गंगा जल को आचमन योग्य बनाने के एन. जी.टी. के आदेश का नहीं दिख रहा कोई असर

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ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट पर गंगा, घाट से लगभग 400 मीटर दूर बह रही है। त्रिवेणी घाट तक लायी गयी गंगा की धारा में गंदगी का अम्बार लग चुका है ।गंगा को स्वछ अविरल रखने की मुहीम में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सख्ताई का कोई असर नहीं हो रहा है जिसके चलते एन. जी.टी. ने उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के प्रशाशन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाये है। 

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देव भूमि के प्रवेश द्वार ऋषिकेश, जो अपनी सुंदरता , मंदिरों और योग के लिए जाना जाता है। यही कारण है यहाँ साल भर धार्मिक यात्रा और उत्सव में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में तीर्थ यात्री और पर्यटक आते हैं ,जिसके चलते इन सबका बोझ मैली गंगा को उठाना पड़ता है। लेकिन अपने ही घर में मैली हो रही गंगा को स्वछ निर्मल और अविरल बनाने के लिए एनजीटी ने कड़ा कदम उठाते हुए ऋषिकेश में 1 फ़रवरी 2016 से पोलिथिन के प्रयोग पर पूर्णता प्रतिबंध लगा दिया है , साथ ही इसका प्रयोग करने वालो के खिलाफ़ सख्त कारवाही और 5000 रुपये के जुर्माने की बात कही है, मगर तीर्थनगरी में यह पाबंदी बेसर दिख रही है। गंगा घाट से 400 मीटर दूर बह रही है। घाट तक लायी गयी गंगा धारा में गंदगी का अम्बार है जिस से श्रद्धालुओ में बड़ी निराशा है ।

वहीं चुनाव के नतीजों का इंतज़ार कर रहे जन प्रतिनिधियों ने अपने मेनीफेस्टो में गंगा को घाट पर लाने की बात तो कही है लेकिन सरकार बनने के बाद इस पर कितना अमल होता है ये भविष्य तय करेगा। वादे और दावे हर कोई जन प्रतिनिधि कर रहा है लेकिन अपने ही घर में मैली हो रही गंगा को स्वछ करने के लिए हर एक व्यक्ति की भागीदारी बहुत एहम है। तभी गंगा की अविरलता और स्वछता  बनी रहेगी, जिससे गंगा जल आचमन योग्य हो पायेगा।