गढ़वाल, कुमाऊं और मैदान के सियासी गणित पर टिकी भाजपा-कांग्रेस

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उत्तराखंड में विधानसभा की 70 विधानसभा सीटों में से गढ़वाल की 41 और कुमाऊं की 29 सीटों पर भाजपा कांग्रेस के सियासी समीकरण का गणित बदलते रहते हैं।राज्य में भाजपा और कांग्रेस के बीच गढ़वाल, कुमाऊं मंडल में सीटों पर उठापठक होता रहता है। गढ़वाल के मैदानी जिले हरिद्वार और कुमाऊं के उधमसिंह नगर में 20 सीटें हैं। इर सीटों पर बसपा किंग मेंकर की भूमिका में रही है।
वर्ष 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में बसपा को 7 सीटें मिली थी तो 2007 के दूसरे चुनाव में बसपा को सर्वाधिक 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी वहीं 2012 में बसपा को हरिद्वार में 3 मात्र तीन सीट ही मिल पायी लेकिन बसपा को 11 फीसदी के करीब मत मिले थे। सीट कम हो या ज्यादा सरकार बनाने में बसपा की अहम भूमिका होती है। वर्तमान कांग्रेस सरकार को भी बसपा का समर्थन से ही पांच साल पूरा की।
वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में कुमाऊं के मैदानी जिले उधमसिंह नगर में 9 सीटें हैं जिनमें से भाजपा को 7 और कांग्रेस को मात्र 2 सीटें मिली। बाद में हुए उपचुनाव में कांग्रेस को यहां एक सीट और मिल गई थी। हरिद्वार और उधमसिंह नगर की 20 सीटों पर मुस्लिम और दलितों की खासी आबादी है जिसका फायदा कांग्रेस और बसपा को मिलता है।
वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 33.79 फीसदी तो भाजपा को 33.13 प्रतिशत मत मिले यानी मामूली 0.66 फीसदी स्विंग से कांग्रेस ने सरकार बनाई। ऐसे में इस बार भी दोनों दलों में सीधी टक्कर है।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मैदानी जिलों, हरिद्वार और उधमसिंहनगर में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। इस बार आक्रामण रणनीति अपनाते हुए सीएम हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण और उधमसिंहनगर की किच्छा सीट से खुल मैदान में हैं।
माना जा रहा है कि हरिद्वार में खुद सीएम के मैदान में उतरने से आसपास की चार-पांच सीटों पर इसका कांग्रेस को लाभ मिल सकता है लेकिन भाजपा इसे नही मान रही है।
भाजपा का कहना है कि सीएम हरीश रावत डर के मारे से दो जगहों से चुनाव लड़े है और दोनों जगहों से उनका हार तय है।