स्मृति शेष: मंगलेश डबराल, दे गए पहाड़ को लालटेन

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मंगलेश डबराल
देवभूमि उत्तराखंड में जन्मे मंगलेश डबराल विश्व साहित्य को अपनी अनमोल कृतियां दे गए। पहाड़ पर लालटेन-उनका कविता संग्रह उनके जन्मभूमि प्रेम के प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है। उनके निधन पर विश्व के कवियों को आभासी मंच प्रदान करने वाले पोर्टल कविता कोश का ट्वीट मंगलेश डबराल को समझने के लिए मुकम्मल है-
‘मंगलेश डबराल केवल एक कवि नहीं, भारतीय साहित्य के लिए पूरी किताब थे, साहित्य को ईमानदार साहित्यकार बहुत कम मिलते हैं, वो शायद आधुनिक साहित्य में आखिरी ईमानदार लेखक थे! युवा साहित्यकारों को उनसे साहित्य के साथ-साथ यह भी सीखना चाहिए कलम ईमानदार कैसे रहें…।’
-पोर्टल कविता कोश का ट्वीट
मंगलेश डबराल गाजियाबाद के वसुंधरा में जनसत्ता सोसाइटी के फ्लैट में 2012 से पत्नी संयुक्ता डबराल और बेटी अलमा के साथ रह रहे थे। 4 दिसम्बर की रात उन्हें बेटी और भांजे प्रमोद ने वसुंधरा के अस्पताल से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की आईसीयू में रेफर कराया था। बेटा मोहित गुरुग्राम की एक कंपनी में स्क्रिप्ट राइटर हैं। वह पत्नी और बेटी के साथ वहीं ही रहते हैं। 27 नवम्बर को तबीयत खराब होने पर उन्हें वसुंधरा स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कोविड-19 की टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। एम्स में 5 दिसम्बर को उन्हें वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया। वहां बुधवार शाम करीब 6:30 बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा और 7:10 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली।
मंगलेश डबराल के निधन की सूचना से जनसत्ता सोसाइटी में उनके पड़ोसी और पूर्व सहकर्मी असरार खान कहते हैं, अब कौन पूछेगा मियां कैसे हो? असरार कहते हैं, उनका जाना खल गया। मंगलेश डबराल ने आखिरी बार बेटी और पत्नी से वीडियो कॉल कर कहा था कि वह अब थक चुके हैं। वह घर आना चाहते हैं।
काफलपानी की पगडंडियां: 16 मई,1948 को टिहरी गढ़वाल के काफलपानी गांव में जन्मे मंगलेश डबराल की शिक्षा -दीक्षा देहरादून में हुई। वह भोपाल में कला परिषद (भारत भवन) की पत्रिका पूर्वाग्रह में सहायक संपादक रहे। लखनऊ और इलाहाबाद से छपने वाले दैनिक अमृत प्रभात में भी रहे।  उनके खाते में  जनसत्ता का रविवारी बहुत बड़ी उपलब्धि है। उन्हें जनसत्ता दिल्ली के यशस्वी साहित्य संपादक के रूप में याद किया जाएगा।  वह हिंदी पैट्रियाट और प्रतिपक्ष में भी रहे।  फिलवक्त वह नेशनल बुक ट्रस्ट से संबद्ध थे। उनके पांच कविता संग्रह-पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नए युग में शत्रु शामिल हैं।
सम्मान: साहित्य अकादेमी पुरस्कार (2000), पहल सम्मान, ओमप्रकाश स्मृति सम्मान (1982), श्रीकांत वर्मा पुरस्कार (1989)।  इनके अलावा अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से विभूषित।
टूटते दायरे: वह ख्यातिलब्ध अनुवादक के रूप में भी जाने जाएंगे। उनकी कविताओं के अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्पानी, पोल्स्की और बल्गारी भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। कविता के अतिरिक्त वह साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति पर नियमित लिखते रहे। उनकी रचनाओं में सामंती बोध और पूंजीवादी छल-छद्म का प्रतिकार दिखता है। उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म और भाषा पारदर्शी है। उन्होंने नागार्जुन, निर्मल वर्मा, महाश्वेता देवी, यूआर अनंतमूर्ति, कुर्रतुल ऐन हैदर और गुरुदयाल सिंह पर केंद्रित वृत्तचित्रों का पटकथा लेखन भी किया है।