ऐसे तो खत्म हो जाएगा क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व

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देहरादून,  आपसी उठापटक और राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व समाप्त हो रहा है। इसका जीता जागता प्रमाण उत्तराखंड क्रांति दल है।

उत्तराखण्ड क्रान्ति दल की स्थापना 26 जुलाई 1979 को हुई थी लेकिन अब यह अपना अस्तित्व खो रहा है। वैसे तो 9 नवम्बर 2000 को पृथक राज्य उत्तरांचल की स्थापना से यूकेडी अपने उद्देश्य में कामयाब रहा। 1 जनवरी 2007 को उत्तरांचल को उत्तराखण्ड नाम दिया गया। काशी सिंह ऐरी के युवा नेतृत्व के अंतर्गत राज्य के प्रथम विधानसभा चुनाव 2002 में, पार्टी को 70 सीटों में से 4 सीटों पर जीत हासिल मिली। यहीं से दल का पतन शुरू हो गया और दल के नेता सत्तारूढ़ दलों की गोद में बैठ गये।

उक्रांद के प्रमुख चेहरों में काशी सिंह ऐरी, फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट, नारायण सिंह जंथवाल, त्रिवेंद्र पंवार जैसे नेता है। इन नेताओं के बाद भी दल उभार के बजाय पतन की ओर जा रहा है। जबकि फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट का कहना है कि सत्तारूढ़ दल की यह चाल है, उनका जनता में प्रभाव बढ़ा है और आगामी चुनाव में एक शक्ति बनकर उभरेगा।

श्री भट्ट का कहना है कि, “यह बात सच है कि कहीं न कहीं आपसी लड़ाई के कारण दल कमजोर हुआ है लेकिन अब जनता का उक्रांद को पूर्ण समर्थन मिल रहा है। 2000 में नये बने राज्य उत्तराखंड में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों की भी दमदार उपस्थिति थी लेकिन राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के तुलना में उत्तराखंड में क्षेत्रीय दलों का अभ्युदय अपेक्षित रूप से नहीं हो पाया। अभिविभाजित उत्तर प्रदेश अलग हुए लगभग 19 वर्ष के बाद भी उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल अब तक अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। टुकड़ों-टुकड़ों में बंटे इन राजनीतिक दलों की राजनीतिक स्थिति बद से बदतर हुई है। जिस दल ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन को जन जन तक पहुंचाया वहीं अब अपना अस्तित्व खो रहा है।”