चाय बागानों पर पलायन का संकट

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सार्वजनिक मंचों से अपने को चाय बेचने वाला और शून्य से शिखर तक पहुंचने की कहानी गर्व से सुनाते हैं, लेकिन इसके उत्पादन से जुड़े मजदूरों के लिए यह गर्व की बात नहीं है। बागान में काम करने वाले कर्मचारियों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है। चाय बागान के श्रमिकों को कई माह से वेतन नहीं मिल रहा है। जिससे वे पलायन को मजबूर हैं।

उत्तराखंड टी बोर्ड कौसानी में बीते पांच महीने से कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है। जिससे उनकी परेशानी बढ़ गई है। रोजी रोटी के लिए परेशान ये श्रमिक यहां से कहीं और जाने की सोच रहे हैं। इससे पहले भी चाय फैक्ट्री बंद होने से करीब 25 परिवारों ने यहां से पलायन किया था। चाय बागानों की देखरेख में लगे ये परिवार विभाग की लापरवाही से कई माह से वेतन नहीं पा सके हैं। श्रमिकों का कहना है कि जब रोटी के लिए भी सोचना पड़ रहा है।

चाय बागान में काम करने वाले श्रमिक नंदन का कहना है कि, “टी बोर्ड के अधिकारी श्रमिकों के प्रति अमानवीय व्यवहार कर रहे हैं। बीते कई महीनों से सिर्फ काम करवाया जा रहा है। लेकिन वेतन के नाम पर कुछ भी नहीं दिया जा रहा है।”

श्रमिक चतुर सिंह का कहना है कि, “पहले के मुकाबले चाय बागानों का स्थिति भी अब बदतर है। यदि यही हाल रहा तो धीरे धीरे चाय बागान नष्ट हो जाएंगे।” श्रमिकों का कहना है कि चुनाव के समय जनप्रतिनिधि बहुत लंबे चौड़े वादे करके जाते हैं। लेकिन बाद में सब भूल जाते हैं। चाय बागान और चाय के श्रमिकों को कोई याद नहीं रखता। बस कहने के लिए चाय वाला प्रधानमंत्री है।