हरिद्वार मामलाः अभी और खिचेंगी तलवारें

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कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज और मेयर के समर्थकों के बीच हुए संघर्ष के बाद भले ही कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक सुलहनामे की कोशिश कर रहे हों, पर जिस प्रकार से विवाद तूल पकड़ता जा रहा है उसको देखते हुए अभी इसके और गहरे होने की संभावना है। बतादें कि जिस जलभराव को लेकर दोनों गुटों के समर्थकों के बीच संघर्ष हुआ वह कोई नया मामला नहीं है। वर्षों से यह समस्या मध्य हरिद्वारवासियों के लिए किसी नासूर से कम नहीं है।

इसको लेकर पूर्व में भी विवाद हो चुके हैं। जब कांग्रेस की सरकार सत्ता में थी तो यहां जलभराव को लेकर भाजपाईयों ने अपनी राजनीति चमकाई। अब जबकि भाजपा की प्रदेश में सरकार है तब भी लोगों का जलभराव के कारण बुरा हाल है। सत्ता किसी की दल की रही हो जलभराव की समस्या से लोगों को कोई भी निजात नहीं दिला सका। अब स्थित यह है कि मेयर के करीबी मदन कौशिक इस समय प्रदेश की सत्ता में जहां शहरी विकास मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर हैं वहीं सतपाल महाराज पर मंत्री के साथ जनपद हरिद्वार का प्रभार भी है। ऐसे में दोनों नेताओं की जिम्मदारी जनता को समस्या से निजात दिलाने की बराबर की है। मगर हर कोई अपनी राजनीति रोटियां सेकने और वोट बैंक के चक्कर में लगा हुआ है। हालांकि दोनों मंत्रियों के बीच केवल एक दीवार का अंतर है। दीवार के इस ओर सतपाल महाराज तो दूसरी तरफ मदन कौशिक का आवास है।
पड़ोसी होने के बाद भी दोनों में छत्तीस का आंकड़ा है। और यह बात गुरुवार को हुए संघर्ष से और साफ हो गई। ऐसा भी नहीं की प्रेमनगर आश्रम को लेकर पहली मर्तबा विवाद की स्थिति उत्पन्न हुई हो। पूर्व में भी जलभराव के समय ऐसी ही समस्या उत्पन्न हो चुकी है। वहीं भाजपा इस प्रकरण के बाद खुलकर दो खेमों में नजर आने लगी है। भाजपा के चार विधयक व जिलाध्यक्ष जहां खुलकर महाराज के समर्थन में हैं तो वहीं दूसरा खेमा मदन कौशिक का समर्थन कर रहा है।
वहीं सबसे आश्चर्यजनक तो यह कि कांग्रेसी नेता सतपाल ब्रह्मचारी का मेयर के समर्थन में आना भी कोई बड़ी वजह की ओर इशारा कर रहा है। अब यह तो समय ही बताएगा की दोनों गुटों के बीच उपजा विवाद कहां जाकर समाप्त होता है। बहराल जो स्थिति बनी हुई है उसको देखते हुए सुलह का कोई मार्ग नजर नहीं आ रहा है।