मातावाला बाग पर महंत के चहेतों की नजर, काट रहे हरे पेड़

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देहरादून। पंच चकारों के लिए मशहूर देहरादून अपने पांच चकार खो रहा है। जिनमें चाय, चूना, चोब, चकोतरा, चावल (बासमती) शामिल है। बाग-बगीचे भी पूरी तरह मिट रहे हैं। सड़क के किनारे लगे पेड़ विस्तारीकरण की भेंट चढ़ गए हैं, जबकि मातावाला बाग महंत के चहेतों की भेंट चढ़ रहा है, जो जमीनी कारोबार में लगे हुए हैं। सहारनपुर रोड पर स्थित मातावाला बाग में अरबो-खरबों की वन संपदा है, जिसे बेचने की साजिश चल रही है। इसका प्रमाण पेड़ों की कटान है।
गुरु राम राय दरबार के वर्तमान महंत जो धार्मिक संस्थाओं के ट्रस्टी और केवल केयर टेकर हैं। अब दरबार की जमीनों और संपत्ति को स्वार्थ वश धर्म की आड़ में खुर्द-बुर्द करने की कोशिश में प्रकारान्तर में सहयोग दे रहे हैं।
क्षेत्र की जनता व संगत के लिए ब्रह्मलीन महाराज इन्द्रेश चरण दास द्वारा छोड़ा गया विशालकाय हजारों फलदार वृक्षों वाला मातावाला बाग धीरे-धीरे मिटने की कगार पर है। इस बाग में इस क्षेत्र की जनता टहलती और बच्चे खेलते थे तथा युवा कसरत एवं योगा करते थे, लेकिन अब इस पर ग्रहण लग रहा है। महंत गुरु राम राय दरबार के इशारों पर तथा कथित कारिंदों द्वारा इस बाग के सभी गेटों पर ताला लगाकर बंद कर दिया गया है।
इसके पीछे का मकसद कुछ और ननहीं दरबार की अन्य कीमती प्रॉपर्टी की तरह इस बेशकीमती बाग को चुपचाप से कटवाकर एजुकेशन व स्वास्थ्य मिशन की आड़ लेकर तहस-नहस करने की योजना को अंजाम देना बताया जा रहा है| इसी क्रम में हरे-भरे वृक्षों का अवैध कटान वन विभाग व उद्यान विभाग से साठगांठ करके धड़ल्ले से किया जा रहा है। इसमें कई वे नेता भी शामिल हैं, जो सत्ता में पहुंच रखते हैं और जमीन कारोबारी के रूप में दरबारी बन कार्य कर रहे हैं। पहले भी कई बार गरीबों को और छोटे दुकानदारों को उजाड़ने का खेल खेला जा चुका है और धार्मिक आड़ में संगत का दुरुपयोग किया जा चुका है।
दरबार की पहुंच का प्रमाण इसी से लिया जा सकता है कि सरकार व वन विभाग और शासन एवं प्रशासन इस मामले में कोई कदम नहीं उठा रहा है। इसका कारण महंत के दरबार में बैठे पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों की जमात है जो लोगों को प्रभाव में लेते रहते हैं।
वनाधिकारी देहरादून प्रभाग के अनुसार उन्होंने 20 पेड़ों की अनुमति दी है। इसके बाद कुछ बताने से कन्नी काटते नजर आए, जबकि अब तक लगभग 200 से अधिक हरे-भरे फलदार पेड़ों के काटान, सवालिया निशान लगाती है। प्रशासन की मौन चुप्पी और चर्चाओं में है।