जन आंदोलन के बाद भी नहीं बन पाया सपनों का उत्तराखंड

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‘लड़ के लेंगे,भीड़ के लेंगे,लेकर रहेंगे उत्तराखंड’’ कवि अतुल शर्मा कि इन पंक्तियों ने एक अलग पहाड़ राज्य बनाने के लिए समूह आंदोलन किया था, आज खुद को वो उदास और ठगा हुआ महसूस करते है।70 विधानसभा सीट में से 38 सीटें मैदानी क्षेत्र की है और बाकी 32 सीटें पहाड़ी हैं,जिसमें कहने के लिए पहाड़ी राज्य का फायदा उठा रहे है मैदानी क्षेत्र। “इसकी संस्कृति एक बड़े यू.पी से अलग थी इसलिए एक कल्पना की गई थी इसके अलग हो जाने से बहुत सारी बातें बन जाएंगी,लेकिन ऐसा नहीं हुआ और इस वजह से एक निराशा बनीं हुई है।”

ऐसे ही अलग राज्य निर्माण के लिए आंदोलनकारी है गणेश सैली।उनसे पूछने पर कि क्या यह वही उत्तराखंड है जिसकी कल्पना आपने की थी? उनका जवाब बहुत ही ज्यादा दुख पहुचाने वाला था,उन्होंने कहा,”मुझे सोच कर आर्श्चय होता है कि हमने इस राज्य के लिए आंदोलन किया था, मैं और मेरे साथ जितने भी लोग इस आंदोलन का हिस्सा थे, हमरी आशाओं और महत्तवाकांक्षाओं को प्रदेश के राजनितिक पार्टियों ने निगल लिया और सबसे ज्यादा खतरनाक तो यू.के.डी पार्टी है।यू.के.डी के लोगों ने राज्य का मतलब ही बदल दिया।” आगोे सैली जी कहते है, “यह वो राज्य है ही नहीं जिसके लिए हमने संघर्ष किया था। यह तो उसी उत्तर प्रदेश की कार्बन कापी है जिससे हम अलग हुए थे और शायद भ्रष्टाचार में उससे कहीं आगे निकल रहा उत्तराखंड।”

जो राज्य यह सब आंदोलनकारी चाहते थे वह एक सुखद सपना बन कर रह गया है और अभी जो राज्य है यह एक डरावना सपना है जिसकी किसा ने भी कल्पना नहीं की थी। उत्तराखंड  प्रदेश जहां है वहां से उसे वापस लाना मुश्किल होगा पर यह नामुमकिन नहीं।वह दिन दूर नहीं जब हमारी तत्कालीन राजनीति एक ऐसे लेवल पर पहुंचेगी और तब एक बार फिर वहीं हवा चलेगी और हमें हमारा सपनों का उत्तराखंड वापस मिलेगा.

जब  एक भी राज्य की कल्पना की गई तब आज के राज्य आंदोलन  युवा वर्ग में आते थे और इनके अथक प्रयासों के बाद अलग राज्य मिला और  इन  सभी का यही मानना है कि आने वाले समय में इतिहास खुद को दोहराएगा और एक बार फिर से सपनों का उत्तराखंड वापस मिलेगा। यह हर उस आंदोलनकारी का सपना है जो कि 16 साल पहले उत्तराखंड के लिए सड़कों  पर निकला था, आजकल जो राजनीति प्रदेश में देखने को मिल रही वो कुछ इस तरह है कि पहले भ्रष्टाचार करो फिर भजपा में शामिल होकर खुद को स्वच्छ दिखाओं।भाजपा में शामिल होने के बाद नेता ऐसा समझते हैं मानों गंगा नहा लिया हो।

उत्तराखंड को संभव करने वाले उन सभी आंदोलनकारीयों का कहना है कि  कि, ‘बदलाव तो युवा ही करेंगें और उस बदलाव के लिए इंतजार हैं सरकार कि तरफ से एक ऐसी गलती का जो युवाओं का मुद्दा बनेगा- ’हम होंगें कामयाब एक दिन’’