शंकराचार्य की तलाश में जुटा जूना अखाड़ा

0
1025

सन्यासी अखाड़ों के ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य पद के लिए दावेदार के लिए नागा सन्यासी के सबसे बड़े अखाड़े जूना अखाड़े में उच्च स्तर पर विचार विमर्श किया जा रहा है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य पद को लेकर पिछले 65 वर्षो से चल रहे विवाद का निस्तारण करते हुए दोनों दावेदारों का दावा खारिज करते हुए नया शंकराचार्य चुने जाने का निर्णय से सातों सन्यासी अखाड़ों में हलचल मची हुई है।
शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठाम्नाय अनुशासन संहिता के अनुसार इन चार मठों के शंकराचार्य पद पर इनसे जुड़े पदनाम वाले सन्यासी ही आसीन हो सकते हैं।

विगत 1952 से विवादित चली आ रही ज्योतिषपीठ पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती तथा स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती दोनों ही दशनाम परम्परा से इस के योग्य नहीं है। सरस्वती नामा होने के नाते यह दोनों श्रृंगेरीमठ के आधीन आते हैं। अब इन दोनों का ही दावा खारिज हो जाने के कारण ज्योतिषपीठ से सम्बद्व गिरि, पर्वत, सागर नाम वाले सन्यासियों का दावा स्वतः ही मजबूत हो गया। इन तीनों दावेदारों मे सर्वाधिक मजबूत गिरिनामा सन्यासियों का दावा है। जिसके चलते श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा में ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य पद पर किसी गिरि पदनाम धारी को नियुक्त करने की कवायद तेज हो गयी है।

जूना अखाड़े के शीर्षस्थ नेतृत्व ने अखाड़े से जुड़े विद्वान सन्यासियों, महामण्डलेश्वरों तथा प्रतिष्ठित संतों की सूची बनानी शुरू कर दी है। साथ ही ऐसे विद्वान सन्यासी की तलाश की जा रही है, जो शंकराचार्य पद के लिए निर्धारित मानकों पर खरा उतरता हो। जूना अखाड़े के एक शीर्ष संत के अनुसार ज्योतिषपीठ पद अभी तक गिरि पर्वत या सागरनामा संयासियों की उपेक्षा हुई है लेकिन अब इस संदर्भ में गंभीर प्रयास किए जायेंगे और योग्य सन्यासी को इस पद के लिए प्रस्तुत किया जायेगा।

आद्य जगद्गुरू शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए चार मठों की स्थापना की और उन चार मठों के आचार्य के पद पर अपने चार शिष्य प्रतिष्ठित किए। फिर दसों दिशाओं के प्रतीक रूप मे दस भिन्न पद नाम देकर दस शिष्य बनाए, जिन्हें दसों दिशाओं के संरक्षक के रूप मे नियुक्त किया। इन्हीं शिष्यों को दशनाम सन्यासी कहा गया। जिनके नाम तीर्थ, आश्रम, वन, अरण्य, गिरि, सागर, पर्वत, सरस्वती, भारती तथा पुरा कहा गया। इन पदनाम वाले सन्यासियों को चारों मठों से जोड़ दिया गया। जिसमें ज्योतिमठ के साथ गिरि, पर्वत, सागर, पदनाम वाले, शारदापीठ के साथ तीर्थ और आश्रम, गोवर्धनमठ जगन्नाथपुरी के साथ वन और अरण्य, श्रृगेरीमठ के साथ सरस्वती, भारती तथा पुरी पदनाम वाले सन्यासियों को सम्बद्ध कर