में ग्रीन टैलेंट अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। इस अवार्ड के लिए देश से तीन लोगों का चयन किया गया है। जिसमें एक उत्तराखंड से जयंती त्रिवेदी है।

जयंती दून में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम में पीएचडी की छात्रा है। जर्मन अनुसंधान मंत्री प्रोफेसर जोहान्ना वांका के नेतृत्व में इस साल नौंवी बार ग्रीन टैलेंट अवार्ड का आयोजन किया जा रहा है। इसमें युवा प्रतिभाशाली अनुसंधानकर्ताओं को सम्मानित किया जाता है। अवार्ड के लिए विशेषज्ञों की एक हाई रैंकिंग जूरी ने 95 देशों से आए 602 आवेदनों में से 25 वैज्ञानिकों को चुना है।
इस पुरस्कार में ग्रीन टेलेंट्स-इंटरनेशनल फोरम फॉर हाई पोटेंशियल्स इन सस्टेनेबल डेवलपमेंट का टिकट शामिल है। इस साल यह अवार्ड स्थाई उत्पादन एवं उपभोग पर केंद्रित किया जाएगा। अवार्ड से सम्मानित वैज्ञानिकों को दो महीनों के लिए जर्मनी में एक अनुसंधान का अवसर भी मिलेगा। साथ ही यह वैज्ञानिक कई अग्रणी विशेषज्ञों और जाने माने अनुसंधान संस्थानों व कंपनियों के साथ संवाद का मौका मिलेगा।
इसके अलावा विजेताओं को 2018 में जर्मनी में अपनी पसंद की एक कंपनी में अनुसंधान का मौका मिलेगा, जिसका खर्च ग्रीन टैलेंट द्वारा उठाया जाएगा। सम्मान समारोह में विभिन्न संस्थानों के वरिष्ठ सदस्य, जूरी सदस्य, दूतावासों के प्रतिनिधि आदि शिरकत करेंगे। पुरस्कार समारोह का आयोजन बर्लिन की फेडरल मिनिस्ट्री में होगा।

पलायन एक चिंतन: भराड्सर ताल, भाग-4

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दिनांक-13-10-2017

इस ट्रेकिंग के दौरान बीते दिनों की सुबह से कुछ अलग ये सुबह थी। आज “हिमालय दिग्दर्शन” की पदयात्रा का आखिरी दिन था। बहुत दिनों से उच्च हिमालयी क्षेत्र में पानी की किल्लत के चलते ढ़ंग से मुंह तक नहीं धो सके थे। इसलिए नजदीक में बह रहे पानी के छोटे झरने पर अच्छे ढंग से सेविंग के साथ देह को धोया गया। सुबह नाश्ते/भोजन के रूप में तैयार खिचड़ी को अंतिम वन प्रसाद के रूप में बड़े चाव के साथ खाया गया।

सफर में हमारे साथ चल रहे पोटर और गाइड को तो मोरी बाजार तक हमारे साथ चलना था, लेकिन खच्चरों को आज भितरी गाँव से वापस इसी रास्ते से लौटना था। अतः इस कठिन सफर के मध्यनजर नेत्रपाल यादव जी द्वारा एक स्लीपिंग बैग, रतन भाई ने एक टार्च और मैंने रैनकोट के साथ बच गये प्रयाप्त भूने हुऐ चने और किशमिश किर्तम मामटी को भविष्य की शुभकामनाओं सहित भेंट स्वरूप दिये।

पिठु फिर पीठ पर कसा गया और ढ़लान दार पहाड़ी रास्ते पर हमारा कारवां आगे बढ़ा। जंगल का वातावरण और घिसा हुआ रास्ता आस पास गाँव की नजदीकी का एहसास करा रहा था। कुछ जगह पर तो जंगली सूंअरों के झुंडों द्वारा खुर्द-पुर्द जमीन दिख रही थी। रास्ते पहले से थोड़ा ठीक और बरसाती नालों पर जंगलात के लकड़ी के बने नये पुल नजर आ रहे थे।

