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मकर सक्रांति पर बाजार गुलजार

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ऋषिकेश। लोहड़ी और मकर संक्रांति पर्व को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं। घर-घर में महिलाएं परंपरागत तिल और गुड़ के लड्डू बनाने में व्यस्त हैं तो वहीं शनिवार को शहर के बाजार गुलजार नजर आए।
संक्रांति के दिन सुहागन महिलाएं एक-दूसरे को मिट्टी के सुघड़ (वाण) देंगी। सुघड़ में खिचड़ी, गन्ना, गाजर, हरा छोड़, बेर आदि सामग्री भरी जाती है। मंदिर में महिलाएं सुघड़ का आदान-प्रदान कर एक-दूसरे को हल्दी-कुमकुम लगाकर वस्तु का दान करेंगी। रेलवे रोड पर गजक, मूंगफली और अन्य जरूरी सामान लेने के लिए दुकानों पर लोगों की भीड़ लगी रही। इन सबके बीच खुशियों के त्योहार लोहड़ी पर्व के लिए भी शनिवार को लोगों ने बाजारों में जमकर खरीदारी की। त्योहार के चलते मंदी से परेशान दुकानदारों के चेहरे खुशी से खिल उठे।

भेल ने डिस्पैच किया 800 मेगावाट सुपर क्रिटिकल जनरेटर

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हरिद्वार। पूरी तरह स्वदेश में निर्मित 800 मेगावाट सुपर क्रिटिकल जनरेटर का सफल उत्पादन कर भेल ने एक बार फिर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। इस जनरेटर की आपूर्ति आंध्र प्रदेश पावर जनरेशन कार्पोरेशन (एपीजेंको) के कृष्णा पटनम थर्मल पावर प्रोजेक्ट हेतु की गई है।

शुक्रवार को एपीजेंको के निदेशक (थर्मल) एमपी सुन्दर सिंह ने हरी झंडी दिखाकर जनरेटर को रवाना किया। उन्होंने बीएचईएल के इस योगदान को महत्वपूर्ण बताते हुए हीप के सभी कर्मचारियों का आभार व्यक्त जताया। महाप्रबन्धक (ईएम) एके साहा ने कहा कि यह संस्थान के सभी कर्मचारियों की कड़ी मेहनत और लगन का नतीजा है। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए महाप्रबन्धक-प्रभारी (हीप) संजय गुलाटी ने भी अपनी शुभकामनाएं दीं। उन्होंने इसे प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया कार्यक्रम की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताते हुए कहा कि सुपर क्रिटिकल जनरेटर के निर्माण में उच्च तकनीकी दक्षता तथा कौशल जरूरी होता है और इस जनरेटर का सफलतापूर्वक निर्माण कर बीएचईएल हरिद्वार ने अपनी तकनीकी दक्षता साबित कर दी है।
उल्लेखनीय है कि यह जनरेटर सबसे अधिक वोल्टेज 27 केवी पर विद्युत उत्पादन करता है। अति आधुनिक तकनीक से निर्मित 800 मेगावाट जनरेटर में कॉपर की जगह स्टील के हॉलो कण्डक्टर्स का प्रयोग किया गया है। इसकी डिजाइन, निर्माण तथा टेस्टिंग का काम पूरी तरह से हरिद्वार इकाई में ही किया गया है। इसके ट्रांसपोर्टेशन के लिए विशेष चौड़ाई वाले 24 एक्सल के ट्रेलर का प्रयोग किया गया है। यह ट्रांसपोर्टेशन मल्टी माडल विधि से किया जाएगा, जिसमें सड़क मार्ग व जल मार्ग शामिल हैं। इस अवसर पर (सीजीएम कृष्णापटनम) जे राघवेन्द्र राव, मुख्य अभियन्ता (एपीजेंको) के सुधीर बाबू, महाप्रबंधक (सीडीएक्स एवं वाणिज्य) आईजेएस सन्धू, महाप्रबंधक (ईएम) विवेक कुमार, अनेक महाप्रबंधक, यूनियन एवं एसोसिएशन के प्रतिनिधि तथा बड़ी संख्या में वरिष्ठ अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित रहे।

