एम्स ऋषिकेश में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा थेरेपी हुई शुरू

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एम्स
एम्स संस्थान बना उत्तराखंड का पहला प्लाज्मा डोनेट सेंटर 
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा थेरेपी मंगलवार से विधिवत शुरू हो गई है। इस थेरेपी के शुरू होने से कोरोना को पराजित कर चुके मरीज अन्य संक्रमितों की जीवन रक्षा के लिए अपना प्लाज्मा दान कर सकेंगे।
मंगलवार काे एम्स संस्थान में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा थेरेपी शुरू हुई। उत्तराखंड राज्य में यह थेरेपी पहली बार एम्स में शुरू हुई है। साथ ही एम्स मेंप्लाज्मा डोनेशन भी शुरू गया है। बताया गया कि पिछले माह 27 जुलाई, 29 जुलाई व इसी माह 1 अगस्त को कोरोना संक्रमण से ठीक हुए मरीजों से तीन यूनिट कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा एकत्रित किया गया था।
एम्स ऋषिकेश के विशेषज्ञ चिकित्सकों के मुताबिक इस बीमारी के उपचार में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा थेरेपी बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। इस अवसर पर एम्स निदेशक प्रो़. रवि कांत ने बताया कि जब कोई व्यक्ति किसी भी सूक्ष्म जीव से संक्रमित हो जाता है, तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इसके खिलाफ लड़ने के लिए एंटीबॉडी का उत्पादन करने का काम करती है। यह एंटीबॉडीज बीमारी से उबरने की दिशा में अपनी संख्याओं में वृद्धि करती हैं, और वांछनीय स्तरों तक वायरस के गायब होने तक अपनी संख्या में सतत वृद्धि जारी रखती हैं। प्रो. रवि कांत ने बताया कि पहले से संक्रमित होकर स्वस्थ हुए व्यक्ति में निर्मित एंटीबॉडी, एक रोगी में सक्रिय वायरस को बेअसर कर देगा, साथ ही उसकी रिकवरी में तेजी लाने में मदद करेगा। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन एंड ब्लड बैंक विभागाध्यक्ष डाॅ. गीता नेगी ने बताया कि कोई भी कोरोना संक्रमित व्यक्ति जो ठीक हो चुका हो, वह निगेटिव आने के 28 दिन बाद प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. दलजीत कौर, डाॅ. सुशांत कुमार मीनिया व डाॅ. आशीष जैन ने कॉनवेल्सेंट रक्तदाताओं से अपील की है कि वे इस प्रकिया के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों जागरूक करें ताकि भविष्य में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा यूनिट्स की कमी नहीं पड़े।