देहरादून। उत्तराखंड आयुर्वेद यूनिवर्सिटी अपने ही बनाए नियम कायदों पर नहीं चल रही है। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि मानकों, निर्देशों और नियमों को अनदेखा कर लिए गए यूनिवर्सिटी के तमाम फैसले इसकी तस्दीक करते हैं। मनमानी और नाफर्मानियों का आलम यह है कि उच्च न्यायालय तक के आदेशों को भी विवि द्वारा ताक पर रखा जा रहा है।
मामला विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित की गई फीस में मनमानी बढ़ोत्तरी कर उसके आधार पर सत्र संचालन का है। दरअसल, उत्तराखंड आयुष विभाग ने 14 अक्टूबर साल 2015 में यूजी व पीजी पाठ्यक्रमों की फीस में बढ़ोत्तरी की थी। इसमें बीएएमएस में 2.15 लाख, बीएचएमएस एक लाख दस हजार और एमडी व एमएस के लिए 3.15 लाख रुपये फीस निर्धारित की गई थी। विभाग द्वारा इस बदलाव पर हाईकोर्ट ने याचिका दायर की गई थी। इसी क्रम में अब हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए आयुष विभाग के फीस बढ़ोत्तरी के फैसले पर स्थगन का आदेश दे दिया है।
हाईकोर्ट द्वारा उत्तराखंड आयुष विभाग द्वारा साल 2015 में की गई फीस वृद्धि को स्थगित करते हुए पूर्व निर्धारित फीस पर दाखिला दिए जाने के आदेश दिए जा चुके हैं लेकिन इसके बाद भी विवि के मुख्य पक्षधर होने के बावजूद हाईकोर्ट के आदेशों की नाफर्मानी करते हुए विवि ने आयुष पाठ्यक्रमों के लिए आयोजित होने जा रही काउंसिलिंग में बढ़ाई गई फीस का ही विवरण किया गया है, जो कि सीधे ही कोर्ट की अवमानना है।
मामले में कई छात्रों ने भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दरअसल, आयूष विभाग और विश्वविद्यालयों को सीधे शुल्क वृद्धि का अधिकार नहीं है। इसके लिए उच्च शिक्षा विभाग के सचिव और सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति आधिकारिक रूप से अधिकृत है। शुल्क वृद्धि को लेकर समिति ने बीते दो व तीन सितम्बर को विज्ञप्ति जारी कर सभी संस्थाओं से विधिवत प्रस्ताव मांगा है। मामले में आगामी 25 सितम्बर को बैठक भी आयोजित की जानी है। बैठक में सभी व्यवसायिक संस्थाओं को आमंत्रित किया गया है। बैठक में विभिन्न प्रस्तावों पर विचार करने के बाद फीस निर्धारण किया जाएगा।
समित द्वारा चिकित्सा एवं आयूष पद्धति के संस्थानों के विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए साल 2007 में फीस निर्धारित की थी। जिसमें एमबीबीएस के लिए एक लाख 75 हजार रुपये, बीएएमएस के लिए 80 हजार, बीएचएमएस में 73 हजार 600 रुपये निर्धारित की गई थी। इसके बाद से अभी तक किसी भी प्रकार की कोई शुल्क वृद्धि नहीं कई गई है। छात्रों का आरोप है कि निजी प्रबंधन के दबाव में आकर आयुष विभाग ने शुल्क वृद्धि की, जो कि तत्काल प्रभाव से लागू भी हो गई। फैसले को अवैध पाकर उच्च न्यायालय ने स्थगन आदेश दे दिया, मामला न्यायालय में विचाराधीन होने के कारण यदि किसी भी संस्था द्वारा नए शुल्क की वसूली की जाती हैं तो वह न्यायालय की अवमानना माना जाएगा।