किलवेस्ट मशीन का सीएम ने किया शुभारंभ

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देहरादून। ‘रिस्पना से ऋषिपर्णा नदी कार्यक्रम’ के तहत रिस्पना नदी की सफाई के लिए स्थापित किलवेस्ट मशीन का शुक्रवार को शुभारंभ किया गया। इस मौके पर सीएम ने एक मोबाइल ऐप का शुभारंभ भी किया। सीएम ने इस मौके पर कहा कि नदियों के संरक्षण के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ ही जनसहभागिता भी जरूरी है।
शुक्रवार को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने विधानसभा के निकट आयोजित कार्यक्रम में मशीन का शुभारंभ किया। कार्यक्रम ईको टास्क फोर्स और उत्तराखण्ड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र(यूसर्क) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। मुख्यमंत्री ने रिस्पना नदी के पुनर्जीवीकरण अभियान से सम्बन्धित एक मोबाइल एप्लीकेशन का भी शुभारम्भ किया। यूसर्क द्वारा विकसित की गई इस एप्लीकेशन को गुगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है।
इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि रिस्पना नदी के पुनर्जीवन के लिये दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति के साथ-साथ व्यापक जनसहभागिता की आवश्यकता होगी। रिस्पना और कोसी नदियों का पुनर्जीवन सरकार की प्रतिबद्धता है। स्वच्छता अभियान और नदियों के पुनर्जीवीकरण अभियान के लिए सरकार के साथ-साथ आमजन का व्यापक सहयोग जरूरी है। इस विषय में लोगों को ऐसे ही सोचना चाहिए जैसे वे अपने घर की स्वच्छता के बारे में सोचते हैं। मिशन रिस्पना से ऋषिपर्णा पर मुख्यमंत्री ने कहा कि एक ही दिन में नदी के उद्गम से अन्तिम छोर तक स्वच्छता अभियान चलाने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर लोगों के सहयोग की जरूरत है। इसके लिए हर आयु वर्ग के लोगों को अपना सक्रिय सहयोग देना पड़ेगा। बच्चों को स्वच्छता अभियान एवं पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने के लिये सरकार ने जूनियर ईको टास्क फोर्स का गठन किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए भविष्य के जल प्रबन्धन पर अभी से विचार करने की जरूरत है। वर्षा जल को एकत्रित करना आवश्यक है। हमारी नदियां जीवित रहें, सदा बहती रहें और हमारी आवश्यकता का बड़ा हिस्सा वर्षा जल संचय से पूरा हो। देहरादून शहर और आसपास की जनसंख्या के लिये ग्रेविटी बेस्ड जल आपूर्ति की व्यवस्था करने पर विचार किया जा रहा है।
स्थानीय विधायक उमेश शर्मा ‘काऊ’ ने कहा कि रिस्पना और बिन्दाल देहरादून की लाइफ लाइन हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि साबरमती नदी की तरह रिस्पना नदी भी अपने पुराने गौरव को प्राप्त करेगी। ईको टास्क फोर्स के कर्नल राणा ने बताया कि रिस्पना नदी के पुनर्जीवीकरण के लिए माइक्रो प्लान बनाया जा रहा है। नदी के कैचमेंट एरिया का एरियल सर्वे भी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगस्त-सितम्बर तक रिस्पना नदी काफी अच्छी स्थिति में दिखाई देगी। यूसर्क के निदेशक दुर्गेश पन्त ने कहा कि रिस्पना नदी की थ्री-डी मॉडलिंग और रिवर मॉर्फोलॉजी का काम चल रहा है। किलवेस्ट मशीन की जानकारी देते हुए बताया कि यह एक आधुनिक ईंधन मुक्त सॉलिड वेस्ट डिस्पॉजर है, जोकि पूर्णतः ईको फ्रेण्डली और कम लागत वाली है। यह मशीन नियंत्रित वायु आपूर्ति के माध्यम से नियंत्रित दहन(कम्बशन) प्रणाली पर कार्य करती है। कूड़े की मात्रा के अनुसार यह मशीन विभिन्न आकारों में निर्मित की जाती है। कार्यक्रम को परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानन्द मुनि और किलवेस्ट मशीन के निर्माता लक्ष्मण शास्त्री ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री के विशेष कार्याधिकारी धीरेन्द्र सिंह पंवार सहित अन्य गणमान्य एवं अधिकारी मौजूद थे।

