सर्दियों के महीनों में हर साल, भूटिया लोग जोशीमठ के पहाड़ी इलाकों से नीचे आकर ऋषिकेश के चोरपानी जंगलों में अपना बसेरा बना लेते हैं। जैसे ही आसपास के लोगों को उनके यहां आने की खबर मिलती है तो लोग यहा जंगल में आकर उनसे उम्दा क्वालिटी की ऊन के साथ-साथ उनके भूटिया कुत्ते के बच्चों को लेने पहुँच जाते हैं।
14 सदस्यों के परिवार की महिला सोनी भी सालों से चोरपानी में अपनी सर्दियां बिता रही हैं। सुबह होते ही घर के पुरुष जंगलो में भेड़-बकरियों को चरने ले जाते है अौर साथ में होते है उनके भूटिया कुत्ते जो उन पर निगाह रखते हैं। इन कुत्तों के होते ना तो गडरिया और ना ही उसकी भेड़ो को कुछ खतरा है। सोनी बताती हैं कि “कुत्ता बेचना हमारा व्यापार नहीं है। कुत्ता हम साथ इसलिए लाते हैं क्योंकि ये हमारी भेड़-बकरी जो जंगल में चरने जाती हैं यह उनकी रखवाली करते हैं। लेकिल कुछ सालों से लोगों को यह पता चल गया है कि भूटिया की अच्छी नसल का कुत्ता यहां मिलता हैं तो लोग यहां इन्हें लेने आते हैं।“

जिनको कुत्ता पालने का शौक होता है वह हाथियों से भरे जंगल में छह किलोमीटर तक आते हैं छोटे भूटिया कुत्तों के बच्चे लेने के लिये। और आयें भी क्यों नहीं ये कुत्ते किसी टैडी बीयर से कम नहीं होते। इसके साथ ही ये कुत्ते लंबीकद काठी के मालिक होते हैं। जिसके चलते ये अपने मालिक के आस पास जंगली जानवरों को भटकने नही देते हैं। रफ्तार के साथ साथ ये कुत्ते काफी समझदार भी होते हैं। ऊेचे पहाड़ी इलाकों में रहने के कारण मूल रूप से आम कुत्तों के मुकाबले हिमालयन मिस्टिफ काफी फिट औऱ चुस्त होते हैं। यही वजह है कि लोगों के बीच इस प्रजाति के कुत्तों का काफी क्रेज है। सहारनपुर के एक खरीदार जंगलों में ट्रेकिंग करके अपने फार्म हाउस के लिए दो तिब्तन मास्टिफ खरीदने पहुंचे, “मुझे किसी ने बताया था कि ऋषिकेश में अच्छे कुत्ते मिलते हैं, इसलिए मैं यहां आया हूँ।” यह कुत्ते के बच्चे लकड़ी के मजबूत बाड़े में कैद रहते हैं जबकि बड़े कुत्ते घने जंगलों में भेड़ बकरी पर नजर रखते हैं।
यहां से खरीदे हुए कुत्ते दूर-दराज के शहरों जैसे कि गुरुग्राम,फरीदाबाद,दिल्ली, चंडीगढ़ और लखनऊ तक जाते हैं और लोगों के खुबसूरत घरों की अपनी जान पर खेल कर निगरानी तो करते हैं साथ साथ उनके परिवार का अटूट हिस्सा भी बन जाते हैं।





















