चलते-चलते मुकेश बहुगुणा द्वारा गांधी दर्शन पर शानदार परिचर्चा और वर्तमान राजनीतिक दृष्टिकोण काबिले तारीफ था।वायुसेना में 20 साल की नौकरी के दौरान हिमालयी क्षेत्रों में घासाहारी से मांसाहारी बने उनके जोखिम भरे अनुभव शानदार थे। गपशप में मशगूल अचानक हमारे सामने से एक पालतू मृत पशु से गिद्धों का एक बड़ा झुंड उड़ा। पूरे राष्ट्रीय गोविंद वन पशु बिहार के इस आरक्षित वन क्षेत्र के भ्रमण में हमें आश्चर्य जनक रूप में ये पहले वन्य जीव दिखाई दिये। थोड़ा आगे बढ़े तो अचानक एक बड़ा बरसाती नाला हमारे रास्ते को निगला हुआ नजर आया। उसे पार करना थोड़ा कठिन था लेकिन पहले अरविंद धस्माना फिर मैंने और तनु जोशी तथा गणेश काला ने उसे पार किया। टीम लीडर रतन असवाल ने जंगल में बिना कोई जोखिम लिये ऊपर बने रास्ते से चलने की हिदायत दी।

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पूरे जंगल में एक बात जो हम देख और समझ पा रहे था वो ये थी की जगह-जगह टूटे पेड़ जहाँ-तहाँ पड़े सड़ रहे थे। इन पेड़ों को अगर यहाँ के ग्रामीणों को घर बनाने के लिये दे दिया जाये तो इस वन संपदा का सदुपयोग हो जाता। लेकिन जंगल का तो काला कानून ठैरा सड़ जाये मगर जंगल का माल जंगल में ही रहना चाहिए। यही कारण है जो ग्रामीण अपनी इस जरूरत के लिये और तरीके अपनाने को मजबूर हैं।

उतरती ढलान भरे रास्ते से अब मिशरी गाँव और भीतरी गांव की छानीयां नजर आने लगी। हरे-भरे पहाड़ी खेतों-बगीचों में काम करते लोग। जंगल को चरने के लिये जाते पालतू पशुओं के झुंड पहाड़ी ग्रामीण समाज की अदभुत छट्टा पेश कर रहे थे। हर कोई रास्ते का अंजान ग्रामीण भी प्रणाम कर हमारा अभिवादन कर रहा था। खेती-बाड़ी के औजारों से सुसज्जित मेरे इस पहाड़ के ये अन्नदाता अपने महान उपक्रम पर गतिशील थे। खामोश जंगल से निकल इस मानवीय शौरगुल का एहसास बार-बार मोबाइल नेटवर्क की आस जगा रहा थे लेकिन अंबानी के जीयो से लेकर भारत सरकार के बीएसनएल के सिग्नल तक यहाँ से नदारद थे। देश में मेक इन इंडिया से लेकर बुलेट ट्रेन तक दावों से कोसों दूर हम बिना बिजली के सुदूर पहाड़ के इस ग्रामीण परिवेश में भीतरी गाँव की तरफ बढ़ रहे थे।

सबको बराबर समझने के लिये मैं हर बार हमराही बदल बदल कर चल रहा था। मैं अब भाई अरविंद धस्माना की मीठी बातचीत के सुनते हुए चल रहा था। भीतरी गांव से ठीक पहले राज्य के वरिष्ठ नौकरशाहों के सेब बगानों में बने हिमांचल शैली के ताजा-तरीन बंगले भी इस पिछड़े क्षेत्र पर हो रहे अतिक्रमण की दुहाई दे रहे थे। भितरी गाँव पंहुचे तो ग्रामीण बूढ़ी औरतों ने हम से बुखार की दवा मांगी जो हमारे पास नहीं थी तो उन्होंने फिर कान दर्द और पेट दर्द की दवा मांगी। फिर धिरे-धिरे मामला समझ आया की ये बदहाल पड़ी स्वास्थ्य व्यवस्था के चलते यहाँ आने वाले पर्यटकों से दवाओं के मिलने का सहारा रखते है जो बुरे वक्त में इनके काम आ जाती है।