बंदरों के आतंक से परेशान लोग

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विकासनगर। छावनी क्षेत्र में इन दिनो लोग बंदरो के आतंक से खासे परेशान है। जहां-तहां घूम रहे बंदरों के कारण लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो गया है। स्थानीय लोगों ने छावनी प्रशासन से बन्दरो को पकड़ने की मांग की है।

पूर्व में छावनी परिषद द्वारा बन्दरो को पकड़वाया गया था। जिसके बाद इनके आतंक से निजात मिली थी, लेकिन अब दोबारा बंदरो की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। जिसके कारण दोबारा इनका आतंक बड़ गया है। स्थानीय निवासी मोनित दुसेजा विनय शर्मा साकेत महेश्वरी गीताराम शर्मा राजेन्द्र चौहान आदि का कहना है कि बन्दरो के आतंक का आलम यह है कि सुबह बच्चो के स्कूल जाते समय बन्दर जगह जगह झुंड बना कर बैठ जाते है। जिससे बच्चों का सड़क पर चलना दूभर हो रखा है, अभिभावकों को सुबह बच्चो के साथ स्कूल तक जाना पड़ रहा है। साथ ही बंदर सड़क पर चल रहे लोगो से उनके हाथ से सामान तक छीन कर ले जाते हैं। लोगों ने छावनी प्रशासन से बन्दरों को दोबारा पकड़वा इन्हें अन्यत्र जंगलो में छुड़वा। इनके आतंक से निजात दिलाने की मांग करी है। परिषद के सभासद आंनद सिंह राणा का कहना है कि मामले को आगामी बोर्ड में रख बंदरों को पकड़ने की निविदाएं लगवाई जाएंगी।

रात को सोये सुबह उठे तो एक की मौत चार बीमार

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काशीपुर में एक ही परिवार के पांच सदस्यों को रात को दूध पीना इतना भारी पड गया कि पांचों को फूड प्वाजन हो गया, जिससे एक महिला की मौत हो गयी जबकि परिवार के ही चार सदस्यों की हालत गम्भीर बनी है। जिनको शहर के ही एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है, बताया जा रहा है कि पुरा परिवार रात खाना खाने के बाद दूध पीकर सो गया था। लेकिन सुबह जब सभी लोग उठे तो सभी की तबीयत खराब थी, परिवार के सभी सदस्यों को उल्टी और सर दर्द की शिकायत थी। लेकिन अस्पताल जाने से पहले ही महिला की मौत हो गयी जबकि महिला की मौत के बाद परिवार के लोग घबरा गये और आनन फानन में अस्पताल पहुंचे तो इलाज के दौरान चिकित्सकों ने बताया कि प्रथम दृश्टया फूड प्वायजन की बात सामने आयी है, फिलहाल मामले की जांच अब पुलिस ने शुरु कर दी है।

राजस्व पुलिस व्यवस्था हटने से बेहतर होगी कानून व्यवस्था: अशोक कुमार

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उत्तराखण्ड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को सदियों पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था को छह माह में ख़त्म कर रैग्युलर पुलिस के लिए थाने बनाकर स्थापित करने के आदेश दिए हैं। वरिष्ठ न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति अलोक सिंह की खण्डपीठ ने टिहरी गढ़वाल में सन 2011 के  दहेज़ हत्याकाण्ड में सजायाफ्ता आरोपी की याचिका को ख़ारिज करते हुए राजस्व पुलिस की कार्यवाही पर सवाल उठाए हैं।

