किसी भी लंबित मामले में स्टे ऑर्डर छह माह के बाद समाप्त हो जाएगी: सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सभी लंबित दीवानी या आपराधिक मामलों में जहां स्टे ऑर्डर दिया जाता है उसकी अवधि छह माह बीतने के बाद समाप्त हो जाएगी। जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने कहा कि भविष्य में जब भी स्टे ऑर्डर दिया जाएगा वो छह महीने की अवधि के बीत जाने पर समाप्त हो जाएगी। कोर्ट ने कहा कि अपवादस्वरूप ऐसा तभी होगा जब किसी मामले में स्पीकिंग ऑर्डर में इसकी अनुमति दी गई हो।

कोर्ट ने एशियन रिसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड बनाम सीबीआई के मामले में दो जजों की बेंच द्वारा दिए गए रेफरेंस का जबाव देते हुए यह फैसला सुनाया। यह मामला भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत आरोप तय करने के आदेश को चुनौती देने पर हाईकोर्ट द्वारा न्यायिक अधिकार क्षेत्र और इन मामलों में स्टे देने से संबंधित है। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को यह अधिकार है और इसके बाद यह भी बताया कि कैसे इस अधिकार का प्रयोग किया जा सकता है और कब स्थगन दिया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि अगर यह मान भी लिया जाए कि यह हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है और वह आरोप तय करने के आदेश को चुनौती देने के मामले की विशेष परिस्थिति में सुनवाई कर सकता है ताकि अगर कोई गलती हुई है तो उसे दूर किया जा सके, तो भी इस तरह के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग सिर्फ रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामले में ही हो सकता है। अगर इस तरह के मामले की सुनवाई की जाती है तो इस पर निर्णय में कतई देरी नहीं होनी चाहिए। यद्यपि इसके लिए आवश्यक रूप से किसी तरह की समय सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती है। सामान्य रूप से यह दो-तीन महीने से आगे नहीं जाना चाहिए। अगर स्टे दी जाती है, तो यह बिना शर्त या अनिश्चित काल के लिए नहीं होनी चाहिए। स्टे सशर्त होनी चाहिए ताकि जिस पक्ष को स्थगन का लाभ दिया गया है उसे उस स्थिति में उत्तरदायी ठहराया जा सके अगर बाद में कोर्ट को इस मामले में कोई मेरिट नजर नहीं दिखाई देता है और दूसरे पक्ष को इसकी वजह से घाटा और अन्याय नहीं झेलना पड़े।

स्पीकिंग आर्डर के बारे में कोर्ट ने कहा कि स्पीकिंग आर्डर को यह अवश्य ही बताना चाहिए कि मामला इतना महत्त्वपूर्ण था कि स्टे का जारी रहना सुनवाई को पूरा करने से ज्यादा जरूरी था। जिस कोर्ट में स्टे के लिए याचिका दायर की गई हो वह एक ऐसी तिथि निर्धारित कर सकता है, जो कि छह महीने से अधिक नहीं हो। इस अवधि के पूरा हो जाने के बाद इसकी कार्यवाही शुरू हो सके बशर्ते कि इसके आगे और स्थगन का आदेश पेश नहीं किया जाता है।