श्राद्ध पर्व शुरू, हरिद्वार में तर्पण के लिए भीड़

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पूर्वजों की आत्मा की शांति और पितरों को तर्पण देने वाले श्राद्ध पक्ष की आज मंगलवार से शुरुआत हो गई । श्राद्ध पक्ष 8 अक्टूबर तक चलेंगे। माना जाता है कि इन 16 दिनों में मृत्यु लोक से पितृ धरती पर आकर अपने परिजनों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त तर्पण कर विधि-विधान से पूजा करने का विधान बताया गया है।

श्राद्ध के बारे में धर्म ग्रन्थों में अनेक बातें बताई गई हैं। सबसे पहले भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के बारे में जानकारी दी थी। महाभारत के अनुशासन पर्व में श्राद्ध की परंपरा की शुरुआत हुई थी। भगवान राम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था।

हरिद्वार के नारायणी शिला मंदिर में इन दिनों पितरों का श्राद्ध करने वालों की भीड़ लगी हुई है। यहां पहुंचकर सभी लोग पूरी श्रद्धा के साथ अपने पितरों का श्राद्ध और पिंडदान करवा रहे हैं। श्राद्ध कर्म और पिंडदान करने का हरिद्वार, गया और बदरीनाथ में विशेष महत्व माना जाता है। इसमें हरिद्वार में गंगा किनारे श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है।हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ते हैं। इसकी शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होती है, जबकि समाप्ति अमावस्या पर होती है। जिसे महालया भी कहा जाता है।

नारायणी शिला मंदिर में मुख्य पुजारी पं. मनोज त्रिपाठी के अनुसार दिवंगत परिजन की मृत्यु की तिथि में ही श्राद्ध किया जाता है। यानी कि अगर परिजन की मृत्यु प्रतिपदा के दिन हुई है तो प्रतिपदा के दिन ही श्राद्ध करना चाहिए। आमतौर पर पितृ पक्ष में इस तरह श्राद्ध की तिथि का चयन किया जाता है। जिन परिजनों की अकाल मृत्यु या किसी दुर्घटना या आत्महत्या का मामला हो तो श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।

मनोज त्रिपाठी ने बताया कि, दिवंगत पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और मां का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है। जिन पितरों के मरने की तिथि याद न हो या पता न हो तो अमावस्या के दिन श्राद्ध करना चाहिए। अगर कोई महिला सुहागिन मृत्यु को प्राप्त हुई हो तो उसका श्राद्ध नवमी को करना चाहिए। संन्यासी का श्राद्ध द्वादशी को किया जाता है।बताया कि पितृपक्ष में हर दिन तर्पण करना चाहिए। पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है। इस दौरान पिंड दान करना चाहिए। श्राद्ध कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलकर पिंड बनाए जाते हैं। पिंड को शरीर का प्रतीक माना जाता है। यदि पका हुआ चावल न हो तो चावल के आटे का भी पिण्ड बनाया जा सकता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य, विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान नहीं करना चाहिए। हालांकि देवताओं की नित्य पूजा को बंद नहीं करना चाहिए। श्राद्ध के दौरान पान खाने, तेल लगाने और संभोग की मनाही है। इस दौरान रंगीन फूलों का इस्तेमाल भी वर्जित है। पितृ पूजा में सफेद फूलों का प्रयोग करना चाहिए। पितृ पक्ष में चना, मसूर, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्याज और काला नमक भी नहीं खाया जाता है। श्राद्ध करने के लिए आप किसी विद्वान पुरोहित को बुला सकते हैं। श्राद्ध के दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार अच्छा खाना बनाएं।

मान्यता है कि श्राद्ध के दिन स्मरण करने से पितर घर आते हैं और भोजन पाकर तृप्त हो जाते हैं। इस दौरान पंचबलि भी दी जाती है। शास्त्रों में पांच तरह की बलि बताई गई हैं। गाय बलि, श्वान कुत्ता बलि, काक कौवा बलि, देवादि बलि, पिपीलिका (चींटी) बलि। यहां पर बलि का मतलब किसी पशु या जीव की हत्या से नहीं बल्कि श्राद्ध के दौरान इन सभी को खाना खिलाया जाता है। पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करने से न सिर्फ पितरों को मुक्ति मिलती है बल्कि जीवन में भी खुशियां आती है। साथ ही घर में गृह क्लेश से भी मुक्ति मिलती है। इसीलिए उपनिषदों में भी कहा गया है कि देवता और पितरों के कार्यों में कभी भी आलस्य नहीं करना चाहिए।