दरअसल राज्य में अभी भी एक बड़ा हिस्सा राजस्व पुलिस के अंतर्गत आता है। वहीं एडीजी लॉ एंड ऑर्डर अशोक कुमार ने टीम न्यूज़पोस्ट से बातचीत में कहा कि “हाईकोर्ट के इस आर्डर का मैं पूरी तरह से समर्थन करुंगा।अब वो समय नहीं रहा कि हम राजस्व पुलिस व्यवस्था के साथ चले। पहले बात कुछ और थी और सरकार का एक नुमाइंदा पूरे गांव की समस्याओं का समाधान कर देता था।लेकिन बदलते समय के साथ सड़के बढ़ी है,ट्रैफिक बढ़ा है,ड्रग की समस्या,कुमाऊं के कुछ क्षेत्रों में माओवादीयों का डर होने के साथ-साथ बहुत सी चीजें राज्य में बदली हैं। उत्तराखंड में बहुत से नए चैलेंज आ गए हैं, क्राइम रेट बढ़ा हैं और इन सबसे लड़ने के लिए राजस्व पुलिस तैयार नहीं है।हर गांव और क्षेत्रों में एक सरकारी नुमाइंदा कहां तक व्यवस्था को बना कर रख पाएगा।ऐसे में पूरी तरह से पुलिसिंग का होना जरुरी हो गया है।”

राज्य पुलिस ने अपनी तरफ से इस बदलाव की तैयारियां भी कर ली हैं। अशोक कुमार ने बताया कि “हर थाने और 39 चौकी में इसके लिए पहल शुरु कर दी गई है और आगे जरुरत के हिसाब से हम अलग-अलग क्षेत्रों में और पुलिस सुविधा बढ़ा सकते हैं।पुलिसिंग होने से चीजें बेहतर हो जाऐंगी और तेजी से हो रहे शहरीकरण,क्राइम,ट्रैफिक और ड्रग्स जैसे बड़ी दिक्कतों से सामना करने को पुलिस तैयार भी है।”

राज्य बनने के बाद लगभग 20-25 जगहों पर राजस्व पुलिस को हटाकर बदलाव किए जा चुके हैंं लेकिन पूरी तरह से इसके लागू होने के बाद पुलिस को कानून व्यवस्था बनाये रखने में आसानी होगी।

वहीं हाई कोर्ट ने नैनीताल जिले के वनभूलपुरा थाने और ऋषिकेश थाने के देश के टॉप दस थानों में नाम आने पर यहाँ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों की सराहना की है। न्यायालय ने राज्य में पुलिस प्रशिक्षण संस्थान, पुलिस प्रशिक्षण स्कूल, पुलिस अकेडमी और अन्य प्रशिक्षण केंद्र खोलने को भी कहा है।

स्वास्थ्य विभाग करेगा लंबे वक्त से गायब चिकित्सकों की ‘छुट्टी’

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देहरादून। ड्यूटी से गायब चिकित्सकों को स्वास्थ्य विभाग अब बख्शने के मूड में नहीं है। स्वास्थ्य सचिव नितेश कुमार झा ने इन्हें चिह्नित कर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। कार्यस्थल से लंबे समय से अनुपस्थित चिकित्सकों की अब विभाग से छुट्टी होगी। स्वास्थ्य सचिव ने अधिकारियों को निर्देशित किया कि इन चिकित्सकों को अविलम्ब सेवा से हटाने की संस्तुति शासन से की जाए।

राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए स्वास्थ्य सचिव ने विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों व जनपदों के प्रमुख स्वास्थ्य अधिकारियों की बैठक ली। इस दौरान उन्होंने विभागीय अफसरों की जमकर क्लास ली। उन्होंने दो टूक कहा कि अधिकारी पूर्ण मनोयोग से काम करें। झा ने अफसरों के विभागीय सेवाओं के प्रति अपनत्व का बोध लाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि काम में किसी भी तरह की उदासीनता बरती तो अब सीधा कार्रवाई होगी। इस तरह के अफसरों को पद से हटाने की चेतावनी भी उन्होंने दी है। उन्होंने विभाग में चिकित्सकों की कमी, संविदा चिकित्सकों व अनुबंधित चिकित्सकों की सही सूचना तैयार करने के निर्देश भी अधिकारियों को दिए। झा ने कहा कि चिकित्सकों की तैनाती के लिए जनपद स्तर पर आवश्यकता का आकलन किया जाए। उन्होंने कहा कि भविष्य में चिकित्सकों की तैनाती शासन द्वारा मुख्य चिकित्सा अधिकारियों से परामर्श के उपरांत ही की जाएगी। बैठक में चिकित्सा उपकरणों की उपयोगिता व विशेषज्ञ चिकित्सकों की उपलब्धता के अनुसार उपकरण क्रय किए जाने के निर्देश भी उन्होंने दिए। उन्होंने कहा कि शासन द्वारा निर्गत बजट का उपयोग जनपदों द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं की वरीयतानुसार समय अंतर्गत किया जाए। निजी सहभागिता द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की निरंतर सघन समीक्षा के निर्देश भी उन्होंने दिए हैं। खासकर एचएचएम द्वारा पोषित शहरी स्वास्थ्य कार्यक्रम व टेलीरेडियोलॉजी पर विशेष ध्यान देने को कहा है। क्षय रोग के उन्मूलन के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार करने के निर्देश भी उन्होंने दिए। स्वास्थ्य मिशन के निदेशक युगल किशोर पंत ने कहा कि एनएचएम की ओर से जनपदों में किए जा रहे निर्माण कार्यों को समयबद्ध तौर पर पूरा किया जाए। ताकि केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध बजट का समुचित उपयोग हो सके।
बैठक में महानिदेशक डॉ. अर्चना श्रीवास्तव, मेडिकल चयन आयोग के अध्यक्ष डॉ. आरपी भट्ट, स्वास्थ्य सलाहकार डॉ. जीएस जोशी, विभाग के सभी निदेशक, अपर निदेशक, संयुक्त निदेशक व एनएचएम के अधिकारी उपस्थित रहे।


ई-हॉस्पिटल को लेकर दिखाएं तेजी
अस्पतालों में ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रणाली, ई-रक्तकोष व ई-हॉस्पिटल संचालन पर भी विस्तृत चर्चा की गई। सभी जनपदों को निर्देशित किया गया कि इन्हें जल्द शुरू करने का प्रयास करें। ताकि प्रत्येक जनपद में कम से कम एक अस्पताल ई-हॉस्पिटल पद्धति के अनुसार संचालित किया जा सके। स्वास्थ्य सचिव ने मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना के संचालन में आ रही तकनीकी विसंगतियों की जानकारी ली। यह निर्देश दिए कि अधिकारी यू-हेल्थ योजना के बेहतर संचालन के लिए अपने सुझाव स्वास्थ्य महानिदेशालय को उपलब्ध कराएं।

108 सेवा पर बुरा रहा फीडबैक
बैठक में 108 आपातकालीन सेवा को लेकर जनपदों का फीडबैक अच्छा नहीं रहा है। स्वास्थ्य सचिव ने इस विषय पर भी विस्तृत जानकारी ली। जिसमें बताया गया कि 108 सेवा की सेवा की गुणवत्ता के स्तर में निरंतर गिरावट आ रही है।

