रियल एस्टेट एक्ट में चालू प्रोजेक्ट परिभाषित न होने से लटका बिल्डरों पर राहत मामला

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देहरादून। रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट 2016 में चालू (ऑनगोइंग) प्रोजेक्ट के परिभाषित न होने के कारण ही अब तक बिल्डरों के लिए रेरा में राहत का फॉर्मूला निकालने में अधिकारियों के पसीने छूट रहे हैं। लिहाजा, 31 जुलाई के बाद रेरा (रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) में पंजीकरण को आवेदन करने वाले बिल्डरों व प्रॉपर्टी डीलरों को पेनल्टी से राहत देने की दारोमदार अब अन्य राज्यों की व्यवस्था और कैबिनेट के निर्णय पर टिकी है।

इस दौरान सचिव आवास अमित नेगी ने बताया कि बिल्डरों को पेनल्टी में राहत देने के लिए रेरा ने शासन को जो प्रस्ताव भेजा था उसमे स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि चालू परियोजनाओं को एक्ट में परिभाषित नहीं किया गया है। हालांकि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, गुजरात व राजस्थान राज्यों की ओर से अपनाए गए फॉर्मूले का हवाला भी दिया गया है। इन सभी राज्यों की व्यवस्था में एक समान बात यह है कि सभी ने 60 फीसद तक बिक चुके प्रोजेक्ट को पेनल्टी में राहत दी है। हालांकि इन राज्यों ने 60 फीसद का फॉर्मूला कहां से निकाला, इससे राज्य के अफसर पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। अब देखने वाली बात यह है कि उत्तराखंड की कैबिनेट भी इन राज्यों के नक्शेकदम पर आगे बढ़ती है और बिल्डरों व प्रॉपर्टी डीलरों को राहत देने के लिए कोई और उपाय खोजे जाते हैं।
एक्ट में कंप्लीशन सर्टिफिकेट को बनाया आधार
रियल एस्टेट एक्ट में सिर्फ इतना स्पष्ट किया गया है कि जिन परियोजनाओं में एक मई 2017 से पहले कंप्लीशन सर्टिफिकेट (कार्यपूर्ति प्रमाण पत्र) नहीं लिया गया है, उन्हें रेरा में पंजीकरण कराना जरूरी है। इसके लिए समयसीमा 31 जुलाई भी तय कर दी गई थी। जबकि इसके बाद पंजीकरण कराने वाले प्रोजेक्ट को कुल परियोजना लागत के 10 फीसद तक पेनल्टी के दायरे में रखा गया। राज्य सरकार ने इतना जरूर किया कि 31 अक्तूबर तक के समय को एक, दो, पांच फीसद की पेनल्टी में बांट दिया और इसके बाद 10 फीसद पेनल्टी लागू की गई। हालांकि राज्य के बिल्डर यह मांग कर रहे हैं कि अन्य राज्यों की दर परियोजना लागत के प्रतिशत में पेनल्टी की जगह कुछ निश्चित शुल्क लगा दिया जाए।