जब चार यार मिले तो शुरु होता है मसूरी मे कैरम का खेल

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हर साल जैसे जैसे ठंड बढ़ती है वैसे-वैसे मसूरी के हर नुक्कड़ या बाज़ार के कोने में जहां भी धूप निकलती है वहां मसूरी के लोग आपको कैरम खेलते नज़र आ जाऐंगे।

नवंबर के महीने में सर्दी शुरु होते ही बाज़ार में सन्नाटा छा जाता है जिसका भरपूर मज़ा यहां के दुकानदार उठाते हैं।यहां के दुकानदार, निवासी आपको पूरे शहर में धूप में खड़े होकर या कोने में बैठ  कैरम का लुत्फ उठाते मिलेंगे। चाहे वो किसी भी उम्र, मज़हब या पेशे-वाले हो कैरम बोर्ड को चारों तरफ खेलनेवालों के साथ-साथ खेल देखने वालों का जमावङा भी मिलेगा, यह खेल सर्दियों में सभी को जोड़ता है। ये ‘स्ट्रीट कैरम’ को मसूरी स्पोर्टस और कल्चरल एसोसिएशन ने पिछले हफ्ते राधा कृष्ण मंदिर में एक प्लेटफॉर्म दिया है, दो दिन के इस कैरम टूर्नामेंट में कुल 12 टीमों ने भाग लिया।

सेमयूल चंद्र, सेक्रेटरी एमएससीए ने न्यूज़पोस्ट टीम को बताया कि ”हमेशा से ही मसूरी में एक परंपरा रही है कैरम खेलने की, सर्दियों में हम सब लोगों ने किसी न किसी को बाज़ार में कैरम खेलते देखा है खासकर जब टूरिस्ट कम पहुंचते हैं।यह देखकर हमने इस टूर्नामेंट के बारे में सोचा। पिछले 8 सालों से हो रहे इस टूर्नामेंट में भाग लेने वालों की संख्या बढ़ती चली गई है, जहा पहले 8 खिलाङी थे तो अाज 24 हो जुके है।”

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38 साल के सुनील कुमार जो सोफा बनाते हैं और साथ ही जूते की दुकान भी चलाते हैं पिछले 7 टूर्नामेंट के चैंपियन रहे हैं, वह कहते हैं कि, ”पारिवारिक परिस्थितियों के चलते मैंने इस खेल को प्रोफेशनली नहीं खेल सका, लेकिन मेरा दिल इस खेल में है और जब भी मैं यह खेलने बैठता हूं तो मैं सब कुछ भूल जाता हूं।”

 सूबल कृष्णा जो उड़ीसा से आए हैं और यहां के शिव मंदिर मे पंडित हैं कहते हैं कि, ”जब मै मसूरी आया मैने सपने में भी नहीं सोचा था कि मसूरी में कैरम खेल सकूंगा, लेकिन आज मैं इस टूर्नामेंट को यहां खेल रहा हूं।”

साल दर साल, मसूरी में कैरम की बढ़ती लोकप्रियता इस बात का संकेत है कि खेल का कोई उम्र या मज़हब नहीं होता और जहां भी चार यार मिल जाएं वहां खेल और भी दिलचस्प हो जाता है।