दुनियाभर के पैंक्रियाटाइटिस मरीजों को उम्मीद दिलाते हैं दून के ये वैद्य

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टर्नर रोड निवासी ,अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पदमश्री वैद्य बालेंदु प्रकाश का दावा है कि उनके स्वर्गीय पिता वैद्य चंद्र प्रकाश द्वारा 70 के दशक में अायुर्वेद के रस शास्र पर आधारित औषधियों के युवाओं में होने वाली घातक तथा जानलेवा बीमारी  पैंक्रियाटाइटिस को  ठीक किया जा सकता है। उन्होंने अपने दावे की पुष्टि के लिए राज्य के आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारियों के एक बड़े समूह के बीच में उनके द्वारा विगत 20 वर्षो में प्राप्त 400 मरीजो का आंकड़ा पेश किया। वैद्य बालेन्दु प्रकाश इससे पूर्व 250 मरीजो की चिकित्सा के आंकड़ों का शोध पत्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में प्रकशित कर चुके हैं। राजपुर रोड स्थित एक आॅडिटोरियम में आयोजित हुए इस समारोह की अध्यक्ष्ता केंद्रीय आयुर्वेद विज्ञान अनुसंधान परिषद की वैज्ञानिक परिषद बोर्ड के अध्यक्ष और दिल्ली स्थित चौधरी ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेद चरक संस्था के भूतपूर्व निदेशक डॉ हरि मोहन चंदोला द्वारा की गई। देहरादून के प्रसिद्ध रेडियोलाजिस्ट डॉ (कॉल) हरीश भाटिया ने पैंक्रियाटाइटिस की डायग्नोसिस एवं ट्रीटमेन्ट में रेडियोलोजी की भूमिका का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने बताया कि एमआरसीपी नामक टेस्ट से इस बीमारी की डायग्नोसिस तथा किसी भी चिकित्सा का प्रभाव सबसे अधिक प्रामाणिक माना जाता है।

उन्होंने बताया कि वैद्य बालेन्दु प्रकाश के पास आने वाले सभी रोगियों की जांच विगत ढाई वर्ष से उनके द्वारा की जा रही है तथा उनका एक वर्ष का इलाज खत्म होने के बाद प्रतिवर्ष वो ऐसे मरीजो को देखते रहे है।  वैद्यजी द्वारा की गई आयुर्वेदिक चिकित्सा से लाभान्वित किसी भी रोगी में रोग की वृद्धि नही देखी गई है जो कि अपने आप में बेहद सराहनीय एवं प्रशंसनीय है। इस अवसर पर वैद्यजी की चिकिस्ता से लाभ लेने वाले दीपक नागलिया, नीरू तलवार, मनीष गुप्ता, अनुष्का मित्तल, स्वर्ण सिंह और जितेन्द्र कुमार उपस्थित चिकित्सक समूह के बीच में अपने अनुभव बाटें।

 पैंक्रियाटाइटिस अर्थात पैंक्रियास (अग्नाशय) में सूजन; आकस्मिक रूप से होने वाला यह रोग पेट के ऊपरी हिस्से में तेज दर्द जो पीठ की ओर जाता है और उल्टी के साथ होता है। ऐसी असहनीय अवस्था में इमरजेंसी होस्पिटलिजेशन  की आवश्यकता होती है, जहाँ पर इसके रोगियों को लगभग एक सप्ताह तक मुँह से पानी भी नही दिया जाता और पेनकिलर, एन्टी बायोटिक, मल्टी विटामिन इत्यादि ड्रिप के सहारे दिए जाते है।

महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में अधिकता से पाया जाने वाला यह रोग औसतन 24 वर्ष की उम्र से शुरू होता है। विश्व भर में पाए जाने वाले इस रोग के होने का कारण अल्कोहल और आनुवंशिकी माना जाता है और इस रोग की विश्वभर में दर एक लाख में 27 लोगो से ज्यादा नही है। परंतु भारत वर्ष के दक्षिण राज्यों में यह रोग एक लाख  में 200 लोगो तक पाया जाता है।  इसकी बीमारी की गंभीरता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इस रोग के 30% रोगी बीस वर्षों में ही मर जाते हैं। जबकि 90% को डायबिटीज हो जाती है। शरीर और मन को प्रभावित करने वाली यह बीमारी आर्थिक रूप से भी मरीज एवं उसके परिवार की कमर तोड़ देती है। वैद्य बालेन्दु प्रकाश ने बताया कि उनके द्वारा इस संदर्भ में जो आंकड़ा इकट्ठा (no-281) किया गया उससे पता चलता है कि औसतन प्रति व्यक्ति उनके आयुर्वेदिक इलाज से पहले का खर्च 6 लाख 70 हजार रुपये आता है।

वैद्य बालेंदु प्रकाश ने बताया कि हिन्दुस्तान में होने वाली  पैनक्रियाटिस को वैज्ञानिकों ने ट्रॉपिकल क्रोनिक पैंक्रियाटाइटिस का नाम दिया है, जिसकी संख्या कुल रोगीयों की 60% है। ऐसे रोगियों में अल्कोहल एवं जेनेटिकली कोई पुराना इतिहास नहीं है, उन्होंने बताया कि विगत तीन वर्षों में उनके पास आने वाले रोगी की संख्या में देश के कोने कोने से लागातार बढ़ोतरी हो रही है और प्रतिवर्ष करीब डेढ़ सौ मरिजों का इलाज उनके चिकित्सा केंद्र में किया जाता है और वर्तमान में उनकी सुविधा जनवरी तक ही है। इसके मद्देनजर उधम सिंह नगर के ग्रामीण क्षेत्र में मरीजों की क्षमता को दस गुणा बढ़ाने के लिए अस्पताल का निर्माण कर रहे है। यहा यह उल्लेखनीय है कि पैंक्रियाटाइटिस के मरीजों को दूध, दूध से बने पदार्थ, घी, चिकनाई बंद करा दी जाती है परंतु वैध जी के चिकित्सा में पहले दिन से सभी एलोपैथिक दवाइयां बंद कर दूध दही घी व पनीर दिया जाता है जो मरीजो से आयुर्वेदिक उपचार के साथ बखूबी हजम हो जाता है। वैधजी के आकड़ो से स्पष्ट है कि पारद, ताँबा और गंधक के योग से बनी यह औषधि पैंक्रियाटाइटिस  की चिकित्सा में विलक्षण प्रभाव देती है, जो विश्व के लिए एक नया आविष्कार हो सकता है इसी आशा का पत्र राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जी ने प्रधानमंत्री, विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री तथा आयुष मंत्री, भारत सरकार को भेजा है कि वैद्यजी के पिता जी द्वारा आविष्कृत इस औषधि को केंद्र सरकार एक राष्ट्रीय नोबेल पुरस्कार मिशन के रूप में चलायें।