‘छोटों’ के चुनाव पर ‘दांव’ पर लगी है ‘बड़ों’ की साख

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    छात्र राजनीति की बिसात पर मोहरे सज चुके हैं। छात्र संघ में सत्ता पाने की हसरत लिए ‘खिलाड़ियों’ ने अपना दांव चल दिया है। चुनावी समर अपने अंतिम पड़ाव पर है और अब बारी शह और मात की है। यह चुनावी खेल होगा तो कॉलेज की चाहर दिवारी में लेकिन बाहर भी कइयों की साख दाव पर लगी है। डीएवी में छात्र राजनीति क्या करवट लेती है, इस पर सभी की निगाह है।

    राज्य का सबसे बड़ा महाविद्यालय होने के कारण डीएवी में जीत-हार के मायने ही अलग हैं। पिछले दस साल से यहां लगातार एबीवीपी जीतती आई है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के इस किले को एनएसयूआई भेद पाने में असफल रही है लेकिन एमकेपी और एसजीआरआर में करारी शिकस्त का मुंह देखने के बाद भले ही डीबीएस में एबीवीपी को जीत हासिल हो गई।
    वहीं भाजपा के कई दिग्गज और डीएवी के पुराने सीनियर छात्र नेता भी अब कॉलेज में अपनी उपस्थिति दर्ज करने लगे हैं। इसके अलावा कॉलेज में सत्ता हासिल हरने के लिए एत्तराखंड के कांग्रेस मुख्यालय तक में गोल मेज बैठकें जारी हैं। खुद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह इसमें दिलचस्पी दिखाते हुए चुनाव में अपने स्तर से प्रबंधन में जुटे हैं। ऐसे में यहां का इलेक्शन अब हाई प्रोफाइल लोगों के लिए साख का सवाल हो गया है।
    एबीवीपी का ‘मुख्यधारा’ से अटूट बंधन है। हर जरूरत पर भाजपा नेताओं व विधायकों की उपस्थिति इसकी गवाह रही है। यह लोग छात्र नेताओं को रणनीतिक तौर पर टिप्स देते रहे हैं। डीएवी की छात्र राजनीति में माननीयों का दखल हमेशा ही रहा है। यह और बात है कि वह सतह पर कम ही दिखाई पड़ता है।

    लाव-लश्कर के साथ निकाला जुलूस
    सोमवार को अभाविप के अध्यक्ष पद प्रत्याशी शुभम सिमल्टी, एनएसयूआई से महासचिव प्रत्याशी डिंपल शैली, महासचिव पद के लिए आर्यन छात्र संगठन और उपाध्यक्ष पद के लिए दिवाकर ग्रुप ने रैलियों के जरिए अपना दमखम दिखाया। इस दौरान पटाखों, झंडों, पोस्टरों से पटे समर्थकों ने कॉलेज में अपना जोश दिखाकर अपने प्रतयाशी के लिए वोट मांगे।
    वहीं, कॉलेज में यूं तो सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रहने के तमाम दावे कॉलेज प्रशासन की ओर किए गए लेकिन रैलियों में छात्रोें के हुजूम के आगे व्यवस्थाएं संभाल रहे प्रॉक्टोरियल बोर्ड की एक नहीं चली। आलम यह था कि खुलेआम छात्र लाठी-डंडे लेकर कॉलेज में प्रवेश करते रहे। सीटियों के शोर से परिसर गूंज उठा, जबकि सीटियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया था।