क्लीनिकल एक्टेबलिशमेंट एक्ट पर अब देर नहीं
क्लीनिकल एक्टेबलिशमेंट एक्ट पर अब विभाग किसी तरह की देरी नहीं चाहता। स्वास्थ्य सचिव ने जनपदों को आईएमए प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श कर इसे अंतिम रूप दिए जाने के निर्देश दिए हैं। ताकि यह एक्ट जल्द लागू किया जाए।
जिला चिकित्सालयों में आईसीयू
स्वास्थ्य सचिव ने मुख्यमंत्री की घोषणा के क्रम में सभी 13 जनपदों के जिला चिकित्सालयों में आईसीयू विकसित करने के निर्देश अधिकारियों को दिए हैं। उन्होंने कहा कि इसकी कार्ययोजना जल्द तैयार कर ली जाए।

गंगा घाटों के निर्माण का जिलाधिकारी ने किया निरीक्षण

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हरिद्वार। जिलाधिकारी दीपक रावत ने भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत नमामि गंगे योजना में चण्डीघाट के नीचे बनाये जा रहे गंगा घाटों का शुक्रवार को स्थलीय निरीक्षण किया। योजना के अंतर्गत हरिद्वार जनपद में चण्डीघाट सहित चार स्थानों पर यह कार्य चल रहे हैं। इनमें श्यामपुर, भोगपुर, बालावाली शामिल हैं।

जिलाधिकारी ने वाप्कोस लिमिटेड द्वारा किए जा रहे कार्यों की विस्तृत जानकारी प्रोजेक्ट मैनेजर तथा साइट इंजीनियर से ली। योजना कार्यों को कर रहे इंजीनियरों ने प्लान नक्शे की जानकारी देते हुए जिलाधिकारी को बताया कि योजना के तहत कुल 41,872 स्क्वायर मीटर के एरिया पर घाट का निर्माण किया जा रहा है। इसमें सामान्य स्नान घाट के अलावा महिलाओं के लिए स्नान घाट तथा वस्त्र बदलने के कक्ष, अंत्येष्टी घाट व शौचालय, जिनकी सप्लाई के लिए एसटीपी बनाए जाएंगे। लगभग 75 वाहन क्षमता की कार व बस पार्किंग सहित हरियाला के लिए निर्धारित एरिया में हरित प्रांगण बनाया जाएगा। अंत्येष्टी के लिए आने वाले यात्रियों के लिए पूजा करने व बैठने के लिए पक्के शेड भी बनाये जा रहे हैं।
योजना प्रबंधक ने जिलाधिकारी रावत को बताया कि हरिद्वार चण्डीघाट के नीचे बन रहे घाटों के निर्माण कार्य 36 माह में पूर्ण करने की अवधि भारत सरकार द्वार निर्धारित की गई है। कार्य दिसम्बर तक समाप्त कर लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि कार्यों की अनुमानित लागत 50 करोड़ है, जिसमें से 12 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं।
जिलाधिकारी ने कहा कि कार्यों की गुणवत्ता तथा निर्माण में वैज्ञानिक तथ्यों की परख समय-समय पर सिंचाई तथा लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों द्वारा की जाती रहेगी। अधिकारी इस बात पर विशेष रूप से माॅनिटरिंग करेंगे कि घाट निर्माण से भविष्य में पुराने पुल को कोई क्षति तथा आस-पास के क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न नहीं हो सके। 

आधा दर्जन ट्रेनें दून पहुंची लेट, दून-हावड़ा रिशेड्यूल

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देहरादून। मैदानी इलाकों में घने कोहरा पड़ने के कारण शुक्रवार को लंबी दूरी की आधा दर्जन गाड़ियां अपने तय समय से विलंब से पहुंची, जिस कारण देहरादून से चलने वाली दून हावड़ा को रिशेड्यूल किया गया है। ट्रेनों के लेट-लतीफी के चलते यात्रियों को परेशानी झेलनी पड़ रही है।

