देहरादून में प्लास्टिक की बोतलें दे रही हैं पर्यावरण संरक्षण का संदेश

“जो बदलाव आप चाहते हैं, वो आप खुद बने”, ये बात हम सालों से सुनते आ रहे हैं, लेकिन हम में से कुछ लोगों ने इस बात को अपने जीवन में चरितार्थ कर लिया है। केवल विहार, देहरादून, के रहने वाले आशीष गर्ग आनेवाले कल को बेहतर बनाने के लिये नये तरीकों पर काम करते आ रहे हैं। इनमें बारिश के पानी को सामान्य रेन-वॉटर प्लांट के जरिये बचाना, पत्तों से खाद बनाना औऱ घरों के कूड़े में से प्लास्टिक की बोतलों को अलग करना शामिल है।

‘कम से कम कूड़े’ के आइडिया से आशीष को इन कामों की प्रेरणा मिलती है, और वो इस तरह के छोटे लेकिन बड़ा असर करने वाले आइडिया लेकर आते हैं। वो कहते हैं कि “सिंग्ल इस्तेमाल के प्लास्टिक पर बैन लगने से बाजार से आने वाला ज्यादातर प्लास्टिक कूड़ा कम हो गया है, लेकिन मेरा ध्यान दूध की थैलियों की तरफ गया जो हम रोजाना अपने घरों में लाते हैं।”

Ashish Garg, experiment with plastic waste

इस सोच के चलते, इन थैलियों को अच्छी तरह से धोने के बाद, खाली प्लास्टिक की बोतलों में भरकर, उन्हें कॉम्पैक्ट तरह से पैक कर ज्यादा से ज्यादा थैलियों को एक बोतल में पैक करने का तरीका सामने आया। आशीष कहते हैं कि “इस तरह कोई और भी पार्दर्शी प्लास्टिक कूड़ा भी इसमें भरा जा सकता है।”

इसका फायदा, बोतल में प्लास्टिक कूड़ा डालने से कूड़ा एक जगह एकत्रित हो गया और साथ ही ये बोतल एक सख्त ईंट जैसा रूप ले लेती है, जिसे पेंट करने के बाद बगीचों में तार-बाढ़ की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है। य़ा आप इन बोतलों को जमा कर, देहरादून के आईआईपी में ईंधन बनाने के लिये भेज सकते हैं, इसके इस्तेमाल ओलिफीन की तरह किया जाता है।

आखिर में आशीष कहते हैं कि “मैं ‘वॉंट नॉट- वेस्ट नॉट’ के सिद्धांत पर काम कर रहा हूं। ये एक बहुत बेसिक तरीका है, इसके पीछे लोगों को एक साझा कारण के लिये प्रोत्साहित करना है। जिसके चलते हम अपने जीवन से प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम कर सकें।”