बचपन को भयमुक्त एवं गुलामी से मुक्त करना ही उद्देश्य: सत्यार्थी

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    देश के 23 राज्यों से होती हुई तीर्थनगरी परमार्थ निकेतन में विश्राम के पश्चात शनिवार को भारत यात्रा यहां से विदा हुई। इस मौके पर नोबेल शान्ति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी एवं श्रीमती सत्यार्थी के साथ सैकड़ों बच्चे ’सुरक्षित बचपन’ भारत का संदेश देते हुये लोगों का बच्चों के प्रति जागरूक किया।

    कैलाश सत्यार्थी ने मां गंगा का पावन तट परम शान्ति प्रदान करने वाला बताते हुए कहा कि, “बच्चे ईश्वर का प्रतिरूप हैं, बेटियां तो धरती पर ममता का सागर और माँ रूपी अमुल्य भेंट हैं। परन्तु भारत सहित विश्व के अनेक देशों में आज भी कई बच्चे अपने बचपन को जी नहीं पाते। उनका बचपन असुरक्षित, अभावग्रस्त एवं भययुक्त गुलामी के वातावरण में व्यतित होता है। अतः बच्चों के बचपन को भयमुक्त एवं गुलामी से मुक्त करना ही हमारा प्रयास हैं।”

    भारत यात्रा की परमार्थ से विदाई के पूर्व विश्व में जल की उपलब्धता होती रहे, इस भावना से सभी ने पूज्य स्वामी जी, कैलाश सत्यार्थी, श्रीमती सत्यार्थी, साध्वी भगवती सरस्वती, जया शर्मा, नन्दिनी त्रिपाठी, लौरी, एलिस, सूजी, प्रीति, इन्दू, भारत यात्रा के बच्चे, परमार्थ गुरुकुल के ऋषिकुमार एवं आचार्य तथा योग साधकों के साथ वाटर ब्लेसिंग सेरेेमनी समपन्न की। प्रस्थान से पूर्व परमार्थ निकेतन में जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष एवं ग्लोबल इण्टरफेथ वाश एलायंस के सह-संस्थापक पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज, कैलाश सत्यार्थी एवं साध्वी भगवती सरस्वती ने जिज्ञासुओं की जिज्ञासा का समाधान किया।

    विदेशी यात्री ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज से पूछा कि आध्यात्मिक गुरु होते हुये आपके मन में कैसे ’वाटर, सेनिटेशन और हाइजीन’ पर कार्य करने का विचार आया। इस का समाधान करते हुये स्वामी ने कहा कि ’बच्चे हमारी आने वाली पीढ़ी नहीं हमारा वर्तमान और भविष्य दोनों हैं। भारत में ही स्वच्छ जल के अभाव के कारण प्रतिदिन पांच वर्ष तक की आयु के 1600 बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं, फिर भी लोग चुप रहते हैं। लोगो को कोई बेचैनी नहीं होती। भारत यात्रा की याद में परमार्थ योग विलेज में शिवत्व का प्रतीक रुद्राक्ष के पौधे का रोपण पूज्य स्वामी जी एवं कैलाश सत्यार्थी ने किया।