हावड़ा-दून एक्सप्रेस का देहरादून आने का समय 7:35 मिनट है जबकि वह लगभग 11 घंटे की विलंब से दून पहुंची। जिसके करण यहां से जाने वाली दून-हावड़ा को रिशेड्यूल किया गया है जो अब रात 22:55 मिनट की देरी से रवाना होगी। वहीं, इलाहाबाद से देहरादून आने वाली लिंक एक्सप्रेस 17 घंटे लेट चल रही है जिसके चलते देहरादून-काठगोदाम का जाने का समय अभी तय नहीं किया गया।
इसके अलावा, काठगोदाम-देहरादून एक्सप्रेस अपने तय समय से एक घंटे की विलंब से दून पहुंची, जबकि दिल्ली सराय रोहिला से देहरादून आने वाली मसूरी एक्सप्रेस और दिल्ली-देहरादून शताब्दी एक्सप्रेस, नंदा देसी एक्सप्रेस 30-30 मिनट की देरी से दून पहुंची। काठगोदाम से देहरादून आने वली काठगोदाम एक्स्रपेस एक घंटा लेट से आई। ट्रेनें देरी से चलने के कारण यात्रियों व उनके परिजनों को इंतजार में दो चार होना पड़ा रहा है।
स्टेशन अधीक्षक सीताराम सोनकर के मुताबिक, मैदानी इलाकों में घना कोहरा पड़ने के कारण लंबी दूरी की कई गाड़ियां अपने तय समय से विलंब चल रही है। इस कारण देहरादून से दून हावड़ा को रिशेड्यूल किया गया है। जबकि, लिंक एक्सप्रेस अभी चल रही है। इस कारण इसका जाने का समय तय नहीं हुआ है। यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विभाग की ओर से सावधानी बरती जा रही है। अन्य गाड़ियों को देहरादून से समय पर रवाना किया जा रहा है। 

बच्चों में डिप्रेशन से बचाव के लिये उठाये ये पांच कदम

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हमारे समाज में आज भी मानसिक बिमारियों को तिरसकार से देखा जाता है। लेकिन अगर बच्चों और युवाओं में होने वाले डिप्रेशन के आंकड़ों पर गौर करें तो ये हैरान कर देते हैं। अधिक्तर माता पिता के लिये मानना बेहद मुशकिल होता है कि उनके बच्चे को मानसिक बीमारी है। वो इस तरह के हालातो पर हंसते हैं और कहते हैं कि ये सब उम्र के साथ खुद ब खुद ठीक हो जाता है। पर क्या सच में ये सोच सही है? कया सच में बढ़ती उम्र के साथ साथ डिप्रेशन के लक्ष्ण खुद ब खुद कम हो जाते हैं? क्या समय रहते बच्चों में डिप्रेशन के लक्ष्णों की पहचान और इलाज ज़रूरी नही है?

आखिर कया कहते हैं बच्चों में डिप्रेशन के आंकड़े?  

डिप्रेशन किस तरह हमारी सेहत के लिये खतरनाक है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हमारी युवा पीढ़ी में करीब 1 प्रतिशत इसका शिकार हैं। युवाओं में आत्महत्या की प्रवृति को भी डिप्रेशन बढ़ावा देता है। आंकड़े बताते हैं कि डिप्रेशन के शिकार लोगों में से 15 प्रतिशत आत्महत्या करने की कोशिश करते हैं। पिछले कुछ दशकों में युवाओं में आत्महत्या की दर कई गुना बढ़ गई है। ये चौकाने वाले आंकड़े इस ओर साफ इशारा करते हैं कि डिप्रेशन के लक्ष्णों की पहचान और उनका सही तरह से इलाज कितना ज़रूरी हो गया है।

बच्चों और युवाओं में डिप्रेशन की शुरूआत

बच्चों में डिप्रेशन की पहचान माता पिता आसानी से कर सकते हैं अगर वो अपने बच्चों के बरताव में इन बातों का ध्यान रखें।:

