दीपावली से पहले उल्लू की सुरक्षा को रेड अलर्ट जारी

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हरिद्वार। दीपावली को देखते हुए दुर्लभ वन्य जंतु उल्लुओं पर खतरा मंडराने लगा है। बड़ा खतरा दीपावली के दिन का है, क्योंकि तंत्र मंत्र के लिए उल्लुओं की तस्कर भी बड़े पैमाने पर सक्रिय हो गई है। लक्ष्मी की कृपा बरसने के अंधविश्वास के चलते कई लोग उल्लू की बलि देते हैं। इस आशंका के चलते वन विभाग ने रेड अलर्ट जारी किया है। एक विशेष सुरक्षा दस्ता तैयार किया गया है। साथ ही वन क्षेत्रों में गश्त बढ़ा दी गई है।

हिन्दू शास्त्रों में दीपावली के दिन एक विशेष मुहूर्त में उल्लुओं की पूजा और उल्लू के विभिन्न अंगों का तंत्र-मंत्र में प्रयोग बताया गया है। ऐसा अंध विश्वास है कि दीपावली के दिन यदि खास मुहूर्त में उल्लू की पूजा की जाए और उसके अलग-अलग अंगों के साथ तांत्रिक पूजा की जाए तो व्यक्ति को लक्ष्य के साथ-साथ कई तरह की सिद्धियां प्राप्त होती है। भारतीय ज्योतिष में भी उल्लू पूजा का विधान बताया गया है। ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी के अनुसार उलूक तंत्र में गौतम ऋषि द्वारा दीपावली के दिन उल्लू की पूजा का विधान बताया गया है। ऐसी तरह तंत्र शास्त्र में भी अलग-अलग मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजा का विधान है। बताया कि पूजा के लिए उल्लू को मारना उचित नही हैं। तंत्र-मंत्र और पूजा के लिए काष्ठ यानी लकड़ी के बने उल्लू की पूजा की जानी चाहिए। काष्ठ के उल्लू की पूजा से भी व्यक्ति की हर तरह की मनोकामना की पूर्ति होती है।

ज्योतिष शास्त्र, तंत्र शास्त्र और उलूक तंत्र में दीपावली के दिन उल्लू की पूजा का विधान है। प्रतीक मिश्रपुरी ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार महिलाएं तंत्र पूजा में मादा उल्लूओं का प्रयोग करती हैं। जबकि बच्चे उल्लू और वृद्ध उल्लुओं का भी तंत्र पूजा में प्रयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि यदि कोई व्यक्ति अपने ऊपर बहुत बड़ा खतरा महसूस करता है तो वह सुरक्षा कवच के रूप में उल्लू के पंखों को तांत्रिक पूजा में प्रयोग करता है। इससे व्यक्ति हर तरह के खतरे से सुरक्षित हो जाता है, यदि किसी को अपार लक्ष्मी की कामना है या वह कोई बड़ा अदृश्य खजाना पाना चाहता है तो उसके लिए उल्लू की आंखों को तंत्र पूजा में प्रयोग किये जाने का विधान बताया गया है। स्तंभन शक्ति के लिए उल्लू की गर्दन की पूजा की जाती है। उल्लू की पूजा में सबसे खतरनाक होता है मारण तंत्र अनुष्ठान। इसके लिए उल्लू के दांत और नाखूनों का प्रयोग तंत्र पूजा में किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार उल्लू की तांत्रिक पूजा दीपावली के दिन महानिशीथ काल में अर्द्ध रात्रि के वक्त की जाती है। इसमें मारन, मोहन, वशीकरण एवं उच्चाटन का प्रयोग किया जाता है। प्रतीक मिश्रपुरी के अनुसार दीपावली के दिन जीवित या मृत उल्लू और उसके अंगों के बजाय काष्ठ का उल्लू बनाकर उसकी पूजा की जानी चाहिए। काष्ठ के उल्लू की पूजा भी पूरे विधि विधान से की जाए तो मनचाहा फल प्राप्त होता है। उल्लू की तस्करी की आशंकाओं को देखते हुए वन विभाग ने कमर कस ली है। पूरे प्रदेश में रेड अलर्ट घोषित कर दिया गया है। हरिद्वार के प्रभागीय वन अधिकारी आकाश वर्मा के अनुसार दीपावली पूजा में उल्लू की पूजा के अंधविश्वास के चलते उल्लू की तस्करी और शिकार को रोकने के कड़े इंतेजाम किये जा रहे है। उन्होंने बताया कि इसके लिए एक विशेष सुरक्षा दस्त तैयार किया गया है, जिसमे खोजी कुत्ते भी शामिल हैं। यह दस्त 24 घंटे सभी उल्लूओं के मिलने के संभावित स्थानों पर चौकसी बरत रहे हैं और जंगल से सटे मानवीय इलाकों में भी सघन निगरानी रख रहे हैं।