वह भूतिया गांव जिसने चीड़ के पेड़ों को बचाया

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एक छोटे से हरे रंग की परिदृश्य में, पहाड़ी के पास नुना गांव अपने खूबसूरत, घने हरियाली वाले पेड़ों के लिए जाना जाता है। यह एक हिमालयी ओक का जंगल है जिसे कई दशकों तक ग्रामीणों द्वारा उगाया और विकसित किया गया है।

नूना, अल्मोड़ा जिले के उन गांवों में से एक हैं जहां बारहमासी पानी का श्रोत बहता है। जब पड़ोसी गांव के श्रोत गर्मियों में सूख जाते हैं तब नुना, तक लोग पानी भरने अाते है। नुना वन पंचायत के पूर्व सरपंच 72 साल के देवी दत्त, का कहना है कि इस गांव ने तस्करों, ठेकेदारों और व्यवसायियों से जंगलों को दूर रखने के लिए बहुत लड़ाई लड़ी है। आज, भी गांव के बड़े-बुजुर्ग इसका ध्यान रख रहे हैं।

लेकिन नूना के खूबसूरत जंगल यहां के जवान यानि नई पीढ़ी को रोकने में नाकामयाब रहा हैं। यह उत्तराखंड के उन गांवों में से है जो भूतिया गांवों की श्रेणी में आता हैं। जर्जर और खाली टूटते मकान के मालिक अच्छी जिंदगी और शिक्षा के लिए अपने गांवों से दूर शहर में बस गए हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में वन पंचायत वो समुदाय हैं जो जंगल के प्रबंधन वाले वन संस्थान हैं। दत्त ने बताया कि उन्होंने बढ़ती उम्र की वजह से वन सरपंच के पद से इस्तीफा दे दिया क्योंकि जंगलों को बचाने के लिए बहुत भागदौड़ और बहुत एलर्ट रहने की आवश्यकता होती है।

दत्त बताते हैं कि जब मैं सरपंच था, ठेकेदारों ने मुझसे जंगल के बीच से एक सड़क काटने के लिए 10 लाख रुपये की पेशकश की थी। हमने उन्हें सड़क का रास्ता बदलने पर मजबूर कर दिया। कुछ लोग बिस्किट कारखाने के लिए यहां जमीन चाहते थे, हमने उन्हें भी बाहर निकाल दिया।” दत्त कहते हैं, कि तस्कर रात में आते हैं और वे पेड़ों को काटने के लिए मशीन का उपयोग करते हैं, न कि एक कुल्हाड़ी जिसे आप बहुत दूरी से सुन सकते हैं।”

भारतीय विज्ञान संस्थान के वन-विशेषज्ञ एन एच रविंद्रनाथ के अनुसार, हिमालयी ओक एक देसी प्रजाति है। “यह मिट्टी, कीड़े और स्थानीय जलवायु के लिए अनुकूल है। इसकी नमी बरकरार रहती है और तत्काल पानी की कमी से बचाती है।”

लोक चेतना मंच के अध्यक्ष जोगिंदर बिष्ट कहते हैं कि, “स्थानीय लोग ओक को इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि यह बेहतर लकड़ी और चारा देता है, अच्छी गुणवत्ता वाला हयूम्स (कार्बनिक पदार्थ) बनाता है और कटाव को रोकता है।”