अवैध खनन पर केंद्र सख्त़; गंगा से 5 किमी के इलाके में खनन पर रोक

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गंगा और उसके आस पास के इलाको में हो रहे अवैध खनन से हो रहे नुकसान पर केंद्र सरकार सख्ती करती नज़र आ रही है। मातृ सदन के स्वामी शिवानंद जो लंबे समय से गंगा में हो रहे अवैद खनन के विरोध में अनशन कर रहे थे केंद्रीय जल मंत्रालय ने उनके विरोध का संज्ञान लेते हुए बुधवार को इस संबध में महत्वपूर्ण फैसला लेते हुएकेंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा है कि :

  • गंगा के दोनो तरफ 5 किमी के इलाके में क्रशर और खनन पर पाबंदी लगा दी है।
  • गंगा किनारे चल रहे क्रशरों पर तुरंत प्रभाल से रोक लगा दी गई है।
  • अवैध खनन करने वालों पर 5 साल तक की सज़ा और 1 लाख तक के जु्र्माने का प्रावधान है।

उत्तराखंड में स्टोन क्रशर और अवैध खनन लंबे समय से यहां कि राजनीति का एक बड़ा मुद्दा रहा है। लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि ये सिर्फ सदन में और मीडिया में दोनो राजनीतिक दलों के बीच टकराव का महज़ मुद्दा बनकर रह गया है।ऐसा नही है कि अवैध खनन को रोकने के निय कानून नही है लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण ये केवल सरारी फाइलों में दबकर ही रह गई हैं। समय समय पर अवैध खनन को लेकर संत समाज और अन्य सामाजिक संगठनों व्दारा विरोध के चलते सरकार ने खनन माफिया पर शिकंजा कसने की बात तो की है लेकिन समय के साथ ये कोरी बातें ही साबित होती हैं।

उत्तराखंड में खनन माफिया किस तरह सक्रिय है इसके अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केवल गंगा जैसी बड़ी नदियां नही बल्कि तमाम अन्य छोटी बड़ी नदियां अवैध खनन का मार झेल रही हैं। विकासनगर क्षेत्र में आने वाले आसन वैटलैंड रिजर्व के 8-10 किमी के दायरे में अवैध खनन का काम बेधड़क चल रहा है। इसका खामियाज़ा यहां के ईको-सिस्टम को झेलना पड़ रहा है। किसी समय में जो पूरा इलाका विदेशी पक्षियों से भरा रहता था अब न केवल इन पक्षियों की संख्या में कमी आई है बल्कि इनका घरौंदा केवल आसन झील तक ही सिमट कर रह गया है। नदियों के पास चोर रास्ते खनन मापिया के लिये अपने काम को अंजाम देने के लिये मुफीद होते हैं, प्रशासन इन रास्तों के समय समय पर खोदता है पर खनन से जुड़े लोग इन्हें बेखौफ होकर वापस पाट देते हैं। कमोवेश ऐसा ही राज्य के उन तमाम इलाकों का हो खनन के लिेये ज़रा भी मुफीद हैं।

इतने बड़े पैमान पर फैले अवैध खनन के माफिया राज के कदम रोकने में ये ताज़ा निर्णय कितना कारगर साबित होता है ये इस बात पर निर्भर करेगा कि राज्यों के स्तर पर किस तरह की इच्छाशक्ति दिखाई देती है।