दून अस्पताल में आंख के इलाज को भटक रहे मरीज

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देहरादून। दून मेडिकल कॉलेज के टीचिंग अस्पताल में मरीजों की मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही। इस बार तकलीफ में आंख के इलाज के लिए अस्पताल आने वाले मरीज हैं। यहां मोतियाबिंद के ऑपरेशन पिछले कई दिन से बंद हैं।
मोतियाबिंद के करीब 10-15 ऑपरेशन प्रतिदिन होते हैं, लेकिन इंट्रा ऑक्यूलर लैंस की आपूर्ति न होने के कारण यह सुविधा मरीजों को नहीं मिल पा रही है। सिर्फ उन्हीं मरीजों के ऑपरेशन किए जा रहे हैं जो खुद के खर्चे पर लैंस खरीदकर ला रहे हैं।
केंद्र सरकार से मिलने वाले बजट के तहत आंख के ऑपरेशन के लिए जरूरी इंट्रा ऑक्यूलर लैंस व अन्य सर्जिकल आइटम राष्ट्रीय दृष्टिबाधिता नियंत्रण कार्यक्रम के तहत निश्शुल्क उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था है। जिसका जिम्मा जिला दृष्बिाधिता नियंत्रण सोसाइटी संभालती है। लेकिन दून अस्पताल के चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन हो जाने के बाद से स्वास्थ्य विभाग ने सामग्री उपलब्ध कराने से हाथ खींच लिए। विभाग का कहना है कि वह गांधी नेत्र चिकित्सालय को सामग्री उपलब्ध करा रहा है। दून अस्पताल क्योंकि अब मेडिकल कॉलेज का हिस्सा है, यह व्यवस्था उन्हें स्वयं करनी होगी। जब तक लैंस उपलब्ध थे, अस्पताल में ऑपरेशन हुए। पर अब इस पर अडंगा लग गया है। इन हालात में खामियाजा उन मरीजों को भुगतना पड़ रहा है जो ऑपरेशन का इंतजार कर रहे हैं। नेत्र चिकित्सक द्वारा उन्हें तिथि दे दी गई, लेकिन अब ऑपरेशन करने में असमर्थता जता दी है। इस स्थिति में ऑपरेशन का बैकलॉग भी बढ़ता जा रहा है। जिसे निपटाने में भी काफी वक्त लगेगा। दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. प्रदीप भारती गुप्ता के अनुसार इस बावत ढाई लाख रुपये का बजट स्वीकृत हो चुका है। लैंस का ऑर्डर भी दे दिया गया है। कुछेक दिन में ही व्यवस्था पटरी पर आ जाएगी।
इंतजार के सिवाय नहीं विकल्प
राष्ट्रीय दृष्टिबाधिता नियंत्रण कार्यक्रम के तहत मरीजों को लैंस निश्शुल्क उपलब्ध कराया जाता है। जबकि बाहर लैंस 700 से एक हजार रुपये तक में मिलता है। मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुख रखने वाले मरीज अपने खर्च पर लैंस ला रहे हैं, लेकिन निम्न वर्ग के लिए सिवाय इंतजार के कोई चारा नहीं बचा है।