संतों को राष्ट्र निर्माण की प्रत्यक्ष भूमिका में उतरने की जरूरतः रामदेव

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पतंजलि योगपीठ एवं धर्मजागरण मंच के संयुक्त तत्वावधान में पतंजलि योगपीठ परिसर में चल रहे ‘संत स्वाध्याय संगम’ के दूसरे दिन योगऋषि स्वामी बाबा रामदेव ने संतों को संबोधित किया। यह संत सम्मेलन 11 सितम्बर तक चलेगा।

भारत वर्ष में जन्में सभी धर्म, पंथ, सम्प्रदाय के युवा साधु-महात्माओं का परस्पर परिचय, साधु जीवन की गरिमा स्थापना एवं उनकी समस्याओं का समाधान, आत्मकल्याण, जनकल्याण के लिए साधना एवं धर्म जागरण के लिए ”संत स्वाधयाय संगम” नाम से यह संत सम्मेलन चल रहा है। सम्मेलन में गोविन्द गिरि महाराज, महामण्डलेश्वर विश्वेश्वरानन्द महाराज, हरिहरानन्द महाराज, ज्ञानानन्द महाराज सहित देश के अनेक प्रांतों से पधारे लगभग 600 संत सहभागिता कर रहे हैं।

सम्मेलन के दूसरे दिन आज योगऋषि स्वामी रामदेव के मार्गदर्शन में सभी संतों ने योगाभ्यास किया। सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा आजादी के आंदोलन में संतों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। देश में संतों का जनमानस में महत्वपूर्ण स्थान मिला है, यह सम्मेलन संतगणों की अपनी गरिमा को गौरवान्वित करने में भूमिका निभायेगा।

उन्होंने कहा हम संतों का जेनेटिक स्ट्रक्चर अलग-अलग हो सकता है, पर करेक्टर सबका एक होना चाहिए। संतों को राष्ट्रनिर्माण-विश्वनिर्माण की प्रत्यक्ष भूमिका में उतरने जरूरत है। इनके संकल्प से जीवन की दशा-धारा तय होती है। गोविन्द गिरि महाराज ने कहा देश जब गुलामियों में जकड़ा, देश की संस्कृति पर जब भी प्रहार हुआ देश के संतों ने उससे मोर्चा ले पुनः गरिमा प्रदान की। उन्होंने कहा संत समाज की सामयिक पृष्ठभूमि तैयार करेगा पतंजलि का यह संत संमेलन।

इस अवसर पर पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने कहा भारतीय संस्कृति संतों-ऋषियों की संस्कृति है, संत राष्ट्र के निर्माता होते हैं। कहा शरीर परमात्मा का मंदिर है, इसे योग-आयुर्वेद से स्वस्थ-निरोग रखने पर भी जोर देना है, जिससे परमात्मा को समाज के बीच सही तौर पर प्रदर्शित किया जा सके।