अंततोगत्वा सड़क पर पंहुचे तो एक छोर पर सामान और अन्य साथियों के साथ रतन असवाल नजर आये। उन्होंने मुझे फोन द्वारा मोरी से गाड़ी मंगवाने के लिये कहा। दोपहर के लगभग एक बजे तक गाँव की सभी गाड़ीयां मोरी जा चुकी थी जो शाम ढ़लते ही वापस गांव लौटती थी। हमारे फोन पर बीएसनएल का कनेक्शन होने बावजूद नेटवर्क नही आ रहा था, तो मुकेश बहुगुणा ने मुझे हिदायत दी की थोड़ी दूर पर स्थित सरकारी स्कूल में जाकर वहां अध्यापकों से इस बाबत कुछ मदद ले ली जाये। भारी थकान के बावजूद वस्तु स्थिति के मध्यनजर मैं तुरंत उनके साथ स्कूल के लिये चल पड़ा। ऐसे दूरस्थ क्षेत्र मे सरकारी स्कूल विदेश में फंसे आदमी के लिये भारतीय दूतावास से कम नहीं होते। अंजान जगह में यह काफी राहत देय होता है।वहां पंहुच कर एक अध्यापक के फोन से मैंने मोरी से अपने स्थानीय साथी अमर सिंह से तत्काल दो गाड़ीयां भेजने का अनुरोध किया। पांच मिनट बाद फोन पर अमर सिंह ने दो यूटीलटी टैक्सीयां भेजने की सूचना भेजी तो राहत महसूस हुई। लगे हाथ अपने-अपने घर पर फोन कर खैरियत जान हम वापस अन्य साथियों के पास लौट गये।

टैक्सीयों के आने में लगभग दो घंटे का समय बाकी था। हम गाँव की सड़क के एक छोर पर गाड़ी की प्रतीक्षारत मुसाफ़िरों की तरह बैठे थे। मैं इस गाँव में पहले भी एक बार रतन असवाल और सुभाष तराण के साथ आया था। हम नौजवान साथी सकलचंद के घर रूके थे जो आज गांव में नहीं था।यहाँ के बदइंतजाम हालात पर हमने तब भी काफी कुछ लिखा था। रतन भाई ने तो शासन में लड़-झगड़ कर यहाँ लाइट पंहुचाने के लिये जोर दिया था। अब यहाँ आये हैं तो गाँव में बिजली के कुछ नये खंभे गड़े दिखाई दिये हैं। इन खंबों पार तारों का झूलना और बिजली दौड़ना अभी दूर की कौड़ी साबित जान पड़ता था। जबकि ठीक सामने नदी के उस पार हिमांचल के गाँव रात को बिजली की रोशनी से चमचमाते नजर आते थे। खैर “किस की माँ को मौसी बोलें” वाले एहसास से पहाड़ के ये गाँव वाफिक थे।

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थोड़ी देर बाद स्कूल के एक अध्यापक कृष्ण कुमार शाह हमारे पास आये और घर में चलकर चाय-पानी पीने का अनुरोध किया। उनका घर गाँव के सबसे ऊपरी छोर पर था और सब बहुत थके थे तो सब ने ठीक है, ठीक है, कोई बात नहीं जैसे जवाबों से ससम्मान मना करा दिया। अंततः मैंने और मुकेश बहुगुणा तथा अरविंद धस्माना ने गुरूजी के साथ चलने का फैसला किया।

भीतरी इस इलाके का काफी बड़ा गाँव है। लोक मान्यताओं के अनुसार ये यौद्धाओं का गाँव है, जिन्हें स्थानीय भाषा में खूंद कहा जाता है। विश्व के महान भारतीय रेसलर द ग्रेट खली के पूर्वज भी कभी इसी गाँव से हिमांचल में बस गये थे। जो आज भी इसी गाँव के अराध्य ग्राम देवता सैड़कुडिये महाराज को कुल देवता के रूप में पूजते हैं। गाँव के भवन पत्थर और लकड़ी की नकाशेदार शैली की स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने थे। कृषी एवं पशु-पालन, के साथ भेड़ की ऊन के कुछ बुनकर परिवार भी थे। जिन्हें यहाँ किनौर हिमांचल से बसे होने कारण किनौरी कहा जाता है।

