स्वाद से संस्कृति और पहाड़ी प्रवासियों के बीच में पकड़ को मजबूत बनाते हरदा

0
1168

देहरादून, कुछ चीजें रहन-सहन, वातावरण और अपनों से जुड़ाव की खून में ही दौड़ती रहती हैं और समय के साथ-साथ माटी से जुड़ाव की यह मीठी यादें जोर मारने लगती है ।उम्र के अहम पड़ाव पर पहुंच चुके हरीश रावत इन चीजों को बखूबी समझते हैं, यही कारण है कि हरीश रावत कि छवि उत्तराखंड में जमीनी नेता के रूप में जानी जाती है।

नौकरी, रोजगार और बेहतर भविष्य की तलाश में एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी भी पहाड़ों से उतर कर मैदानों में खो सी गई है। पहाड़ी गांव सिर्फ़ यादों, कहानी-किस्सों और मॉडर्न होते संगीत में रह गए हैं, ऐसे जीवन की व्यस्तता ने चाहे पुरानी पीढ़ी हो या नई पीढ़ी सब के मन के किसी कोने मे पहाँड अौर गाँव की मिट्टी की सोंधी खुशबू को आज भी जिंदा रखा हुआ है। यही कारण है हरीश रावत अब पारंपरिक राजनीति से हटकर पहाड़ियों के मन में पहाड़ की यादों को जिंदा करने की एक नई पहल कर रहे हैं, जो कभी पहाड़ी फल-काफल पार्टी के रूप में और कभी पहाड़ी ककड़ी -आम पार्टी और पहाड़ के पारंपरिक व्यंजनों के रूप में सामने आ रही है ।

हरीश रावत को इसमें लोगों से जुड़ने का मौका तो मिल ही रहा है, साथ ही अपने को एक खाटी जमीनी नेता के रुप में स्थापित करने का भी मौका मिल रहा है, जो अन्य राजनीतिक दलों की समझ से ऊपर की बात है। कांग्रेस राज्य में अपनी खोई हुई जमीन तलाश रही है, लेकिन आपसी मतभेद कांग्रेस को उभरने में सबसे बड़ी बाधा के रूप में सामने आ रहे हैं। टुकड़ों में बटी कांग्रेस जहां लोकप्रियता को खोती जा रही है, वही हरीश रावत अपनी पकड़ को लगातार मजबूत बनाते जा रहे हैं । यह बात ना तो वर्तमान अध्यक्ष प्रीतम सिंह को समझ में आ रही है और ना ही महिला मुख्यमंत्री का सपना पालने वाली इंदिरा हिरदेश को।

हरीश रावत ने लगातार अपनी पकड़ अकेले चलकर संगठन को दिखानी शुरू कर दी है, ऐसे में यह छोटी-छोटी पहाड़ी संस्कृति से जुड़ी पार्टियां पहाड़ के इस नेता को अंदरखाने एक मौन समर्थन दे रही है। पहाड़ के हितों का राजनेता अब हरीश रावत बनते जा रहे हैं और आने वाले दिनों में जब चुनावी बिसात बिछनी शुरू होगी, तब हरीश रावत की ताकत एक बार फिर सामने आएगी। इस बात को दिल्ली में बैठा आलाकमान तो समझता है, लेकिन हरीश रावत को कांग्रेस में ही चुनौती देने वाले नेता सिर्फ कयास लगाए जा रहे हैं और यह आम पार्टी कब खास पार्टी में तब्दील हो जाएगी इसका अंदाजा राजनीतिक पंडित भी नहीं लगा पा रहे हैं।

हरदा की इस चाल को आम के आम गुठलियों के दाम के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि उनके सबसे बड़े राजनीतिक विरोधी त्रिवेंद्र सिंह रावत जी हरदा किस पार्टी के खास मेहमान बन कर उनकी इस सोच को सलाम कर चुके हैं।