10 बरस बाद किरुली में पांडव नृत्य का आयोजन

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गोपेश्वर, धार्मिक आयोजनों के बहाने ही सही पर आजकल गांवों में रौनक बिखरी है। इन धार्मिक आयोजनों के बहाने यहां से बाहर पलायन कर चुके लोग घर गांव मे लौटे है। शीत काल में गांवों में पांडव लीलाओं का आयोजन हर गांवों में हो रहा है।

इसी कडी में बंड भूमियाल की थाती किरुली गांव मे 10 बरस बाद पांडव नृत्य का आयोजन किया जा रहा है। तीन जनवरी तक पांडव नृत्य का आयोजन होगा। गौरतलब है कि पांडव नृत्य देवभूमि की अनमोल सांस्कृतिक विरासत है। उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग और चमोली जनपद की मंदाकिनी और अलकनंदा घाटी के सैकड़ों गांवों में हर साल नवम्बर से फरवरी माह तक पौराणिक पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है।

पांडव नृत्य का आयोजन पांडवो की याद में और घर गांवों में खुशहाली के लिए किया जाता है। इस आयोजन में पांडवो के जन्म से लेकर स्वर्गारोहणी के रास्ते स्वर्ग जानें के विभिन्न अंशों का ढोलो की तालों और थापों पर मंचन किया जाता है। इस दौरान मोरी डाली/ देवदार डाली, केला पेड, कीचक वध, पंया, नारायण भगवान की शादी, राजा पांडु के श्राद्ध के लिए गेंडे की खगोती लाना (गेंडा वध), और पांडु राजा के श्राद्ध का मंचन किया जाता है। जिसके बाद अंतिम दिन सामूहिक भोज दिया जाता है व पांडवो के अस्त्रों को बाण कंडी में रख दिए जाते हैं। इस तरह से लगभग 10-12 दिनों का ये आयोजन संपन हो जाता है।

खाली पड़े गांव में लौटी रौनक
पलायन की मार झेल रहे पहाड़ के सूने पड़े गांवो में पांडव नृत्य के आयोजन से गांव की रौनक लौट गईं है। जहां बंद पड़े मकानों में लगे ताले बरसों बाद खुले तो वहीं वीरान पड़े गांवो में लोगों की चहल पहल से गांव की खुशियां लौट आई। गांव के बलवंत सिंह फरस्वाण 35 बरस बाद पांडव नृत्य आयोजन को देख भावुक हुये। जबकि कुवैत में नौकरी से छुट्टी आये किरूली गांव के उदय सिंह 25 बरस के बाद इस साल पांडव नृत्य को देखने से अभिभूत हैं।

देहरादून, दिल्ली सहित शहरों में बसे गांव के लोग पांडव नृत्य को देखने इन दिनों गांव लौटे हैं। जिससे गांव की पगडंडियो से लेकर आंगन, खेत खलियान और पनघट में पसरा सन्नाटा टूट गया है। बरसों से अपने मायके नहीं आई ध्याणी भी गांव पंहुची हैं और एक दूसरे से परिवार और गांव की कुशलछेम पूछ रही हैं। इस आयोजन को सफल बनाने में नवयुवक मंगल दल किरूली और पांडव नृत्य आयोजन समिति के अध्यक्ष सुनील झिंक्वाण नें कहा की आज की युवा पीढ़ी भी अपनी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और संवर्धन को आगे आ रही है। इस प्रकार के सांस्कृतिक आयोजनों से गांव की रौनक लौट आई है।

वहीं युवा अरविंद फरस्वाण का मानना है कि, “पांडव नृत्य का आयोजन हमारी लोकसंस्कृति की जड़ों को मजबूत करता है।”