  • बच्चा अगर लगातार उदास रहता है
  • उसका कुछ भी काम करने में मन नहीं लगता
  • उसे जो काम पहले पसंद थे अब वो उनमे रुचि नही लेता
  • पढ़ाई में मन न लगना और ध्यान न दे पाना
  • खेलने और दोस्तों में रुचि कम होना
  • ज्यादातर समय चिढ़चिढ़ा रहना
  • लड़ाई झगड़ों में पड़ते रहना
  • काम करने में आलस दिखाना
  • आसानी से थक जाना
  • भूख और नींद के पैटर्न में बदलाव
  • अपने बारे में बेचारेपन का एहसास करना
  • अपने को नुकसान पहुंचाने की बाते करना

यदी इनमें से कोई भी लक्ष्ण दो हफ्ते से ज्यादा दिखे तो ये डिप्रेशन की तरफ इशारा करता है। इन लक्ष्णों की जानकारी जरूरी है ताकि डिप्रेशन को शुरू में ही पहचान लिया जाये और उसका इलाज किया जा सके। किसी भी अन्य बीमारी की तरह डिप्रेशन का इलाज जितनी देर से होगा उतने ही उसके लक्ष्णों की तीव्रता बढ़ती जायेगी।

अगर आपके बच्चे में डिप्रेशन के लक्ष्ण हैं तो क्या करें?

अगर आपके बच्चे में डिप्रेशन के लक्ष्ण दिखे तो उसे नज़रअंदाज न करें। जल्द से जल्द हालात पर काबू इन छोटी छोटी बातों का पालन करके करें:

  • अपने बच्चे पर और बेहतर परफॉर्म करने का दबाव न डालें। इससे बच्चे में तनाव और अपने प्रति हीन भावना पैदा होगी। इसके बदले अपने बच्चे का साथ दे और हौंसला बढ़ाये। अगर कोई बच्चों से अन्यथा सवाल करें तो बच्चों का बचाव करें।
  • अपने बच्चों की बातों को पूरे ध्यान से सुने। आपकी की ही तरह बच्चे भी इस तरह की बीमारी से अंजान हैं और अपने अंदर हो रहे बदलावों को समझ नहीं पाते हैं। ये उनके लिये काफी परेशान करने वाली बात हो सकती है जो आने वाले समय में और तनाव को जन्म देती है।
  • अपने बच्चों को ज्यादा बेहतर परफॉर्म कराने के लिये उनकी तुलना और बच्चों से कभी न करें। ऐसा करने से बच्चों में और ज्यादा नकरात्मक भावना घर करने लगती है।
  • ध्यान रखे कि आपका बच्चा अपने को नुकसान पहुंचाने के बारे में बात न कर रहा हो। ऐसा होने पर बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताये जिससे बच्चे अपनी मन की बात आप से कर सकेँ।
  • डिप्रेशन के इलाज के लिये डॉक्टर की मदद लेने से न हिचकिचाये। सही इलाज से आपके बच्चे के इलाज में तेज़ी आयेगी। इसके लिये मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक की मदद से आप अपने बच्चे के लिये इस लड़ाई को आसान बना सकते हैं।

डिप्रेशन का इलाज दवाईयों और काउंसलिंग के ज़रिये आसानी से किया जा सकता है। पर ज़रूरत है कि हम अभिभावकों के तौर पर इसे पहचाने और स्वीकार करें कि ये किसी भी अन्य शारीरिक बीमारी की ही तरह है और इसे शर्म और तिरस्कार से न जोड़ें।

Dr kamna

(डॉ कामना छिब्बर एक मनोचिकित्सक हैं और फोरटिस हेल्थकेयर के मनोरोग विभाग की निदेशक हैं। डॉ छिब्बर पिछले दस सालों से मनोरोग के क्षेत्र में काम कर रही हैं। इनसे संपर्क करने के लिये [email protected] पर लिखें )