चार धाम यात्रा के प्रवेश द्वार दक्षिण भारतीयों कि आस्था का केंद्र

ऋषिकेश, उत्तराखंड की चार धाम यात्रा विभिन संस्क्रतियो और भाषा का भी समावेश समेटे हुए है, जहा देश के सभी प्रान्तों  के श्रद्धालु अपने अराध्य से मिलने आते है, और यही कारण है कि यात्रा मार्ग पर विभिन राज्यों कि आश्रम और मंदिर मठ नजर आते है, जिन में इन राज्यों कि जीती जागती सस्कृंति को करीब से देखा जा सकता है।

आज हम आपको उत्तर भारत के  पहले  तिरुपति बाला जी मंदिर के दर्शन करते है। भगवान् विष्णु के रूप को दक्षिण भारत में श्री वेंकटश्वर स्वामी तिरुपति बाला जी के रूप में पूजा जाता है, चार धाम यात्रा के प्रवेश द्वार ऋषिकेश में दक्षिण से आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए 1930 में श्री सचिदानंद सरस्वती ने आंध्र आश्रम की स्थापना की, जिस में दक्षिण भारतीय तीर्थ यात्रियों को यात्रा करने में हर तरह की मदद मिल सके और वो अपनी यात्रा पूरी कर सके, साथ ही भगवान् बाला जी के आशीवाद और पूजा पाठ के साथ वो ऋषिकेश से अपनी यात्रा शुरू कर सके।

ऋषिकेश में स्थित  तिरुपति बाला जी मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बना तिरुपति बाला जी मंदिर का ही प्रतिरूप है, जहा भगवान् की पूजा और उत्सव भी त्रिरुपति के ही जेसे होते है, यात्रा पर आये तीर्थयात्रियो के लिए मंदिर में हर साल बाला जी भगवान का ब्रह्म उत्सव मनाया जाता है जिस में बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान् की डोली के साथ नगर परिक्रमा करते है और भगवान् को उनके प्रिय वाहनों पर उत्सव डोली के रूप में नगर परिक्रमा पर  ले जाते है।

चारधाम यात्रा एक ऐसी यात्रा है जो सभी प्रान्तों को एक सूत्र में बाँधती है,  कुछ सालो में रोड और होटलों के निर्माण ने इस यात्रा को सुलभ तो बना दिया है लेकिन पुराने ज़माने में मुस्किल हालातो से गुजरे तीर्थयात्रियो की सोच ने आने वाले सभी तीर्थ यात्रियों के लिए जगह-जगह आश्रम, मंदिर और धर्मशालाँए बना कर यात्रा को आम-से-आम और खास-से-खास के लिए आसान बना दिया ,जहा यात्रियों को सभी सुविधाए और अपनी संस्कृति के साथ मिले।