पहाड़ की सीट से लड़ने में रावत, उपाध्याय का दम फूला

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उत्तराखंड में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने ‘पहाड़ से पलायन’ मुहावरे को नया आयाम दे दिया है। राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश इकाई के अध्यक्ष किशोर उपाध्याय, दोनों का ही शायद पहाड़ की सीट से चुनाव लड़ने के नाम पर दम फूल गया। इन दोनों नेताओं में से कोई भी पहाड़ की सीट से चुनाव नहीं लड़ रहा। इससे साफ है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व पहाड़ से पलायन कर गया। कांग्रेस द्वारा 22 जनवरी को घोशित पंजा छाप 63 उम्मीदवारों की सूची के अनुसार ये दोनों ही दिग्गज मैदान या तराई की सीटों से लड़ेंगे। गौरतलब है कि हरीश रावत फिलहाल पिथौरागढ़ में धारचूला सीट से विधायक हैं मगर मौजूदा चुनाव वे दो जगह, हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा की सीट पर लड़ेंगे। किशोर उपाध्याय ने अपने लिए सहसपुर को चुना है। इस तरह कांग्रेस को मजबूती देने के दावे के साथ मुख्यमंत्री भले ही दो सीटों पर चुनाव लड़ रहे हों मगर पहाड़ की सीट इनमें से एक भी नहीं है।
किच्छा कांग्रेस की पारंपरिक सीट है। इस लिहाज से हरीश रावत ने उसे सुरक्षित मानते हुए अपने लिए तय किया है। इसी तरह हरिद्वार ग्रामीण सीट भी मुख्यमंत्री ने अपने अनुकूल मान कर चुनी है। यहां से फिलहाल भाजपा के यतीश्वरानंद विधायक हैं लेकिन रावत की इस सीट पर अपनी बेटी अनुपमा को लड़ाने की तैयारी थी। राहुल गांधी द्वारा ‘एक परिवार-एक टिकट’ की मर्यादा तय कर चुकने के बावजूद अनुपमा करीब साल भर से हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र में खूब सक्रिय थीं। अंततः कांग्रेस के बागियों और अपने भी वरिष्ठ नेताओं के सगे-संबंधियों को टिकट देने पर हुई भाजपा की व्यापक आलोचना के बाद कांग्रेस को अपने नेताओं को टिकट बांटने में भाई-भतीजावाद से कड़ाई से महरूम करना पड़ा। इस कारण हरीश रावत ने खुद हरिद्वार ग्रामीण सीट से दाव लगाना तय किया। रावत हरिद्वार संसदीय क्षेत्र से सांसद भी निर्वाचित हो चुके हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने हरिद्वार का खास ध्यान रखा। हर तीसरे दिन वे किसी न किसी कार्यक्रम के बहाने हरिद्वार संसदीय क्षेत्र में आते रहे। हालांकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर ने हरिद्वार सीट से रावत की पत्नी रेणुका को हरिद्वार सीट पर चित करके पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को जिताया था। इस सीट के तहत 11 विधान सभा क्षेत्र हैं जिनमें दलितों और अल्पसंख्यकों की अच्छी-खासी तादाद है।
भाजपा ने कांग्रेस के बागी पूर्व मंत्री यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव, पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ, पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूड़ी की बेटी ऋतु, पूर्व मंत्री मातबरसिंह कंडारी के भतीजे विनोद और पार्टी प्रवक्ता मुन्ना सिंह चैहान तथा उनकी पत्नी मधु, दोनों को कमल छाप उम्मीदवार घोशित किया है। इसकी आलोचना करके कांग्रेस ने चुनाव में भाजपा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चूंकि मुद्दा बना दिया है इसलिए खुद टिकट बटवारे में भाई-भतीजावाद से परहेज किया है। लेकिन मुख्यमंत्री और प्रदेष अध्यक्ष, दोनों ने ही अपने लिए पहाड़ के बजाए निचली सीट चुनी हैं, जबकि दोनों ही पहाड़ पर ही रोजगार बढ़ाने की गाजर लटका कर से वहां से पलायन रोकने के दावे के साथ कांग्रेस को चुनाव जिताना चाह रहे हैं।
उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को देहरादून के नजदीक सहसपुर से पंजा छाप उम्मीदवार बनाया गया है। उपाध्याय ने पिछला चुनाव हालांकि टिहरी से लड़ा था और इस बार भी उनके ऋशिकेष अथवा नरेंद्र नगर से चुनाव लड़ने का कयास था। यह बात दीगर है कि सहसपुर से 2012 में पंजा छाप पर चुनाव हारे आर्येंद्र शर्मा ने अपना पत्ता साफ होने पर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ही खम ठोकने का ऐलान कर दिया है। कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची जारी होने पर देहरादून में कांग्रेस भवन में तोड़फोड़ का आरोप भी पंडित नारायण दत्त तिवारी के शिष्य आर्येंद्र के समर्थकों पर ही लगा है। जाहिर है कि सहसपुर सीट पहाड़ की नहीं गिनी जा सकती। यह बात दीगर है कि किशोर के समर्थक उन्हें टिहरी से ही चुनाव लड़ा कर शायद उनकी इज्जत बचाने के लिए मैदान में आ डटे हैं। उन्हें टिहरी से उम्मीदवार नहीं बनाने पर उनके समर्थकों ने देहरादून के कांग्रेस भवन में आत्मदाह की चेतावनी तक दे डाली है। इसके बावजूद फिलहाल उनको सहसपुर से ही पंजा छाप आबंटित हुआ है, इसलिए वे पहाड़ को पीठ दिखाने वाले ही कहलाएंगे। कोई ताज्जुब नहीं कि भाजपा द्वारा कांग्रेस के खिलाफ इस मुद्दे को भुनाने के लिए माहौल बनाने की कोशिश की जाए।
उधर हरीश रावत के दो सीट पर अपनी पंजा छाप उम्मीदवारी घोशित करने से सियासी कयासों का नया राग भी छिड़ गया है। इसपर पहली प्रतिक्रिया यही हुई कि हरीश रावत इस चुनाव में अपने चुने जाने के प्रति आश्वस्त नहीं हैं, इसलिए दो सीट पर चुनाव लड़ेंगे। इसके पीछे दलील ये है कि वे अपनी पार्टी के पांच साला शासन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक धोबीपाट से अलग-थलग पड़ गए हैं इसलिए इज्जत बचाने को रावत दो सीट पर लड़ेंगे। सियासत की रोषनी में कुछ विष्लेशक हरीश रावत के इस दाव के अलग अर्थ भी निकाल रहे हैं। दरअसल किच्छा और बाजपुर अगल-बगल हैं और बागी यशपाल आर्य की वहीं कर्मभूमि है। भाजपा ने यशपाल आर्य को बाजपुर से कमल छाप पर खड़ा किया है, जिनके मुकाबले कांग्रेस ने भाजपा की बागी सुनीता बाजवा को उम्मीदवार बनाया है। इसके अलावा वह एनडी तिवारी का भी प्रभाव क्षेत्र है। तिवारी अपने विवादित पुत्र रोहित शेखर की खातिर भाजपा अध्यक्ष अमित षाह को विजयी भव का आर्शीर्वाद दे आए हैं। यह बात दीगर है कि भाजपा ने हलद्वानी सीट रोहित को नहीं देकर तिवारी का मनोरथ पूरा नहीं किया। इसके बावजूद हलद्वानी, नैनीताल, काशीपुर, बाजपुर, किच्छा आदि आसपास की आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर तिवारी के पलायन का कांग्रेस के उम्मीदवारों के नतीजों पर उलटा असर पड़ सकता है। इसलिए यह भी अनुमान है कि कांग्रेस ने हरीष रावत को किच्छा सीट पर खड़ा करके आर्य पर दबाव बनााने और तिवारी के दाव को नाकाम करने की कोशिश की है। हरिद्वार ग्रामीण सीट के बारे में भी मुख्यमंत्री समर्थक कुछ ऐसा ही दावा कर रहे हैं। क्योंकि हरिद्वार सहित रानीपुर और हरिद्वार ग्रामीण, तीनों ही सीट पर फिलहाल भाजपा काबिज है। इसलिए हरीश रावत की उम्मीदवारी से कांग्रेस को जिले की सभी 11 सीट पर मजबूती मिलने का दावा किया जा रहा है। इसके बावजूद देखना यही है कि राज्य में कांग्रेस नेतृत्व के पहाड़ से पलायन को भाजपा इस चुनाव में कैसे भुनाती है और कांग्रेस इस तथ्य से अपने को कैसे बेदाग बचा पाएगी।