इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की उत्तराखंड शाखा ने किडनी प्रकरण की सीबीआई जांच की मांग की है। आईएमए का कहना है कि चिकित्सा के पेशे को बदनाम करने वाले लोग बेनकाब होने चाहिए।
आईएमए के प्रांतीय महासचिव डॉ. डीडी चौधरी के अनुसार डॉक्टर सेवाभाव से मरीजों का उपचार कर जनता का सम्मान हासिल करते हैं, लेकिन कुछ चिकित्सक ऐसे भी हैं जो डॉक्टरी के सम्मानजनक पेशे को बदनाम भी कर रहे हैं। ऐसे आपराधिक तत्वों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। आइएमए सरकार से मांग करती है कि उत्तराखंड की पवित्र भूमि में किए गए इस अनैतिक कृत्य की जांच सीबीआई से कराई जाए।
राज्य का चिकित्सक समुदाय का मानना है कि उत्तराखंड में भारत और नेपाल के बीच की लगभग 150 किमी की अंतर्राष्ट्रीय सीमा खुली है। इसके अलावा हेल्थ विजिलेंस फोर्स की कमी के कारण उत्तराखंड अवैध चिकित्सा कार्यों का सुरक्षित ठिकाना बन गया है। शहर में ही कई जगह झोलाछाप आम आदमी की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं। पहाड़ के दुरुह क्षेत्रों में तो इन्हें ट्रैक करने की कोई व्यवस्था ही नहीं है। डॉ. चौधरी के अनुसार उत्तराखंड में इन आपराधिक तत्वों की आमद रोकने के लिए सुदृढ़ सतर्कता प्रणाली की आवश्यकता है।
बता दें कि बीते वर्षों में उत्तराखंड के लिए सॉफ्ट कॉरिडोर बन गया है। अब लालतप्पड़ स्थित गंगोत्री चैरिटेबल अस्पताल में किडनी रैकेट का भंडाफोड़ होने के बाद अब यह माना जा रहा है कि राज्य मानव अंगों की तस्करी का भी सॉफ्ट डेस्टिनेशन बन गया है। आईएमए उत्तरांचल के संरक्षक और राज्य सह-समन्वयक डॉ. भीम एस पांधी ने कहा कि राज्य के दुरुह क्षेत्र स्वास्थ्य विभाग के निरंतर रडार पर होने चाहिए। पहाड़ी क्षेत्रों में डॉक्टरों की भारी कमी है और देखना होगा कि कोई गलत ढंग से इसका फायदा न उठाए। जनपद चमोली, पिथौरागढ़ में धारचूला और ऊधमसिंहनगर में खटीमा सहित अन्य क्षेत्रों में खास सर्तकता बरती जाए।
प्रदेश में अभी केवल दो अस्पताल, श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल और हिमालयन अस्पताल को गुर्दा प्रत्यारोपण की अनुमति है। जबकि मैक्स अस्पताल मंजूरी का इंतजार कर रहा है। यहां दो बार निरीक्षण के बाद भी स्वास्थ्य विभाग से अभी तक स्वीकृति नहीं मिली पाई है। जबकि दूसरी तरफ राजधानी में ही आयुर्वेदिक डॉक्टर एक जटिल सर्जरी को आसानी से अंजाम दे रहा था।





















































