उत्तराखंड में पीडीएनए की प्रक्रिया शुरू, उत्तरकाशी और चमोली पहुंची टीमें

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    इस वर्ष मानसून सीजन में राज्य को हुए भारी नुकसान की प्रतिपूर्ति के लिए प्रक्रिया शुरू हो गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की ओर से उत्तराखंड में पोस्ट डिजास्टर नीड्स असेसमेंट (पीडीएनए) की प्रक्रिया बुधवार से प्रारम्भ हो गई है। गठित टीमें प्रभावित जनपदों के लिए रवाना हो गई हैं। पहली टीम ने उत्तरकाशी और दूसरी टीम ने चमोली पहुंचकर जिलाधिकारी के साथ बैठक कर पीडीएनए को लेकर चर्चा की। कल से टीम प्रभावित क्षेत्रों का भ्रमण कर क्षति का आकलन करेंगी।

    आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि इस वर्ष मानसून में अतिवृष्टि, भूस्खलन एवं आकस्मिक बाढ़ की घटनाओं से राज्य को भारी क्षति पहुंची है। अब तक 135 लोगों की मृत्यु हुई है, 148 लोग घायल हुए हैं तथा 90 लोग लापता हैं। पशुधन और अन्य संपत्ति की भी भारी हानि हुई है। सड़क, बिजली, जल आपूर्ति, कृषि भूमि, आवासीय व वाणिज्यिक परिसरों समेत महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को गंभीर नुकसान पहुंचा है।

    उन्होंने बताया कि एनडीएमए के दिशा-निर्देशन में पीडीएनए की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है। एनडीएमए के सहयोग से सभी विभागों के अधिकारियों के लिए एक कार्यशाला का आयोजन कर पीडीएनए को लेकर आवश्यक दिशा-निर्देश जारी हो गए हैं तथा विभागों की शंकाओं का समाधान किया गया है। उन्होंने बताया कि पीडीएनए के लिए एनडीएमए, राज्य व जनपद स्तर पर विशेषज्ञों को सम्मिलित कर चार टीमें बनाई गई हैं। पहली टीम देहरादून, हरिद्वार, उत्तरकाशी और टिहरी, दूसरी टीम पौड़ी, चंपावत, रुद्रप्रयाग, तीसरी टीम पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर तथा चौथी टीम ऊधमसिंहनगर, नैनीताल और चंपावत में सर्वेक्षण करेगी। जिलों में पहुंचकर टीमें सबसे पहले जिलाधिकारियों के साथ बैठक करेंगी, तत्पश्चात प्रभावित क्षेत्रों का सर्वेक्षण प्रारम्भ करेंगी।

    आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास सचिव ने बताया कि पीडीएनए का मुख्य उद्देश्य आपदा से हुई क्षति का आकलन कर एक समग्र पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण रणनीति तैयार करना है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत आपदा के समग्र सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का आकलन किया जाएगा, ताकि प्रभावित जिलों और समुदायों की वास्तविक स्थिति को सामने लाया जा सके। पीडीएनए रिपोर्ट में अल्पकालिक, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण आवश्यकताओं को समाहित करते हुए एकीकृत रणनीति बनाई जाएगी। इसके लिए डिजास्टर रिस्क रिडक्शन और बिल्ड बैक बेटर सिद्धांतों को आधार बनाया जाएगा। साथ ही, लैंगिक और पर्यावरणीय पहलुओं को भी प्राथमिकता दी जाएगी, ताकि पुनर्निर्माण कार्य न केवल सुरक्षित बल्कि टिकाऊ भी हो सकें। इसके साथ ही आपदा जोखिम प्रबंधन के लिए ठोस सुझाव, संस्थागत तंत्र और नीतिगत विकल्पों की अनुशंसा भी की जाएगी। अंतिम रिपोर्ट राज्य सरकार द्वारा तैयार कर केन्द्रीय गृह मंत्रालय को प्रस्तुत की जाएगी।

    इन क्षेत्रों में किया जाएगा पीडीएनए

    सामाजिक क्षेत्रों में आवास एवं बस्तियां, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण तथा सार्वजनिक भवन और नागरिक सुविधाओं का आकलन किया जाएगा। बुनियादी ढांचे से जुड़े क्षेत्रों में पेयजल एवं स्वच्छता, सड़कें और पुल (मुख्य जिला सड़कें, अन्य जिला सड़कें, ग्राम सड़कें और पुल), विद्युत आपूर्ति एवं अन्य बुनियादी ढांचे को शामिल किया गया है।

    उत्पादक क्षेत्रों में कृषि एवं बागवानी, पशुपालन एवं पशुधन, आजीविका, वानिकी एवं पर्यावरण तथा पर्यटन और सांस्कृतिक धरोहर का मूल्यांकन किया जाएगा। इसके अतिरिक्त क्रॉस-कटिंग क्षेत्रों के अंतर्गत आपदा जोखिम न्यूनीकरण और पर्यावरणीय पहलुओं को भी विशेष रूप से ध्यान में रखा जाएगा।