पाॅली हाउस में ही खिले हाॅलैंड के फूल, नहीं मिले खरीदार

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पाॅली हाउस
चंपावत, कोरोना की मार से खास किस्म के विदेशी फूलों की खेती करने वाले भी नहीं बच पाए हैं। किसे पता था कि  लाॅक डाउन हो जाएगा। उम्मीद से पाॅली हाउस में फूलों की खेती की। लॉक डाउन में बहार आ गई पर खरीदार कोई नहीं।  काश्तकार को उठाना पड़ा है अच्छा खासा नुकसान।
जिला मुख्यालय की निकटवर्ती ग्राम सभा तल्ली चौकी के रहने वाले जल संस्थान में संविदा पर कार्यरत बसंतराज गहतोड़ी ने उद्यान विभाग के सहयोग से हाॅलैंड के लिलियम फूलों की खेती शुरू की है। उद्यान विभाग की योजना के तहत इसके लिए उन्होंने दो पाॅली हाउस तैयार किए। ये पाॅली हाउस करीब पांच नाली क्षेत्रफल के हैं। फूलों के बीज लाखों रुपये खर्च कर हाॅलैंड से मंगवाए थे। करीब दो माह की कड़ी मेहनत के बाद जब फूल मंडी भेजे जाने के लिए तैयार हुए तो कोरोना महामारी के चलते लाॅक डाउन लग गया। आवाजाही ठप होने से फूलों को दिल्ली की मंडी भेजा जाना संभव नहीं हुआ तो उनकी कटिंग भी नहीं हो सकी। एक-एक करके फूल पाॅली हाउस में ही खिलने लगे और युवा काश्तकार को धीरे-धीरे नुकसान होने लगा। उन्होंने बताया कि इन फूलों को खिलने से पहले की कटिंग कर मंडी भेजना होता है। जहां से वह सजावट के लिए जाते हैं। वहीं पर धीरे-धीरे खिलते हैं और कई दिनों तक यह अपनी छटा बिखरते रहते हैं। बसंतराज ने बताया कि कोरोना के चलते अब तक उन्हें आठ लाख रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है।
पाॅली हाउस
उन्होंने बताया कि लाॅक डाउन में छूट मिलने के बाद कुछ फूल उन्होंने मंडी भेजे हैं, लेकिन उनकी बिक्री भी नहीं हो पा रही है। वर्तमान में फूलों की डिमांड न के बराबर है। उन्होंने बताया कि कोरोना के चलते अधिकांश खेती बर्बाद हो गई। अब वह अगले वर्ष नए सिरे से खेती करेंगे। बंसत राज ने बताया कि लिलियम के फूल की खेती के लिए उत्तराखंड सहित जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश की जलवायु काफी उत्तम मानी जाती है। इस फूल के तैयार होने में 70 दिनों का समय लगता है। अगर काश्तकार इस दौरान कड़ी मेहनत और देखरेख के साथ खेती करे तो उन्हें अच्छा रोजगार मिल सकता है। वह कहते ही मगर मेरा पहला ही अनुभाव बेहद कड़वा साबित हुआ है। वह कहते हैं कि दिल्ली मंडी में एक फूल (स्टिक) की कीमत 30 से 40 रुपये तक मिल जाती है। जहां से इनको गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों में भेजा जाता है।