उत्तराखंड परिवहन की बसों के नसीब में नही है ”रिटायरमेंट”

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(देहरादून) उत्तराखंड राज्य पहाड़ी क्षेत्रों से भरा पूरा है और इन पहाड़ों जिलों को शहरों से जोड़ने का काम करता है उत्तराखंड परिवहन।लेकिन उत्तराखंड परिवहन की हकीकत शायद वही जानते हैं जिन्हें हर रोज़ घंटों का सफर इन बसों से करना पड़ता है।

जी हां, उत्तराखंड परिवहन निगम की शायद ही कोई ऐसी बस होगी जिसे रिटायरमेंट नसीब होता है, और ऐसा इसलिए क्योंकि इन बसों की श्रेणी में समय के साथ कटौती होती रहती है पर हालात नहीं बदलते। नए होने पर यह बसें पहले एसी बसों की श्रेणी में होती है जिनमें आप गर्मी में आराम से सफर कर सकते हैं। लेकिन जैसे ही यह बसें कुछ साल पुरानी होती हैं इनका ट्रांसफर सेमी डीलक्स बसों में हो जाता है फिर कुछ समय बस की सवारी को पंखे की हवा खिलाने के बाद यह बसें साधारण श्रेणी में आ जाती हैं। इस श्रेणी में आते-आते इन बसों की हालत ऐसी हो जाती है कि मजबूरी ना हो तो इन बसों में कोई ना बैठे। लेकिन परिवहन निगम को शायद इस बात का अंदाज़ा नहीं है कि राज्य में सबसे ज्यादा इस्तेमाल में आने वाला साधन ही बस है और इसकी हालत सुधरना जरुरी है।

ऐसी ही एक बस की शिकायत को लेकर हमारे पास आए एक फोन ने हमें बताया कि देहरादून से हल्द्वानी,रामनगर,काशीपुर तक जाने वाली बसों की हालत बद से भी बद्तर है। बस की हालत ऐसी है कि देहरादून से रामनगर तक पहुंचने में यह एक से दो बार पंक्चर जरुर होती है और बिना किसी ट्रैफिक जाम के भी यह बस हमेशा समय से 4-5 घंटे लेट पहुंचाती है। बस के पंखे खराब,सीटों पर लगे कवर भी एकदम गंदे, ड्राइवर की सीट से लेकर सवारी तक सबकी सीटें टूटी हुई और बस के अंदर छेद को छुपाने के लिए उपर से उसपर एक स्टील की चादर रखी गई है। ना कोई बसों की हालत देखने वाला ना सुनने वाला,और सवारियों के पास विकल्प ना होने के चलते उन्हें ऐसी बसों में सफर करना पड़ता है।

इस बारे में उत्तराखंड परिवहन निगम के जी.एम दीपक जैन ने बताया कि “राज्य में बसों की जरुरत ज्यादा है और इसके लिए हमने राज्य सरकार को प्रपोज़ल भी भेज दिया है, हालांकि पिछले साल बहुत सी नई बसें भी डिपों में आई थी लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में ज्यादा चलने की वजह से बसों की हालत खस्ता हो जाती है।” उन्होंने कहा कि “उत्तराखंड परिवहन निगम के पास बजट की कमी है इसलिए बजट का प्रस्ताव भेजा गया है और आशा है कि जल्दी ही हमें बजट मुहैया कराया जाएगा। रही बात बसों की खस्ता हालत की तो हम बसों को तुरंत खराब घोषित कर डिपो से बाहर नहीं कर सकते इसलिए उनकी श्रेणी बदलती रहती है और वह चलती रहती है,और रहीं बात बसों के खराब होने की तो अगर एक दिन खराब हो रही तो 29 दिन सेवा भी दे रही हैं।”

देहरादून से हल्द्वानी सफर कर रहे यात्री मनोज थपलियाल ने बताया कि “मैं अपने काम के सिलसिले में महीने में 8-10 बार देहरादून से हल्द्वानी का चक्कर काट लेता हूं और मैंने उत्तराखंड परिवहन की बसों में इतना सफर कर लिया है कि मुझे खुद याद नहीं होगा। हल्द्वानी के लिए दून से जाने वाली ज्यादातर बसों की हालत कबाड़ के बराबर है,और यह वो बसें हैं जिन्हें सारे रुटों से छुट्टी मिल चुकी होती है।इन बसों की सीटों से लेकर सभी पुर्ज़े हिल रहे होते हैं लेकिन सवारी के पास विकल्प ना होने की वजह से इन बसों में सफर करना पड़ता है।” मनोज ने बताया कि शायद ही मेरा कोई ऐसा चक्कर होगा कि जिसमें यह बस खराब ना हुई हो लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।

परिवहन निगम के अधिकारियों की बातों से ये तो साफ है कि पुरानी बसें भलें ही लोगों को अपनी मंजिल पर घंटों देरी से पहुंचाएं इससे फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि दफ्तर में बैठे अफसरों को तो इसकी खबर तक नहीं लगती की कोई बस रास्ते में खराब हुई है।और यह केवल किसी एक रुट की कहानी नही है बल्कि राज्य के हर रुट में ऐसी बसें है जिनमें बैठने में यात्री कतराते हैं लेकिन ना उनके पास विकल्प है और ना ही कोई और साधन।