सरकार की तमाम दुश्वारियों के बावजूद ये गाँव शून्य पलायन वाला गाँव था। यही एक कारण “पलायन एक चिंतन” दल के हमारे साथियों को बार-बार शोध हेतु टौंस और यमुनाघाटी के इन गाँवों में खींच लाता है। हम यहाँ आकर ये समझने की कोशिश करते है की आखिर वो कौन सी ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था है जो यहाँ से शून्य पलायन का मुख्य कारण है। इस समाधान की तरफ हमने काफी कुछ ठोस कारणों के दस्तावेज तैयार किये हैं जो हमारे इस राज्य के पलायन से बंजर हो चुके गांवों के लिये भविष्य में संजीवनी साबित होगें। हमारी लोक-कला-संस्कृति से फलीभूत यह गाँव हमेशा हरा-भरा रहे, यही हमारी ईश्वर से कामना रहेगी।

काफी ऊपर गाँव में मंदिर के पास एक दुकान से हमने नकली मैगी के 10-15 पैकट लेकर गुरूजी के कमरे में गाँव वालों के सहयोग से बड़े पतीले में मैगी तैयार करायी। गुरूजी के कमरे में सुसज्जित देवदार के पलंग पर पैर लंबे कर हमने थकान मिटाते हुऐ चाय की चुस्कियों का आनंद उठाया। गुरूजी से परिचय बढ़ाया तो पता चला वे उत्तरकाशी के रहने वाले तथा मेरे बचपन के सहपाठी दोस्त रमेश शाह के बड़े भाई हैं। काफ़ी देर होने के कारण हमारा गाइड सुरेन्द्र हमें ढूंढता हुआ वहीं पंहुच गया। उसने बताया की रतन भाई ने जल्दी नीचे सड़क पर बुलाया है। हम भी सबके लिये फटाफट मैगी बाल्टी में भर सड़क की तरफ तेजी से चल पड़े।

आसपास के घरों से थालीयां मंगवाकर और पत्यूड़ के पत्तों पर सभी साथियों को मैगी का भंडारा खिला कर सबका साधुवाद प्राप्त किया। लगभग शाम के 4 बज चुके थे लेकिन हमारी गाड़ीयों का कोई पता नहीं था। अंततः हमने बारिश की संभावना के मध्यनजर अभी अभी गाँव में पंहुची एक यूटीलीटी गाड़ी को मोरी जाने के लिये बुक किया। सारा सामान पीछे डालकर गाड़ी की छत और अंदर सीटों पर जगह बना ली। लगभग 6 किलो मीटर चलने के बाद हमें हमारी दोनों यूटीलीटी गाड़ीयां सरपट चढ़ाई पर चढ़ती नजर आयी। जिन्हें रूकवाकर हमने सारा सामान उनमें शिफ्ट करते हुऐ नैटवाड़ से मोरी पंहुच गये। अश्वमार्ग से भी बदहाल सड़क पर मोरी आते आते रात हो गयी थी।

लोक निर्माण विभाग के गेस्ट हाऊस से हमने अपने इस पैदल अभियान के गाइड सुरेन्द्र और पोटर जुनैल को नियमित भुगतान कर विदाई ली। वहां पहले से खड़े मुकेश बहुगुणा के नीजी वाहन तथा एक और अन्य लोकल टैक्सी से हम सब कुकरेड़ा-तलवाड गाँव के लिये निकल पड़े।

त्यूणी के निकट टौंस नदी के ठीक किनारे बसे इस तलवाड़ गाँव में जब हम पंहुचे तो “पलायन एक चिंतन” के साथी और ग्राम प्रधान चत्तर सिंह ने स्थानीय वादय यंत्रों से गांव वासियों के साथ हमारा खूब गर्मजोशी से स्वागत किया। यहां पहले से मौजूद हमारे अजीज साथी अखिलेश डिमरी और विनय केडी, समय साक्ष्य प्रकाशन के प्रवीण भट्ट से मिलकर खुशी का ठिकाना ना रहा। ये सभी साथी आज ही देहरादून से यहां कल आयोजित होने वाली गोष्ठी में शामिल होने को पंहुचे थे।

मैने रात को गर्म पानी से नहाकर खुद को तरोतजा किया। सभी घासखारीयों को साग-सब्जी और मांसभक्षीयों को मीट-भात खिलाया गया। यात्रा के अनुभवों पर बातचीत करते हुऐ हम सब गर्म और नर्म बिस्तर के अंदर दुबक कर गहरी नींद में डूब गये।