रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण देर से पहुंची पलास गल पक्षी

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    गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के अन्तरराष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया कि शिशिर ऋतु में हजार सालों से उत्तरी गोलार्ध के शीत प्रदेशों से लाखों की संख्या में प्रवासी पक्षी भारतीय उप महाद्वीप में आते रहे हैं। विकास क्रम के अंतर्गत स्तनधारियों व मानव के इस धरा में आने से हजारों वर्ष पूर्व पक्षी प्रजातियों का आगमन हो चुका था।

    प्रोफेसर दिनेश भट्ट की टीम के सदस्य आशीष आर्य ने बताया कि लगभग 10 प्रजाति के जलीय पक्षी हरिद्वार पहुंच चुके हैं। जिनमें सुरखाब यानी चकवा-चकवी के सैकड़ों जोड़े, रीवर लैपविंग, कामन टील, पलास गल, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट, कॉमन पोचार्ड, रीवर टर्न, नादर्न पिनटेल, नादर्न सोवलर, कौम्बडक, पनकौवा इत्यादि प्रमुख हैं। हिमालयी क्षेत्र से आने वाले वनीय पक्षियों में खंजन, फैनटेल फ्लाईकेचर, ब्लैक बर्ड, वारवलर भी शामिल हैं।

    शोध छात्रा पारुल ने बताया कि न केवल भारतीय उपमहाद्वीप में, अपितु विश्व के अनेक क्षेत्रों में पक्षियों में शीतकालीन व ग्रीष्मकालीन माइग्रेशन होता है। पिछले माह अक्टूबर में ही बार टेल्ड गोडविट नामक पक्षी ने अलास्का (अमेरिका) से यात्रा प्रारम्भ की। 11 दिन में 5560 किमी. की दूरी पार कर ऑस्ट्रेलिया के पास टासमानिया पहुंचा। रुचिकर बात यह है कि इस पक्षी ने यह यात्रा प्रशांत महासागर के ऊपर से बिना रुके व बिना थके पूरी की। इस पक्षी पर जीपीएस लगा हुआ था, जिससे वैज्ञानिकाें को पक्षी के मार्ग का पता लगता रहा।

    उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के पक्षी वैज्ञानिक विनय सेठी के अनुसार प्रवासी पक्षी सुर्खाब आजीवन जोड़ा बनाकर रहते हैं और प्रवास गमन की यात्रा रात में करते हैं। सुरखाब प्रायः शाकाहारी पक्षी है और बौध धर्म को मानने वाले लोग इस पक्षी को पवित्र मानकर इसके संरक्षण पर जोर देते हैं।

    प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया कि इस वर्ष पलास गल नामक पक्षी 15-20 दिन देर से पहुंचा है। यह पक्षी रुस, चीन, यूक्रेन से उड़ान भरते हैं। देर से आने के कारणों में रूस-यूक्रेन युद्ध मुख्य कारण हो सकता है। हजारों टन बम, मिसाइल अटैक, तोप-गोले 25 फरवरी 2022 से लगातार यूक्रेन की शहरी, ग्रामीण व जंगली क्षेत्रों में गिरत आ रहे हैं।

    प्रो. भट्ट ने बताया कि यूक्रेन और रूस के नीचे स्थित काला सागर से लाखाें की संख्या में प्रवासी पक्षी माइग्रेशन की ओर अग्रसर होते हैं। दोनों ही क्षेत्रों में युद्ध से भड़की भयानक आग से जैव विविधता में भारी कमी आयी है और प्रवास की ओर गमन करने वाले पक्षी बहुत संख्या में मारे गये हैं या जहां-तहां रुक गये हैं। शायद इसी के वजह से पलास गल के 14-15 सदस्य ही हरिद्वार में नजर आ रहे हैं। पक्षी वैज्ञानिक प्रोफेसर दिनेश भट्ट के अनुसार विश्व के विभिन्न शहरों में ऊंची व फ्रंट में कांच लगी बिल्डिंग भी माइग्रेशन में बाधक है, जिसमें टकराकर पक्षी मर रहे हैं।

    उन्होंने बताया कि पक्षी की चोंच पर सेन्सर्स होते हैं जिससे पक्षी दिशा का ज्ञान पाते हैं और प्राय: निश्चित समय पर निश्चित ताल-तलैयों व झीलों में प्रवास हेतु पहुंच जाते हैं। प्रवास पर जाने हेतु ठंडे प्रदेशों में न केवल बर्फ का गिरना अपितु जैविक घड़ी व हारमोन भी अपना योगदान देते हैं।