दुनिया के खतरनाक रास्तों में से एक गर्तांगली की होगी मरम्मत

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गर्तांगली
वर्ष 1962 से पहले भारत-तिब्बत व्यापार के प्रमुख मार्ग गर्तांगली की सुध करीब 50 साल बाद राज्य की भाजपा सरकार ने ली है। यह गली नीलांग घाटी में है। सरकार इस पर 35 लाख रुपये खर्च करेगी। लोक निर्माण विभाग भटवाड़ी को इसकी मरम्मत का जिम्मा सौंपा गया है। यह जानकारी जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने दी।
उन्होंने बताया कि निविदा आमंत्रित की जा रही है। यह पैसा  बॉर्डर डेवलपमेंट योजना से स्वीकृत हुआ है। इस काम को  2020 में ही पूरा करने का लक्ष्य है।  इस गली को खूबसूरत ट्रैक के रूप में जाना जाता है। इसे देखने देश- विदेश का पर्यटक पहुंचते रहे हैं। सरकार की योजना इसे दोबारा देशी और विदेशी पर्यटकों के लिए खोलने की है। राज्य सरकार ने इस संबंध में केंद्र को प्रस्ताव भी भेजा है। प्रस्ताव मंजूर होने से जनजातीय क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। 40 सदस्यी टीम इस क्षेत्र का जायजा ले चुकी है।
-आधी सदी बाद ली गई सुध, 500 मीटर लंबी इस गली पर खर्च होंगे 35 लाख रुपये, जिला अधिकारी का दावा-इस साल पूरा हो जाएगा काम
गर्तांगली
समुद्र तल से 11 हजार फीट की ऊंचाई:  यह गली समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर है। 17वीं शताब्दी में पेशावर के पठानों ने हिमालय की खड़ी पहाड़ी को काटकर यह रास्ता तैयार किया था। 500 मीटर लंबा लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा मार्ग (गर्तांगली) भारत-तिब्बत व्यापार का साक्षी रहा है। 1962 से पहले भारत-तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर व भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आवागमन करते थे। भारत-चीन युद्ध के बाद 10 साल तक सेना ने भी इस मार्ग का उपयोग किया। इसके बाद इसका रखरखाव नहीं किया गया।  उत्तरकाशी जिले की नीलांग घाटी चीन सीमा से लगी है। सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए व जादूंग अंतिम चौकियां हैं। सामरिक दृष्टि से संवेदनशील होने के कारण इस क्षेत्र को इनर लाइन क्षेत्र घोषित किया गया है। यहां कदम-कदम पर सेना की कड़ी चौकसी है और बिना अनुमति के जाने पर रोक है।
तिब्बत के व्यापारी आते थे यहां: उत्तरकाशी के अजय पुरी बताते हैं कि दोरजी (तिब्बत के व्यापारी) ऊन और चमड़े से बने वस्त्र व नमक को लेकर सुमला, मंडी, गर्तांगली होते हुए उत्तरकाशी पहुंचते थे। तब उत्तरकाशी में हाट लगती थी। इसी कारण उत्तरकाशी को बाड़ाहाट (बड़ा बाजार) भी कहा जाता है। सामान बेचने के बाद दोरजी यहां से तेल, मसाले, दालें, गुड़, तंबाकू आदि को लेकर लौटते थे।