पपाया मैन ने खोजी सेब की फसल की आधुनिक तकनीक

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    (देहरादून) उद्यान के क्षेत्र में तीन-तीन राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले पपाया मैन सुधीर चड्ढा ने उत्तराखंड में सेब उत्पादन की नई तकनीक इजाद की है। जिसकी बदौलत काश्तकारों को चारों ओर से मुनाफा हो सकता है। पपाया मैन की विदेशों जाकर सेब की फसल का अध्यन कर नई तकनीक खोज निकाली। जिसकी बदौलत आज सेब का बाग लगाकर अगले ही वर्ष मुनाफा कमाने की उम्मीद जागी है।

    सुधीर चड्ढा ने कहा कि, “सरकारी आंकड़ों के अनुसार हर वर्ष लगभग चार लाख टन सेब का आयात भरतवर्ष में किया जाता है। जो हिमाचल के संपूर्ण उत्पादन का लगभग आधा है।” चड्ढा का मामना है कि यदि उत्तरकाशी के किसान यह निश्चित करके सेब उत्पाद में पूरे उत्साह के साथ लग जाएं तो आने वाले पांच वर्षो में आसानी से आयात को रोकने में उत्तराखंड का एक जिला ही काफी होगा। उनके अनुसार इटली के विशेषज्ञों के सर्वेक्षण के आधार पर बताया गया है कि, “सेब के साथ-साथ अखरोट,चेरी तथा नवीन प्रजातियों के पल्म व नासपति की संभावनाएं भी उत्तराखंड में अपार है। साथ ही उत्तराखंड फल क्रांति पलायन रोकने का प्रमुख जरिया बन सकती है।” चड्ढा ने कहा कि उत्तराखंड सेब उत्पादन के क्षेत्र में क्रांति लाने उद्देश्य से सीएम एप्पल मिशन प्रारंभ किया है। जिसके अच्छे परिणाम अब सामने आने लगे है और कार्यक्रम को आगे बढ़ना तय किया है। उन्होंने कहा कि, “उत्तराखंड में सेब की खेती से प्रदेश से पलायन को भी रोकने में काफी मदद हासिल होगीं।”

    सेब की फसल को बेहतर बनाने का संकल्प

    कुछ वर्षो पहले सेब का बाग लगातार व्यवसायिक फसल के लिए तकरीबन आठ से दस साल इंतजार करना होता था। जिससे काश्तकारों को काफी मेहनत और देखभाल करने की जरूरत होती थी। देशभर में सेब के उत्पादन के बावजूद लाखों टन सेब विदेशों से आयात किया जाता है। इसे देखते हुए पपाया मैन सुधीर चड्ढा ने एक संकल्प के तौर पर सेब की फसल के लिए मशहूर कई देशों का दौरा किया। उन्होंने इटली व हाॅलेंड आदि मुल्कों से तकनीक हासिल कर उत्तराखंड में सेब की नई प्रजाति विकसित की। उनके लगाए जाने वाले बाग में एक वर्ष में ही सेब की फसल तैयार होने लगती है। लगभग पांच साल में एक हेक्टयर बाग में काश्तकार की आय लगभग पांच से दस लाख रुपये तक हो सकती है।