विधानसभा सत्र बिना नेता विपक्ष, मंत्री बिना विभाग

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उत्तराखंड की राजनीति में नित नया इतिहास लिखा जा रहा है। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार चुनाव जीतकर सत्ता में आने का इतिहास रचा तो आज विधानसभा सत्र के पहले दिन विपक्षी दल कांग्रेस ने बिना नेता विपक्ष के सदन की कार्रवाई में भाग लिया।

यह पहला अवसर है जब सदन में नेता विपक्ष की कुर्सी खाली पड़ी रही और भाजपा के मंत्री भी बिना विभागों के ही सत्र की कार्यवाही में भाग लेने पर मजबूर हुए, क्योंकि उन्हें अभी तक विभाग बांटे ही नहीं गए हैं।

बीते 10 मार्च को आए चुनाव परिणामों को 20 दिन होने जा रहे हैं, लेकिन विपक्ष कांग्रेस अभी तक नेता विपक्ष का चुनाव नहीं कर सकी है। नेता विपक्ष का चुनाव न हो पाने के कारण इस बार सत्र से पूर्व होने वाली कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में भी कांग्रेस के किसी विधायक द्वारा भाग नहीं लिया गया था। जबकि इससे पूर्व ऐसा कभी देखने को नहीं मिला है।

प्रदेश की सरकार ने गाजे-बाजे के साथ 24 मार्च को सूबे की सत्ता तो संभाल ली, लेकिन एक पूरा सप्ताह बीत चुका है अभी तक मंत्रियों को उनके विभाग नहीं बांटे जा सके हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से जब भी पत्रकारों द्वारा इस बाबत सवाल किया जाता है तो उनका एक ही जवाब होता है, बहुत जल्द कर दिए जाएंगे। गिने चुने ही मंत्री हैं, उन्हें भी विभाग नहीं बांटे जा पा रहे हैं अगर यूपी की तरह 50 होते तो क्या होता? मंत्रियों के पास जब विभाग ही नहीं हैं तो सदन में प्रश्नकाल का भी क्या औचित्य होगा? संसदीय कार्य मंत्री सिर्फ इसकी औपचारिकता भर पूरी करते दिखेंगे।

कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह का नेता विपक्ष का चयन न हो पाने के बारे में कहना है कि बिना नेता विपक्ष के सत्र में नहीं आ सकते या सत्र नहीं चल सकता, ऐसी कोई संवैधानिक बाध्यता तो है नहीं। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी को इसके लिए अधिकृत किया गया है, वह जल्द इस पर फैसला लेंगी। उधर अपने मंत्रियों को अभी तक विभाग ने बांट पाने वाले भाजपा के नेता, नेता विपक्ष पर चुटकी लेते हुए कहते हैं कि इस काम को वह तो कर नहीं सकते, यह कांग्रेस को देखना चाहिए कि वह अब तक नेता क्यों नहीं चुन सकी है। मदन कौशिक का कहना है कि वह पहले सीएम के लिए लड़ रहे थे, अब नेता विपक्ष के लिए लड़ रहे हैं, इसमें मैं क्या करूं।