गुरुकुल परम्पराः देश विदेश से संस्कृत अध्यन को पहुंचे विद्यार्थी

हर साल श्रावणी पर्व के मौके पर ऋषिकेश के  गंगा घाट पर संस्कृति का अध्ययन करने वाले छात्र वेद उपनयन की शिक्षा शुरु करते हैं लेकिन इस साल चंद्र ग्रहण का असर श्रावण मास की होने वाली जनेऊ संस्कार पर पड़ा यही कारण है कि इस साल श्रावणी पर्व से पहले ही नाग पंचमी के मौके पर जनेऊ संस्कार को की परंपरा पूरी की गई की गई।

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धर्मशास्त्रो का कहना है कि जिस ओर गंगा पूरब की ओर बहे वही तीर्थ हैं ,यही कारण है कि हमारी हिन्दू संस्कृति के व्रत व त्योहारों में हमारे तीर्थो में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है। श्रावणी पर्व भी हमारी प्राचीन गुरुकुल की परंपरा का निर्वहन करता एक सांस्कृतिक पर्व है जिसका उत्साह आज के दौर में भी देखने को मिलता है। आज उपनयन के बाद ये ऋषिकुमार वेद-शास्त्रों की शिक्षा-दीक्षा के अधिकारी बन जाते है।

वेद-शास्त्रों का अध्ययन करने ऋषिकेश में जुटे ये छात्र उतराखंड के विभिन्न क्षेत्रो से है साथ ही नेपाल से भी कई छात्रों ने यहाँ वेद कर्म काण्ड के अधयन्न के लिए प्रवेश लिया है। यहाँ इन्हें एकजुट देखकर एकबारगी प्राचीन गुरुकुल परंपरा जीवंत हो उठती है। इनकी  खुशी स्वयं बयां होती है। शास्त्रों में  मान्यता है कि आज ही के दिन से वेद व कर्मकांड का अध्ययन करने वाले वेदपाठी उपनयन संस्कार के बाद गुरुकुल में दीक्षा आरम्भ करते है।

 जन्म न  जायते शुद्र,संस्कारत द्विज उच्चते अर्थात जन्म से तो सभी शुद्र होते है लेकिन मनुष्य को संस्कार ही उच्च बनाते है। आज ये ऋषिकुमार इसी शुद्ता की ओर जाने का संकल्प ले रहे है।