बुनकरों के नाम पर करोडों का घोटाला

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बुनकरों के नाम पर करोडों का कर दिया गया घोटाला। फर्जी समिति, फर्जी सदस्य और फर्जी हस्ताक्षरों से सोलह सालों तक चली समिति में करोडों का घोटाला उजागर हुआ है। जो मर गये उनके नाम पर भी समिति चलती रही और उनके नाम से लगातार लाभ कमाते रहे अधिकारी और समिति के घोटालेबाज आकिर क्या है ये बुनकर घोटला?

काशीपुर में राजकीय हथकरघा डिजाइन केन्द्र द्वारा बनाई गयी समिति के पदाधिकारियों ने सदस्यों के फर्जी हस्ताक्षर व अंगूठे के निशान लगाकर करोड़ों रुपये डकार लिए। यह मामला उजागर हुआ सूचना अधिकार से मांगी गयी रिपोर्ट से, जिसके बाद समिति के पदाधिकारियों के साथ ही राजकीय हथकरघा एवं डिजाइन केंद्र के अफसरों में हड़कंप मच गया। गौरतलब है कि समिति को सरकार से बजट मिलता है, जिससे सूत क्रय कर उत्पाद तैयार करने के लिए सदस्यों को दिया जाता था। उत्पाद प्रदर्शनी व अन्य कार्यक्रमों में बेचा जाता है और लाभ में कुछ हिस्सा सदस्यों को देने का प्रावधान है।

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मगर समिति के पदाधिकारियों ने मनमानी तरीके से बैठक कर कुछ सदस्यों को न तो सूत दिया न ही लाभांश। यही नहीं, अध्यक्ष ने अपनी पत्नी को भी सदस्य बना दिया, जबकि एक परिवार से एक ही व्यक्ति सदस्य हो सकता है। समिति की हर साल बैठक होती थी, मगर कोरम पूरा दिखाने के लिए कुछ सदस्यों के फर्जी हस्ताक्षर व अंगूठे के निशान लगा दिए। सदस्यों के मुताबिक समिति में करोड़ों का गबन हुआ है, इस मामले की जांच की जानी चाहिए।

समिति के सदस्यो ने बताया कि वर्ष 2000 से समिति के सदस्य है। शुरू में एक बार ट्रेनिंग हुई और तीन हजार रुपये मिले थे। इसके बाद तो समिति से न तो सूत मिला न ही कोई योजना का लाभ। समिति के पदाधिकारी बैठक में उनके फर्जी हस्ताक्षर व अंगूठे के निशान लगवाकर सदस्यों के करोड़ों रुपये का लाभांश डकार गए। डिजाइन सेंटर के अफसरों ने भी सदस्यों के लिए कोई योजना न होने की बात कहते थे। समिति ने हर साल बैठक की, मगर उन्हें किसी भी बैठक में नहीं बुलाया गया। जबकि बैठक में उनके फर्जी हस्ताक्षर व अंगूठे के निशान लगे हैं। समिति के पदाधिकारियों ने अफसरों से मिलीभगत कर सरकारी बजट के साथ उनके लाभांश का गबन कर दिया यही नहीं एसे आठ लोग है जिनकी मृत्यु हो चुकि है उनके नाम पर भी हस्ताक्षर कर लाभंश ले लिया गया है ।

जबकि समिति के पदाधिकारी व अफसर बुनकरों के लिए बजट न होने की बात कहते थे। जब सूचना का अधिकार में सूचना मांगी गई तो पता चला कि समिति की हर साल बैठक हुई है और उनके हस्ताक्षर व अंगूठे के निशान लगे हैं, जो फर्जी है। और अधिकारी इस बारे में खुलकर कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। समिति के अध्यक्ष अपने रिश्तेदारों व परिजनों को सदस्य बनाकर बैठक करते थे और अन्य सदस्यों का लाभ खा गए। जब योजनाओं के बारे में जानकारी मांगी जाती थी तो अध्यक्ष कहते थे कि जब बजट ही नहीं है तो फिर किस बात की बैठक व प्रस्ताव।जबकि सूचना अधिकार की रिपोर्ट ने पुरी पोल खोल कर रख दी।