उत्तराखंड : गांव-गली से पहचान, आएगी नड्डा के काम

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भाजपा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष जेपी नड्डा को मालूम है कि धारचूला और निलांग जैसे क्षेत्र उत्तराखंड के सीमांत हैं। या फिर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक या फिर राज्य मंत्री धन सिंह रावत गढ़वाल के पौड़ी जिले से आते हैं। नड्डा ये भी जानते हैं कि प्रदेश के कौन से हिस्से में भाजपा मजबूत है या फिर कमजोर। जी हां, गांव-गांव, गली गली से नड्डा की यही पहचान आने वाले दिनों में उनके काम आएगी। नड्डा उत्तराखंड राज्य बनने के बाद दो बार यहां के चुनाव प्रभारी रह चुके हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत का श्रेय नड्डा को भी काफी हद तक गया था।
नड्डा उत्तराखंड के पड़ोसी राज्य हिमाचल से हैं। इस नाते उत्तराखंड भाजपा के तमाम कार्यक्रमों में उनकी पहले से शिरकत होती आई है। यहां के नेताओं से उनकी पुरानी पहचान है। अभी कुछ दिन पहले जब नड्डा कार्यकारी अध्यक्ष बतौर यहां आए थे, तब 1984 के डीएवी काॅलेज देहरादून छात्र संघ चुनाव के संस्मरण खास तौर पर चर्चा में आए थे। आज के स्पीकर प्रेम चंद्र अग्रवाल तब छात्र संघ अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ रहे थे। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत तब भाजपा के संगठन मंत्री थे और नड्डा काॅलेज चुनाव में प्रचार करने आए थे।
संगठन में लंबे समय से काम करने की वजह से नड्डा की सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत से काफी अच्छी ट्यूनिंग मानी जाती है। भाजपा में त्रिवेंद्र समर्थक इस बात से भी काफी खुश हैं। वैसे, उत्तराखंड भाजपा की संगठनात्मक मजबूती के लिए आने वाले दिनों में जब नड्डा बात करेंगे तो यहां के लोगों का मिजाज, भौगोलिक परिस्थिति, सियासी इतिहास, पार्टी से अपेक्षा जैसी तमाम बातों पर उन्हें बहुत माथापच्ची नहीं करनी पडे़गी। 2022 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड भाजपा को नड्डा के पूर्व अनुभव का लाभ मिल सकेगा। नड्डा ऐसे समय में अध्यक्ष बने हैं, जबकि त्रिवेंद्र सरकार के पास तेजी से काम करने के लिए अब सिर्फ दो साल बचे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि नड्डा की उत्तराखंड को लेकर समझ स्थानीय स्तर पर पार्टी के लिए किसी खुराक से कम साबित नहीं होगी।