गैरसैंण: राजधानी की ख्वाहिश में तपता पहाड़

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उत्तराखंड की परमानेनंट राजधानी कहां हो इस सावल ने एक बार फिर आग पकड़ ली है। इसका कारण है गैरसैंण में हो रहा विधानसभा का बजट सत्र। उस आग का डर पहले से ही सत्ता पक्ष के जहन  में था। गैरसैंण से रोज़ आने वाली तस्वीरें तो यही बयां कर रही हैं। हर रोज़ बड़ी तादाद में लोग सड़कों पर हैं उसी त्रिवेंद्र सरकार के खिलाफ जिसे 2017 में भारी जनादेश देकर सत्ता के शिखर तक पहुंचाया।

भारी विद्रोह को देखकर ये साफ़ है कि सरकार औ उसके नुमाइंदो के लिये अब ये आंदोलन परेशानी का सबब बनता जा रहा है। ये आग है उस आंदोलन की जिसके पैदा होने के जिम्मेदार पक्ष और विपक्ष दोनों ही है, क्योंकि बारी बारी से दोनों ही पार्टियां पहाड़ को छलनी करती आ रही है।

तपता पहाड़ खोखलें वादे

परमनेंट से ग्रीष्म कालीन राजधानी की ओर त्रिवेंद्र सरकार ने कदम तो बढ़ा दिये हैं और उन्हें विश्वास जरूर होगा कि अब गैरसैण को लेकर इस चिंगारी को शांत करने में मदद मिलेगी। मगर स्थाई राजधानी से पहले ग्रीष्म कालीन राजधानी की ओर चलते हुए सरकार शायद ये भूल गई कि इस प्रदेश में लोगों को छलना अब संभव नहीं है। शायद यही वजह है कि भराड़ीसैण में आयोजित बज़ट सत्र  की ओर जाने वाले एक मात्र रास्ते पर महिला शक्ति ने अपना कब्जा कर लिया और रोक दिए सभी वो कदम जो उनको एक बार फिर से छलने की ओर बड़े हैं।

ऐसा नहीं कि इसकी भनक सरकार को नही थी। यही वजह है कि उत्तराखंड की मित्र पुलिस मित्रता का चोगा उतार कर मीठे शब्दों की बजाए लाठियों के सहारे सभी आंदोलकारियों का स्वागत करने के लिए बैठी थी।

सत्र की अभी शुरुवात भर हुई है और आने वाले दिनों में प्रदेश की सत्ता पर आसीन सभी महानुभावों को पहाड़ जैसे हौसले के साथ डटी हुई इन महिलाओं के आक्रमण का जवाब देना हैं। पर सत्रह वर्षों से बिना जवाब के सफेद कलफ लगे कुर्ते पजामें पहने हुए ये माननीय अब तक ये जवाब नहीं दे पाए कि गैरसैण राजधानी बनेगी या नहीं, पलायन रुकेगा या नहीं, शिक्षा मिलेगी या नहीं, बिमारियों से निज़ात दिलाने वाली स्वास्थ व्यवस्था परिपूर्ण होगी या नहीं, पीने का पानी मिल पायेगा या नहीं। इन तमाम सवालों के जवाब ना दे पाने वाले ये सभी महानुभाव क्या इन चार दिनों में जवाब दे पाएंगे  ?