हिमालय और गढ़वाल का इतिहास जानना है तो अगले साल एनआइएम चले आईये

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उत्तरकाशी। देश विदेशी शोधकर्ताओं और इतिहास जानने की दिलचस्पी रखने वालों के लिए खुशखबरी है। अब पर्वतारोहण, हिमालय के इतिहास, वन संपदा और उत्तराखंड की संस्कृति की जानकारी आपको कंप्यूटरीकृत तकनीक से मिलेगी। इसके लिए उत्तरकाशी जिले में स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेन‌ियरिंग, संग्राहलय को तैयार किया जा रहा है। तकरीबन तीन करोड़ की लागत से बनाये जा रहे इस म्यूजियम के बाहरी ढांचे में पारंपरिक गढ़वाली शैली की झलक देखने को मिलेगी तो ‌अंदर से इसमें अत्याधुनिक उपकरणों व हिमालयी संस्कृति को संजोया जायेगा।

नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेन‌ियरिंग संग्राहलय के चीफ क्यूरेटर विशाल रंजन ने बताया कि भूकंप रोधी इस भवन का निर्माण मार्च 2016 में शुरू किया गया था, जिसे फरवरी 2018 तक पूरा करने का लक्ष्य है। संग्राहलय में दो भवन होंगे, जिनमें से एक भवन दो मंजिला होगा। संग्राहलय के भवन का बाहरी ढांचा देवदार की लकड़ी और पत्थर के पटालों से पहाड़ी शैली में बनेगा। जिसमें उत्तरकाशी जिले की लोक कथाओं को उकेरा जाएगा। जबकि अंदरूनी हिस्से में इसके विपरीत अत्याधुनिक 3डी पेंटिंग, होलोग्राफिक, लेजर किरणों, कंप्यूटरीकृत, ऑडियो-वीडियो तकनीक व आधुनिक एफआरपी मॉडल के ज‌रिए, लोगों को हिमालय की चोटियों, नदियों, पर्वतारोहियों, जैव विविधता, पुरात्तव सामान, पहाड़ी संस्कृति की जानकारी रोचक ढंग से दी जाएगी।
उन्होंने बताया कि भवन निर्माण में उत्तरकाशी के कृष्णा कुड़ियाल, जिन्होंने उत्तराखंड के कई प्राचीन मंदिरों का जीर्णोधार किया है तथा बंगाल के एसके प‌हाड़ी, जिन्होंने राष्ट्रपति भवन का संग्राहलय बनाया है का सहयोग लिया जा रहा है। संग्राहलय में कुछ चीजें मुख्य आकर्षण का केंद्र भी रहेंगी। इनमें भवन की छत में लगी एलसीडी स्क्रीन के वीडियो से मिलेगा खुले आकाश के नीचे घूमने का एहसास। गूगल मैप तकनीक की स्क्रीन पर ह‌िमालय में अपनी लोकेशन ढूंढ सकेंगे पर्यटक। 3डी पेंटिंग में चलकर ग्लेशियर पार करने का अनुभव मिलेगा। होलोग्राफ तकनीक से दिखेंगी हिमालय की हर चोटी। एफआरपी मॉडल में दिखेंगे प्रसिद्ध पर्वतारोहियों के चेहरे। पहाड़ी बाजार का रीयल सेट। चार धाम के मॉडल। जंगली जीवों के मॉडल। सेल्फी मशीन। गढ़वाली कुमाऊंनी संस्कृति के पुराने उत्पाद भी यहां आसानी से देखने को मिलेंगे।

वहीं निम के प्रचार्य कर्नल अजय कोठियाल के अनुसार संग्राहलय बनाने का उद्देश्य हिमालय व पर्वतारोहण की जानकारी देने के साथ ही, लोगों को पहाड़ी संस्कृति के करीब लाना भी है। ताकि देश-विदेश के लोग पहाड़ की संस्कृति को जान पाये।