पर्यावरण संरक्षण की युवा मिसाल है देहरादून की आस्था

Aastha and her grandfather with the newspaper bag

14 साल की आस्था इतनी कम उम्र में भी लोगों के लिये पर्यावरण संरक्षण की मिसा बन रही है। आस्था, बड़कोट, विकास नगर की रहने वाली है, वहा केबाल संगठन के ग्रुप की अध्यक्ष है और रोजमरा के जीवन में प्लास्टिक के इस्तेमाल को रोकने के लिये लगातार काम कर रही है।

इसी साल जून में आस्था ने कई और बाल संगठनों के सदस्यों के साथ माउनटेन चिलड्रन फाउन्डेशन द्वारा आयोजित कार्यशाला में हिस्सा लिया। यहां उन्हे पुराने अखबारों से कागज के थैले बनाना सिखाया गया। इनमे खरीदारी करने के लिये इस्तेमाल में आने वाले साधारण बैग से लेकर गिफ्ट बैग बनाना सिखाया गया।

Aastha teaching her grandfather the art of making newspaper bags

वर्कशॉप से आने के बाद से ही आस्था ने इस कला को काम में लाना शुरू कर दिया। आस्था ने अपने संगठन के बच्चों को पुराने कागजों से ये नये बैग तैयार करने का हुनर सिखाया।

पर्यावरण संरक्षण की मुहिम की शुरुआत आस्था ने अपने ही घर से की। इलाके में अपनी परचून की दुकान चलाने वाले आस्था के दादा अमर सिंह ने सबसे पहले अपनी दुकान से प्लास्टिक को अलविदा कर आस्था के बनाये कागज के बैग इस्तेमाल में लाने शुरू किये। साथ ही आस्था ने वींकेंड में अपने दादा को भी इन बैगों को बनाने की ट्रेनिंग दी, और अब वो खुशी खुशी बैग बनाते हैं और दुकान में इस्तेमाल में लाते हैं।

जुलाई में आस्था के स्कूल में हुई प्रतियोगिता में भी उसने अपने इस हुनर को दिखाया। उसकी कला से स्कूल की टीचर औऱ प्रिंसिपल इतने प्रभावित हुए कि उन्होने उससे सारी क्लास को इस कला को सिखाने को कहा। इसके बाद सभी बच्चों ने मिलकर तकरीबन 500 हाथ से बने कागज के थैले बनाये। इन थैलों को बाद में आस पास के दुकानदारों में बांटा गया और उनसे पर्यावरण बचाने में योगदान की अपील की गई।

आस्था उन लाखों लोगों में से है जिन्होने पर्यावरण को प्लास्टिक से मुक्त करने के लिये कमर कस ली है। आस्था और उसके जैसे लोगों के कारण हम मान सकते हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ी पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूक है और उसे बचाने के लिये काम कर रही है।