केदारनाथ में पांच फिट तक बर्फ गिरने से तापमान माइनस दस डिग्री

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रुद्रप्रयाग, जिले में भारी बारिश के चलते जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। ऊंचाई वाले इलाकों में भारी बर्फबारी और निचले क्षेत्रों में बारिश का सिलसिला जारी है।

मंगलवार को ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग बाबा केदारनाथ में पांच फिट तक बर्फ पड़ी है। इससे केदारनाथ का तापमान माइनस दस डिग्री हो गया है। भारी बारिश के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग भी बाधित रहा। मार्ग खोलने के प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन लगातार हो रही बारिश के चलते दिक्कतें आ रही हैं।

पुनर्निर्माण कार्य में लगे मजदूरों को मुश्किलों का सामना पड़ रहा है। केदारनाथ से लेकर यात्रा पड़ाव फाटा तक लम्बे समय बाद बर्फ पड़ी है।

पंच केदारों में तुंगनाथ, मद्महेश्वर, चोपता, सिद्धपीठ
कालीशिला, मक्कूमठ, चिरबटिया, बदानीताल, देवरियाताल, हरियाली मन्दिर, मठियाणाखाल सहित कई प्रमुख स्थानों पर दो से तीन फिट बर्फ गिरी है। बर्फबारी का आनंद लेने के लिए पर्यटक इन स्थानों पर पहुंच रहे हैं। मौसम विभाग की चेतावनी को देखते हुए जनपद में बुधवार को भी सभी सरकारी व अर्द्ध सरकारी स्कूलों में छुट्टी की गयी है।

बारिश के चलते राष्ट्रीय राजमार्ग बंद
भारी बारिश के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड दो स्थानों पर बंद रहा। बांसबाड़ा में चट्टान टूटने से राजमार्ग चार घंटे तक बंद पड़ा है, तो फाटा के पास डोलिया देवी में मलबा आने से राजमार्ग तीन घंटे बाद खोला गया। इसके अलावा बच्छणस्यूं पट्टी को जोड़ने वाले कांडई-कमोल्डी मोटरमार्ग पर शिवपुरी के पास मलबा आ गया। ऐसे में ग्रामीणों को पैदल ही दूरी नापनी पड़ी। मयाली-घनसाली मार्ग पर कई जगह बर्फ गिरने से यात्रियों को काफी दिक्कतें झेलनी पड़ी। लिंक मार्ग और राजमार्ग को खोलने में विभाग की मशीनें जुटी रही, लेकिन लगातार हो रही बारिश के कारण कार्य करने में काफी दिक्कतें पैदा हुई।

जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने बताया कि, “जिले में बारिश और बर्फबारी को देखते हुए अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए गए हैं। राजमार्ग और लिंक मार्गों पर मशीनें तैनात की गई हैं, ताकि मार्गों से मलबा व बोल्डर जल्द से जल्द हटाया जा सके। केदारनाथ में भारी बर्फबारी हो रही है। चार से पांच फीट तक बर्फ धाम में पड़ चुकी है।”

कार्यदायी संस्थाओं को निर्देश दिए गए हैं कि वे मजदूरों के लिए बेहतर व्यवस्थाएं जुटाएं, ताकि उन्हें भी ठंड में दिक्कतें न झेलनी पड़ें। निचले इलाकों में बारिश होने से काश्तकारों को इसका लाभ मिलेगा।